अशोक चतुर्वेदी
भोपाल. भारतीय जनता पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष वीडी शर्मा की नई कार्यकारिणी के साथ ही भाजपा और ज्योतिरादित्य सिंधिया (Jyotiraditya Scindia) की डील एक्सपोज हो गई। सिंधिया के भाजपा में आने के बाद के घटनाक्रम और वीडी की टीम को देखने से एक बात साफ है कि भाजपा और ज्योतिरादित्य सिंधिया की डील केवल सत्ता के लिए है संगठन के लिए नहीं।
ज्योतिरादित्य सिंधिया ने अपने जिन समर्थकों के साथ कांग्रेस से किनारा किया था वे सत्ता के भागीदार तो बने लेकिन संगठन में उनके समर्थकों को न के बराबर जगह मिली है। यानी भाजपा ने भी साफ संदेश दे दिया है कि ज्योतिरादित्य सिंधिया और उनके समर्थक सत्ता के साथी हो तो सकते हैं लेकिन संगठन में भाजपा की विचारधारा में पले-बढ़े और परिपक्व हुए कार्यकर्ताओं को ही प्राथमिकता मिलेगी।
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भाजपा ने उपचुनाव के बाद प्रदेश भर में प्रशिक्षण वर्ग आयोजित किए थे। मंडल स्तर पर आयोजित इन प्रशिक्षण वर्ग में भाजपा के दिग्गज नेताओं तक ने एक कार्यकर्ता के रूप में शिरकत की थी। यहां तक मुख्यमंत्री शिवराज सिंह भी प्रशिक्षण वर्ग में एक कार्यकर्ता के रूप में काॅपी-पेन के साथ नजर आए थे।
इन प्रशिक्षण वर्ग को कांग्रेस से आए कार्यकर्ताओं को भाजपाई विचारधारा में ढालने की कवायद भी माना गया। साथ ही यह संदेश भी दिया गया कि कांग्रेस के कार्यकर्ताओं द्वारा भाजपा का झंडा उठा लेना ही काफी नहीं होगा। उन्हें भाजपा की विचारधारा को भी आत्मसात करना होगा और उसके मुताबिक ही संगठन में वह जगह बना पाएगा।
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जहां तक सत्ता का सवाल है उसमें सिंधिया की भागेदारी पहले दिन से ही नजर आई। सिंधिया के साथ भाजपा में शामिल हुए विधायकों को मंत्री पद से नवाजा गया। सभी को भाजपा के टिकट पर चुनावी मैदान में भी उतारा गया चुनाव के बाद सिंधिया के दबाव में तुलसी सिलावट और गोविंद राजपूत को न सिर्फ मंत्री बनाया गया बल्कि मुंहमांगे विभाग भी दिए गए।
यानी भाजपा सिंधिया को सत्ता में तो भाव दे रही है लेकिन संगठन में सिंधिया दरकिनार हैं। वैसे भी मध्यप्रदेश में भाजपा का संगठन देश में सबसे बेहतर माना जाता है। इसकी बानगी उमा भारती के हश्र से देखी समझी जा सकती है। व्यापक जनाधार वाली उमा भारती ने जब भाजपा से बगावत की तो भाजपा ने अपने अनुशासित संगठन की दम पर ही पूरी उन्हें पूरी तरह साइडलाइन कर दिया था।
भाजपा के संगठन की ताकत 28 सीटों पर हुए उपचुनाव में भी दिखाई दी। कांग्रेस से आए चेहरे भाजपा के टिकट पर 25 सीटों पर मैदान में उतरे थे। यह भाजपा संगठन की ही ताकत थी कि बिना किसी बड़ी बगावत के इन 25 दलबदलुओं को बूथ स्तर तक स्वीकारा गया बल्कि उपचुनाव में कार्यकर्ताओं की मेहनत बड़ी जीत के रूप में दिखाई भी दी।
ऐसे में अपने संगठन को लेकर भाजपा और संघ कोई समझौता नहीं चाहते। यही नहीं भाजपा के नाराज दिग्गजों को भी वीडी की कार्यकारिणी से यह संदेश दे दिया गया कि आपकी नाराजगी संगठन के लिए महत्व नहीं रखती और संगठन से ही नेता हैं नेताओं से संगठन नहीं।
अब यह कहा जा रहा है कि राज्य की सत्ता के साथ नगरीय सत्ता यानी नगरीय निकाय के चुनाव में जरूर सिंधिया के कुछ समर्थकों को उपकृत किया जा सकता है। बाकी निगम मंडलों में नियुक्तियों में भी सिंधिया की भागेदारी हो सकती है लेकिन संगठन के लिए सिंधिया समर्थकों को भाजपाई विचारधारा के साथ लंबा तालमेल करना ही होगा।