रंज में भी तंज: राष्ट्रीय चौकीदार के रवैये को देख क्या सोचती होगी जनरल रावत की आत्मा ?

पत्रकार राकेश अचल का प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के संबोधन पर सवाल, झूठ की गवाही देती है सरजू नहर।

सियासत में ‘ रंज ‘ में डूबे चेहरे किसी महावीर की चिता की आग ठंडी होने के चौबीस घंटे बीतने के पहले ही ‘ तंज ‘ में डूब सकते हैं। ऐसा इस देश ने पहली बार देखा और सुना है। ऐसा कर पाना यकीनन 56 इंच के सीने वाले का ही काम हो सकता है। देश के सम्माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने ऐसा कर दिखाया। वे सरकारी ट्विटर हैंडिल हो या सरकारी समारोह सबका इस्तेमाल राजनीतिक तंज कसने के लिए करने के अभ्यस्त हो गए हैं।

उत्तर प्रदेश की 44 साल पुरानी सरजू नहर योजना का फीता काटते हुए माननीय ने अपने प्रमुख प्रतिद्वंदी उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव पर तंज कसा। मजा आ गया। हालांकि ये तंज उनके जनरल विपिन रावत के आकस्मिक निधन पर दिखाए गए रंज की पोल भी खोल गया। कोई भी इंसान इतना पत्थर दिल नहीं हो सकता की इतने बड़े हादसे के चौबीस घंटे के भीतर ही हाथ-मुंह धोकर राजनीतिक व्यंग्यबाण चलने में व्यस्त हो जाए।

राकेश अचल

माननीय के इतिहास ज्ञान ने यहां भी धोखा दे दिया और गवाही देना पड़ी पवित्र सरजू नहर को। उन्होंने कहा कि 10 हजार करोड़ रूपये की ये योजना भाजपा ने पांच साल में पूरी कर दिखाई। इसके बिलम्वित होने के लिए अखिलेश सरकार जिम्मेदार है। किसी ने माननीय को बताया ही नहीं कि ये योजना जब शुरू हुई थी तब उत्तर प्रदेश में अखिलेश नहीं बाबू बनारसीदास मुख्यमंत्री थे और तब पहले चरण में मात्र 79 करोड़ रूपये इस योजना के लिए मंजूर किये गए थे।

बाबू बनारसीदास के बाद यूपी में 24 मुख्यमंत्री और आये-गए, इनमें से चार भाजपा के भी थे। सवाल ये है कि क्या इस परियोजना में बाक़ी के दो दर्जन मुख्यमंत्रियों का कोई योगदान नहीं है? इस परियोजना की नींव जब रखी गयी तब देश की चौथी प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी थीं, उनके बाद11 और प्रधानमंत्री आये-गए, इनमें से दो बार भाजपा के भी प्रधानमंत्री रहे, क्या इन सबका इस परियोजना से कोई लेना-देना नहीं है? बाबा कहते हैं कि परियोजना का 50 फीसदी काम योगी राज में हुआ ,तो क्या योगी जी के पास कोई जादू की छड़ी है, कि जो काम 44 साल में नहीं हो पाया उसे बाबा ने पांच साल में पूरा कर दिया ?

सरजू नहर ही नहीं यमुना एक्सप्रेस वे को भी पता है कि मोदी राज हो या योग राज कहीं भी झूठ की कोई इंतिहा नहीं है। आप झूठ पर झूठ बोलते जाइये ,कोई रोकने वाला नही। झूठ पकड़ने वाले आपकी गोदी में बैठे हैं और अब तो मदांध होकर खबरें पढ़ने लगे हैं। झूठ बोलने या झूठ परोसने पर हमारे संविधान में कोई रोक-टोक नहीं है। पहले के नेता भी झूठ बोलते थे और खूब बोलते थे लेकिन इतनी खूबसूरती से बोलते थे कि झूठ पकड़ में नहीं आता था ,किन्तु आजकल तो नंगा झूठ बोला जाता है जिसे अँधा भी पकड़ सकता है।

बहरहाल सवाल ये है कि देश के प्रमुख होने के सौभाग्य को हासिल करने के बाद एक चेहरे पर कितने चेहरे लगा सकते हैं ? आपकी रग-रग में सियासत भरी है । ये अच्छी बात है किन्तु हृदयहीन सियासत का देश की राजनीति में कोई स्थान नहीं है। इसे आज नहीं तो कल खारिज किया ही जाएगा,किया ही जाना चाहिए। आखिर जनरल रावत की आत्मा क्या सोचती होगी? राष्ट्रीय चौकीदार के इस रवैये को देखकर? भगवन के दिल में रंज चौबीस घंटे भी नहीं ठहर पाया और तंज में बदल गया ?

यकीनन प्रधानमंत्री जी के तमाम फैसलों से देश की तमाम जनता सहमत हो सकती है। उसे असहमति का अधिकार भाजपा ने नहीं बल्कि संविधान में दिया है इसलिए उनके बारे में कहा जा सकता है।

अपने अनुभव के आधार पर मैं कह सकता हूँ कि माननीय भारत के अब तक के प्रधानमंत्रियों में से सबसे ज्यादा मायावी और संगदिल प्रधानमंत्री है। संगदिली ही नहीं बल्कि मठ्ठरता भी आपके भीतर कूट-कूट कर भरी है। आपके लिए झूठ बोलना और मंच पर हास्य कवियों की तरह अभिनय करना बहुत आसान काम है पद की गरिमा से आपका कोई भी लेना-देना नहीं है।

भारत में जिस प्रगति की बात की जाती है उसकी पोल तब खुल जाती है जब माननीय का ट्विटर खाता हैक हो जाता है और उससे बिटक्वाइन के बारे में दनादन ट्वीट हो जाते हैं। आप कल्पना कर सकते हैं कि जिस देश में राष्ट्रीय चौकीदार को ही साइबर सुरक्षा हासिल नहीं है उस देश के आम नागरिक को साइबर अपराधियों से कोई कैसे बचा सकता है ? देश में साइबर सुरक्षा को सेंध लगाकर रोजाना जनता को ठगने वालों के संगठित गिरोह एक जमाने में चंबल में रहे डाकू गिरोहों से ज्यादा हो गए हैं,लेकिन कोई फ़िक्र नहीं करता।

देश की राजनीति किसी जनरल या सीडीएस के लिए नहीं ठहर सकती ,जबकि उसे ठहरा जाना चाहिए। बजाय नए सीडीएस की व्यवस्था करने के लिए यदि देश का प्रधानमंत्री चुनाव अभियान में जुट जाए तो आप देश और देश की सरकार की प्राथमिकताओं का अनुमान लगा सकते हैं। सरकार की प्राथमिकता में जैसे कल तक किसान नहीं थे वैसे ही आज सांसद भी नहीं है। राज्य सभा से निलंबित सांसद संसद के बाहर धरने पर बैठे हैं किन्तु प्रधानमंत्री को तो छोड़िये संसदीय कार्यमंत्री और खुद राज्य सभा के सभापति को उनकी फ़िक्र नहीं है। सांसद आखिर किसानों की तरह पूरे साल तो धरना नहीं दे सकते ?

बहरहाल जो भी हो देश की नदियाँ देश की जनता के सामने परोसे जा रहे नित-नए झूठ की चश्मदीद गवाह बन रहीं है। गंगा,जमुना के बाद अब सरजू का नाम भी गवाहों की इस सूची में शामिल हो गया है। नदियों की गवाही लोकतंत्र के कितने काम की है ये आने वाला समय ही बतलायेगा।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)

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