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झारखंड: RPN के साइड इफेक्ट का डैमेज कंट्रोल, कांग्रेस ने उठाया बड़ा कदम

आपसी कलह से जूझती झारखंड कांग्रेस में जान फूंकने की तैयारी, नए प्रदेश कांग्रेस प्रभारी अविनाश पांडेय ने किया संगठन में बड़ा बदलाव।

दीपक हेतमसरिया (जोशहोश रांची) झारखंड कांग्रेस में बड़ा सांगठनिक फेरबदल हुआ। राज्य में कांग्रेस के पूर्व प्रभारी आरपीएन सिंह के भाजपा में जाने के बाद नियुक्त नए प्रदेश कांग्रेस प्रभारी अविनाश पांडेय ने सभी जिलों के लिए संयोजक पदों पर नियुक्ति की घोषणा की है। साथ ही, सभी जिलों में सदस्यता प्रभारी, समन्वयक और सह-समन्वयक भी बनाए गए हैं। लंबे समय के बाद ऐसा कदम उठाया गया है। इसे आपसी कलह से जूझती झारखंड कांग्रेस में जान फूंकने की तैयारी के बतौर देखा जा रहा है।

झारखंड बनने से अब तक पहली बार इस राज्य की सत्ता में कांग्रेस की हैसियत इतनी मजबूत हुई है। झारखंड सरकार में कांग्रेस के चार मंत्री हैं। उनके पास कई महत्वपूर्ण विभाग हैं। इसके बावजूद अपने ही मंत्रियों के खिलाफ कतिपय विधायकों के निरंतर अभियान ने कांग्रेस कार्यकर्ताओं का मनोबल कमजोर कर रखा है।

वर्ष 2000 में झारखंड बना था। उस वक्त अविभाजित बिहार में हुए चुनाव में झारखंड से कांग्रेस को 11 सीटों पर सफलता मिली थी। विधानसभा में कुल 81 सीटें हैं। वर्ष 2005 के चुनाव में कांग्रेस की सीटें घटकर मात्र नौ रह गईं। वर्ष 2009 में 14 सीटों पर सफलता मिली। लेकिन वर्ष 2014 में बुरी तरह हार का सामना करना पड़ा। कांग्रेस मात्र छह सीटों में सिमट गई। लेकिन 2019 का चुनाव कांग्रेस के लिए अच्छा साबित हुआ। राज्य गठन से अब तक की सर्वाधिक 18 सीटें मिली। झामुमो को भी 30 सीटें मिलने के कारण दोनों पार्टिंयों को निर्णायक बहुमत मिला और हेमंत सोरेन के नेतृत्व में सरकार बन गई।

दिलचस्प बात यह है कि राज्य की राजनीति में बढ़ी हुई इस हैसियत का स्वाद कांग्रेस कार्यकर्ताओं और संगठन को नहीं मिल पाया। इसका कारण यह है कि झारखंड कांग्रेस के पूर्व प्रभारी आरपीएन सिंह की प्रतिबद्धता सदैव संदेहास्पद रही। उनकी कार्यशैली भी अलग किस्म की थी। कई बार चर्चा होती रही कि उनके सहयोग से राज्य में सरकार को गिराकर बीजेपी की सरकार बनाई जाएगी। ऐसा तो नहीं हुआ, लेकिन खुद आरपीएन सिंह भाजपा में चले गए। इससे झारखंड कांग्रेस के कर्मठ नेताओं ने राहत की सांस ली।

उनके बाद अविनाश पांडे को झारखंड कांग्रेस का प्रभारी बनाया गया। प्रदेश अघ्यक्ष के पद पर राजेश ठाकुर को लाकर भी कांग्रेस ने एक नया प्रयोग किया। लेकिन संगठन के स्तर पर कोई बड़ा काम होने से पहले कांग्रेस के चार विधायकों ने अपने ही मंत्रियों के खिलाफ बगावत का बिगुल फूंककर राज्य सरकार के लिए खतरे की घंटी बजा दी।

फिलहाल राज्य के सभी जिलों में नए पदाधिकारियों की नियुक्ति करके संगठन सशक्तिकरण अभियान शुरू किया गया है। इससे यह संकेत जरूर मिलता है कि नई टीम ने राज्य में अपनी पकड़ बना ली है। लेकिन विधायकों के असंतोष से निपटने की दिशा में क्या कदम उठाए जाएंगे, यह अब तक साफ नहीं है।

कांग्रेस विधायकों के पास पूर्व प्रभारी आरपीएन सिंह के एक तथाकथित वायदे का सहारा है। उन्होंने ढाई साल बाद कांग्रेस के चारों मंत्रियों के कामकाज की समीक्षा का वायदा किया था। इस बात को कांग्रेस के कुछ विधायक इस रूप में पेश कर रहे हैं मानो ढाई साल बाद सारे मंत्रियों को बदलकर नए मंत्री बनाने का वादा हो। राज्य में कांग्रेस के चार मंत्रियों रामेश्वर उरांव (वित्त मंत्री), बन्ना गुप्ता (स्वास्थ्य मंत्री), बादल (कृषि मंत्री) और आलमगीर आलम (ग्रामीण विकास मंत्री) को बदलकर अन्य विधायकों को मंत्री बनाने की मांग है। लेकिन ऐसी मांग में कांग्रेस कार्यकर्ताओं की कोई दिलचस्पी नहीं दिखती।

यही कारण है कि प्रदेश कांग्रेस नेताओं ने विधायकों को ज्यादा तरजीह देने के बजाय संगठन मजबूत करने पर जोर लगाया है। जिला स्तर के एक कांग्रेस नेता ने नाम की गोपनीयता की शर्त पर कहा कि 2019 के चुनाव में मिली ऐतिहासिक सफलता के बाद यदि आरपीएन सिंह जैसे दोहरे व्यक्तित्व वाले प्रभारी के बजाय किसी कुशल संगठक के हाथ में बागडोर होती, तो आज बात ही कुछ और होती।

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