तीन साल में बदले CM शिवराज, क्या वोट के लिए ‘अटल जी’ को भूले?

मुख्यमंत्री शिवराज की तीन साल पुरानी मांग फिर चर्चाओं में, वोट बैंक की रणनीति को माना जा रहा बदलाव का कारण।

भोपाल (जोशहोश डेस्क) मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को उनकी स्पष्टवादिता और सटीक दष्टिकोण के लिए जाना जाता है लेकिन भोपाल के हबीबगंज स्टेशन को लेकर मुख्यमंत्री शिवराज अपनी तीन साल पुरानी अपनी ही मांग को ही भूल गए। बड़ी बात यह है कि शिवराज की यह मांग पूर्व प्रधानमंत्री और भाजपा के शीर्ष पुरुष अटल बिहारी वाजपेयी से जुड़ी थी।

दरअसल साल 2018 विधानसभा चुनाव से पहले मुख्यमंत्री शिवराज ने हबीबगंज स्टेशन का नामकरण अटल बिहारी वाजपेयी के नाम पर करने की बात कही थी। उन्होंने एक ट्वीट करते हुए यह कहा था कि हम रेल मंत्री से निवेदन करेंगे कि विश्वस्तरीय हबीबगंज स्टेशन का नामकरण भी अटल जी के नाम पर हो-

एक सप्ताह पहले तक भी यह तय माना जा रहा था कि हबीबगंज स्टेशन का नाम बदलकर दिवंगत पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के नाम पर ही रखा जाएगा लेकिन अचानक ही जनजातीय गौरव दिवस से ठीक पहले सरकार ने इसका नाम गौंड रानी कमलापति के नाम पर रखे जाने के लिए केंद्र सरकार को पत्र लिख दिया। केंद्र द्वारा राज्य सरकार के पत्र पर मुहर लगाए जाने के बाद अब इस स्टेशन का नाम रानी कमलापति स्टेशन हो गया है।

सवाल यह है कि अचानक ही मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने अपनी ही तीन साल पुरानी मांग को दरकिनार क्यों कर दिया? जबकि वह मांग भाजपा के संस्थापक सदस्य अटल बिहारी वाजपेयी से जुड़ी हुई थी? अचानक इस बदलाव का कारण सियासी गलियारों में भाजपा की वोट बैंक की रणनीति को माना जा रहा है।

इस बदलाव का श्रेय 2018 के विधानसभा चुनाव को जाता है। जब आदिवासी समुदाय का वोट बैंक भाजपा से झिटक गया था और भाजपा 15 साल बाद प्रदेश की सत्ता से बाहर हो गई थी। हालांकि ज्योतिरादित्य सिंधिया के दलबदल से भाजपा सत्ता में दोबारा काबिज तो हो गई लेकिन आदिवासी वोटबैंक को लेकर उसकी चिंता बनी रही।

सियासी नजरिए से देखा जाए तो राज्य में आदिवासी बहुल 47 आरक्षित सीटें है इनमें से साल 2008 के विधानसभा चुनाव में भाजपा ने 29 सीटों पर जीत दर्ज की थी। वहीं साल 2013 के विधानसभा चुनाव में यह आंकड़ा बढ़ा और भाजपा के 31 आदिवासी विधायक जीते लेकिन 2018 में कहानी उलट गई। इस विधानसभा चुनाव में 47 आरक्षित सीटों में बीजेपी को केवल 16 सीटों पर ही जीत मिलीं।

यही कारण रहा कि हाल ही में हुए आदिवासी बहुल जोबट विधानसभा सीट पर हुए उपचुनाव में भाजपा ने न सिर्फ पूरी ताकत झोंकी बल्कि कांग्रेस की सुलोचना रावत को अपने पाले में लेकर टिकट तक थमाया। इस रणनीति से जीत दर्ज करने वाली भाजपा की निगाहें अब 2023 विधानसभा चुनाव पर हैं और भाजपा आदिवासी वोट बैंक पर दोबारा पैठ बनाने के लिए पुरजोर प्रयास कर रही है।

भोपाल में जननायक बिरसा मुंडा की जयंती पर आयोजित मेगा इवेंट इसी रणनीति की शुरुआत माना जा रहा है। साथ ही देश के पहले विश्व स्तरीय स्टेशन का नाम भी गौंड रानी कमलापति के नाम पर रख भाजपा ने आदिवासी समुदाय के सामने बड़ा दांव खेल दिया है। यह बात अलग है कि इसके लिए भाजपा को अपने ही शीर्ष पुरुष अटल बिहारी के नाम को दरकिनार करना पड़ा।

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