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क्या ‘अच्छे दिन’ की परिभाषा-अफगानिस्तान से ज्यादा सुकून है ?

कुछ लोग अफगानिस्तान में अराजकता की आड़ में देश के ज्वलंत मुद्दों पर पर्दा डालने का प्रयास भी कर रहे हैं।

भोपाल (जोशहोश डेस्क) अफगानिस्तान में तालिबान के कब्जे के बाद से देश में बयानबाजी का दौर लगातार जारी है। कुछ लोग तालिबानी तानाशाही का भी समर्थन कर रहे हैं तो कुछ लोग अफगानिस्तान में अराजकता की आड़ में देश के ज्वलंत मुद्दों पर पर्दा डालने का प्रयास भी कर रहे हैं। इनमें सत्ता पक्ष के लोग और उनके समर्थक भी शामिल हैं।

हाल ही में भारतीय जनता पार्टी कटनी के जिला अध्यक्ष रामरतन ने पेट्रोल और डीजल के बढ़ते दामों पर पूछे एक सवाल के जवाब में कहा था कि आप तालिबान के शासन वाले अफगानिस्तान चले जाओ। वहां पेट्रोल 50 रुपए है। वहां से भरवाकर ले लाओ। वहां भरवाने वाला कोई नहीं हैं। कम से कम यहां पर शांति तो है। भाजपा के टिकट पर हरियाणा विधानसभा चुनाव हार चुकी रेसलर बबिता फोगट ने भी कुछ ऐसा ही ट्वीट किया था ।

कटनी भाजपा जिला अध्यक्ष रामरतन और बबिता फोगट जैसे तर्क सोशल मीडिया पर भी वायरल हो रहे हैं। ऐसे में सवाल यह उठता है कि क्या देश में शांति और सुकून के लिए पेट्रोल-डीजल का मंहगा होना जरूरी है? क्या जिन देशों में पेट्रोल-डीजल सस्ता है वहां शांति और सुकून नहीं है?

सोशल मीडिया पर भी पेट्रोल-डीजल की कीमतों को अफगानिस्तान की अराजकता से जोड़ने पर तीखी प्रतिकियाएं दिखाई दे रही हैं-

बड़ी बात यह है कि भारत सरकार ने भी अब तक तालिबान पर अपना रुख बहुत ज्यादा स्पष्ट नहीं किया है। सरकार ने अपनी पहली प्राथमिकता वहां से अपने नागरिकों को निकालना ही बताया है। वैसे भी अफगानिस्तान से भारत के संबंध मित्रवत रहे हैं और वहां भारत ने बडा निवेश भी किया है। ऐसे में सरकार भी तालिबान को लेकर जल्दबाजी नहीं दिखा रही लेकिन तालिबान को लेकर अपने अपने हित साधने बयानबाजी का दौर जमकर जारी है।

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