पाॅवर प्लांट में कोयले की कमी, प्राइवेट सेक्टर को फायदा पहुंचाने का ‘हथकंडा’?

पाॅवर प्लांट में कोयले की कमी को लेकर उठ रहे सवाल, प्राइवेट सेक्टर को फायदा पहुंचाने की साजिश का आरोप।

नई दिल्ली (जोशहोश डेस्क) देश के पाॅवर प्लांट्स में कोयले का संकट इन दिनों सुर्खियों में है। देश के साथ मध्यप्रदेश के चारों थर्मल पाॅवर प्लांट्स में भी कोयले की कमी की खबरें हैं। मीडिया रिपोर्ट्स में बताया जा रहा है कि पाॅवर प्लांट्स के पास कुछ दिनों का कोयला ही शेष है। दूसरी ओर पाॅवर प्लांट्स में कोयले की कमी को लेकर सवाल भी उठ रहे हैं और इन ख़बरों को प्राइवेट सेक्टर को फायदा पहुंचाने की हथकंडा भी कहा जा रहा है।

एक्टिविस्ट और कोल सेक्टर के जानकार सुदीप श्रीवास्तव के मुताबिक कोयले की कमी से सम्बंधित खबरें एक साजिश का हिस्सा हैं। सुदीप श्रीवास्तव ने आशंका जताई है कि कोयले की कमी का माहौल बनाकर कोयला धारक क्षेत्र (अर्जन और विकास) अधिनियम, 1957 ( Coal Bearing Areas (Acquisition and Development) Act, 1957 ) में संशोधन किया जा सकता है जिसका सीधा लाभ प्राइवेट सेक्टर को होगा।

सुदीप श्रीवास्तव ने कोल इंडिया लिमिटेड और एससीसीएल का डेटा देते हुए सवाल उठाया कि कोयले का उत्पादन बीते साल की तुलना में ज्यादा ही हुआ है, ऐसे में दिल्ली या अन्य पाॅवर प्लांट तक कोयला क्यों नहीं पहुंच रहा? इसके लिए जिम्मेदार कौन है?

सुदीप श्रीवास्तव ने ने आकड़ो के हवाले से बताया कि अप्रैल से सितंबर की अवधि में कोल इंडिया लिमिटेड के उत्पादन में 5.8 प्रतिशत का इजाफा हुआ है। बीते साल 236 मिलियन टन की तुलना में इस बार 249.8 मिलियन टन कोयले का उत्पादन हुआ है। वहीं एक अन्य पीएसयू एससीसीएल में भी बीते साल 18 मिलियन टन की तुलना में 30 मिलियन टन उत्पादन हुआ है । इसके बाद भी सरकार द्वारा कोयले की कमी की बात कहना आश्चर्यजनक है-

सुदीप श्रीवास्तव के मुताबिक इस अवधि में कैप्टिव कोल माइन्स का उत्पादन भी बढ़ा है। इसके बाद भी देश के पाॅवर प्लांट्स में कोयला क्यों नहीं पहुंच रहा है? उन्होंने लिखा है कि क्या यह कोई गेम प्लान का हिस्सा है जिससे भविष्य में और अधिक कोल ब्लाॅक की जरूरत का नैरेटिव तैयार किया जा सके?

उन्होंने अपने ट्विटर थ्रेड पर दिल्ली के ऊर्जा मंत्री के उस बयान का भी हवाला दिया जिसमें कहा गया है कि कोयले की आपूर्ति लगातार नहीं हो पा रही है। उन्होंने सरकार से कोयले के उत्पादन और आपूर्ति का डाटा भी साझा करने की मांग की। साथ ही उन्होंने मांग और आपूर्ति के आंकड़ों भी दिए और कहा कि हाल ही ऐसा कुछ नहीं हुआ जिससे आपूर्ति अचानक बढ़ गई हो और कोयले का संकट आ गया हो-

सुदीप श्रीवास्तव के मुताबिक देश में बिजली की अधिकतम मांग 2 लाख मेगावाट से ज्यादा नहीं होती। यह मांग भी केवल कुछ दिन ही रहती है। अगर देश में प्रतिदिन बिजली की औसत मांग की बात की जाये तो ये करीब 1.50 लाख मेगा वाट ही रहती है। इसमें से थर्मल पॉवर प्लांट से बिजली के उत्पादन की जरुरत करीब 1 लाख मेगा वाट ही है। जिसके लिए साल भर में 500 मिलियन टन कोयले की उत्पादन जरूरी है और सिर्फ कोल इंडिया लिमिटेड ही साल भर में 600 मिलियन टन कोयले का उत्पादन करता है।

गौरतलब है कि कुछ मीडिया रिपोर्ट में यह कहा जा रहा है कि कोयले की कमी से बिजली की आपूर्ति का संकट खड़ा हो सकता है। ज़्यादातर बिजली उत्पादन करने वाले पॉवर प्लांट्स में कोयला का स्टॉक ख़त्म होने की बात कही जा रही है। कुछ पॉवर प्लांट्स के पास तो 2 से 3 दिन का ही कोयले का स्टॉक होने की बात कही जा रही है। देश में ज़्यादातर बिजली का उत्पादन कोयले से ही होता है। ऐसे में इन रिपोर्ट्स को लेकर चिंता जताई जा रही है।

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