क्या दशकों तक वाकई नहीं हुए चीते के पुनर्वास के सार्थक प्रयास?

कई मीडिया रिपोर्ट्स और कांग्रेस नेता इस बात को सामने रख चुके हैं कि देश में चीता लाने का प्रयास कई दशकों से चल रहा था।

ग्वालियर (जोशहोश डेस्क) प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शनिवार सुबह मध्यप्रदेश के कूनो राष्ट्रीय उद्यान में नामीबिया से लाए चीतों को छोड़ा। इसके साथ ही 70 वर्ष के बाद एक बार भारत की धरती पर चीता दिखाई देंगे। प्रधानमंत्री ने इस मौके पर कहा कि ये दुर्भाग्य रहा कि 1952 में हमने चीतों को विलुप्त तो घोषित कर दिया, लेकिन उनके पुनर्वास के लिए दशकों तक सार्थक प्रयास नहीं किए।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की इस बात को लेकर कई विरोधाभासी तथ्य सामने आ रहे हैं। कई मीडिया रिपोर्ट्स और कांग्रेस नेता इस बात को सामने रख चुके हैं कि देश में चीता लाने का प्रयास कई दशकों से चल रहा था। यहाँ तक कि 2008-09 में प्रोजेक्ट चीता तैयार किया था। इसके लिए अधिकारी नामीबिया तक गए और नामीबिया से चीते लाने की सहमति बनी थी लेकिन यह माना जा रहा है कि मामला सुप्रीम कोर्ट जाने से अंजाम तक नहीं पहुंच सका।

दैनिक भास्कर की एक रिपोर्ट में मप्र कैडर के 1961 बैच के आईएएस एमके रंजीत सिंह ने चीता लाने की पूरी कवायद को सामने रखा है। रंजीत सिंह ने बताया कि 1972 में भारत को फिर से चीतों का घर बनाने का आइडिया उन्होंने सबसे पहले दिया। रंजीत सिंह के मुताबिक मैंने चीतों को देश में फिर से बसाने की पहल 50 साल पहले की थी। देश में पहला वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम 1972 में बना था। उस समय ईरान से चीते लाकर भारत में बसाने का एक ड्राफ्ट तैयार किया था। भारत और ईरान सरकार के बीच 1973 में एग्रीमेंट हुआ था। भारत को ईरानी चीते और ईरान को भारत के शेर चाहिए थे। ईरान में जिस सरकार से भारत ने एग्रीमेंट किया था, वह सत्ता से बेदखल हो गई। ईरान की नई सरकार को वाइल्ड लाइफ में कोई रुचि नहीं थी, इसलिए बात आई-गई हो गई।

दैनिक भास्कर की एक रिपोर्ट में रंजीत सिंह के हवाले से लिखा गया कि इसके बाद 1985 में फिर चीतों को लाने की कवायद शुरू की, लेकिन तब तक ईरान में चीतों की संख्या तेजी से कम हो गई थी। इसके बाद यह प्रोजेक्ट ठंडे बस्ते में चला गया। हमने नए सिरे से 2008-09 में प्रोजेक्ट तैयार किया। मैं नामीबिया गया और फिर केंद्र सरकार से बातचीत की। इसके बाद केंद्र और राज्य सरकार के बीच नामीबिया से चीते लाने की सहमति बनी थी। उस दौरान तत्कालीन वन एवं पर्यावरण मंत्री जयराम रमेश ने एक कमेटी बनाई थी, जिसका अध्यक्ष मुझे बनाया गया। सितंबर 2012 में प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की अध्यक्षता में राष्ट्रीय वन्यजीव बोर्ड की छठवीं बैठक में चीतों को बसाने का विषय आया। उनका मत था कि पालपुर कूनो, शाहगढ़ और नौरादेही में उस क्रम में सबसे अच्छी क्षमता थी।

मामला 2010 में सुप्रीम कोर्ट पहुंच गया था। अदालत ने 2013 में आदेश दिया था कि कूनो में चीते नहीं लायन बसाए जाएंगे। रंजीत सिंह ने बताया कि मेरी सिफारिश पर केंद्र सरकार ने रिव्यू पिटीशन दायर की, जिसमें कहा गया कि कोर्ट अपने आदेश पर पुनर्विचार करे। सुप्रीम कोर्ट ने जनवरी 2020 में नया आदेश जारी किया। इसमें कहा गया कूनो में चीते बसाए जा सकते हैं।

दूसरी और कांग्रेस विधायक और पूर्व मंत्री जीतू पटवारी ने भी प्रोजेक्ट टाइगर को लेकर एक टाइमलाइन शेयर की है। जिसमे सिलसिलेवार घटनाक्रम का जिक्र है

गौरतलब है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शनिवार को अपने जन्मदिन के मौके पर नामीबिया से आए चीतों को बाड़ों में छोड़ा। प्रधानमंत्री इस दौरान चीतों की तस्वीरें भी लेते नज़र आये। पीएम मोदी ने कूनो में स्कूली बच्चों और चीता मित्रों से भी संवाद किया। इसके बाद प्रधानमंत्री श्योपुर जिले की कराहल तहसील मुख्यालय में महिला स्व-सहायता समूहों का सम्मेलन में शामिल हुए। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और कई दिग्गज नेता इस अवसर पर मौजूद थे। इससे पहले ग्वालियर एयरबेस पहुँचने पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का राज्यपाल मंगूभाई पटेल, मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और परेश के गृहमंत्री नरोत्तम मिश्रा ने उनका स्वागत किया। यहां से वे कूनो के लिए रवाना हुए।

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