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महाराष्ट्र: गठबंधन की कमजोर कड़ी नहीं थी कांग्रेस, कमलनाथ के सामने साबित

महाराष्ट्र की गठबंधन सरकार में कांग्रेस सबसे कमजोर कड़ी, स्थापित किए जा रहे झूठ की खुली कलई,

मुंबई/ भोपाल (जोशहोश डेस्क) महाराष्ट्र में चल रहे सियासी संकट के बीच शिवसेना विभाजन की कगार पर आ खड़ी हुई है। एकनाथ शिंदे की बगावत के बाद उद्धव ठाकरे के नेतृत्व में चल रही गठबंधन सरकार पर खतरा गहरा चुका है। वहीं इस पूरे घटनाक्रम ने उस स्थापित किए जा रहे झूठ की कलई खोल दी जिसमें लम्बे समय से यह कहा जा रहा था कि महाराष्ट्र की गठबंधन सरकार में कांग्रेस सबसे कमजोर कड़ी है।

विधानसभा चुनाव के नतीजों के बाद चले चले सियासी दांवपेंच के बाद राज्य में शिवसेना, एनसीपी और कांग्रेस के गठबंधन ने सरकार बनाई थी। सरकार के पूरे कार्यकाल में एक बात विपक्ष और मीडिया के एक वर्ग ने स्थापित करनी चाही कि कांग्रेस इस गठबंधन की सबसे कमजोर कड़ी है लेकिन यह बात बुधवार को कमलनाथ के सामने गलत साबित हो गई।

इस बड़े सियासी घटनाक्रम को देखते हुए कांग्रेस ने मध्यप्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष और सीनियर लीडर कमलनाथ को अपना पर्यवेक्षक बनाया था। बुधवार को कमलनाथ की मौजूदगी में विधायक दल की बैठक में कांग्रेस के 44 में से 41 विधायक मौजूद रहे। शेष तीन विधायक भी कमलनाथ के संपर्क में बने रहे।

कमलनाथ की मौजूदगी में हुई इस बैठक में जिन कांग्रेस विधायकों को गठबंधन की कमजोर कड़ी माना जा रहा था वे न सिर्फ एकजुट थे बल्कि महाविकास अगाडी सरकार को समर्थन के लिए भी प्रतिबद्ध थे। कमलनाथ ने खुद विधायक दल की बैठक के बाद सभी विधायकों का सरकार को समर्थन जारी रहने की बात मीडिया से चर्चा में कही थी।

दूसरी ओर इस घटनाक्रम से कमलनाथ एक बार फिर राष्टीय स्तर पर ताकतवर होकर सामने आए। एमपी में सरकार गिरने के बाद भी पार्टी में कमलनाथ की राष्टीय स्तर पर स्वीकार्यता और अनिवार्यता कई मौकों पर साबित हो चुकी है। यही कारण रहा कि सियासी संकट के बीच पार्टी आलाकमान ने उनकी वरिष्ठता और अनुभव को देखते हुए उन्हें बड़ी जिम्मेदारी सौंपी।

मध्यप्रदेश के स्थानीय निकाय चुनावों में भी कमलनाथ को पार्टी आलाकमान फ्री हैंड दे चुकी है। कमलनाथ की रणनीतिक सूझबूझ से ही कांग्रेस अनुशासित और संगठन की दृष्टि से मज़बूत कही जाने वाली भाजपा से कई दिन पहले अपने मेयर कैंडिडेट का नाम तय चुनाव प्रचार में उतार चुकी थी।

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