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दो घंटे 12 मिनिट का उबाऊ-नाटकीय भाषण, अविश्वास प्रस्ताव के साथ क्या कुछ गिरा?

अविश्वास प्रस्ताव पर वरिष्ठ पत्रकार राकेश अचल का आलेख

राजनीति पर रोज भारी मन से लिखना पड़ता है। न लिखूं तो भी कोई पहाड़ नहीं टूटने वालालेकिन लिख देने से बहुत कुछ टूटने से बच जाता है। ठीक इसी तरह संसद में अविश्वास प्रस्ताव गिरने से केंद्र की सरकार नहीं गिरती लेकिन देश का संसदीय आचरण और उसी के साथ देश की सियासत की गिरावट को आप साफ़ देख सकते हैं। अविश्वास प्रस्ताव लाने के लिए विपक्ष और प्रस्ताव गिरने के लिए सरकार को बधाई देते हुए मैं कहना चाहता हूँ कि देश की आजादी के अमृतकाल में किसी अविश्वास प्रस्ताव पर अब तक की ये सबसे दयनीय बहस थी।

अविश्वास प्रस्ताव के जरिये सरकारें गिराने के गिने-चुने उदाहरण ही हैं ,लेकिन अविश्वास प्रस्तावों के जरिये गिरती हुई सरकारों को गिरावट से रोकने के अनेक उदाहरण हैं। अविश्वास प्रस्तावों के जरिये सरकारों को लेकर विश्वास तो पैदा होने का सवाल ही नहीं होता किन्तु सरकारों को आइना अवश्य दिखाया जा सकता है। सरकारें भी इस तरह के अविश्वास प्रस्तावों के जरिये अपनी उपलब्धियां गिनाने के साथ ही अपने भावी कार्यक्रमों के जरिये जनता के मन में बढ़ती आशंकाओं को निर्मूल करने की कोशिश करती हैं। दुर्भाग्य से इस बार ऐसा कुछ नहीं हुआ। जिस विषय को रेखांकित करने के लिए अविश्वास प्रस्ताव लाया गया था वो तो पार्श्व में चला गया और घटिया सियासत सतह पर आ गयी। सांसदों से लेकर प्रधानमंत्री तक व्यक्तिगत मान-अपमान में उलझे रहे।

प्रधानमंत्री माननीय नरेंद्र मोदी जी का 02 घंटे12 मिनिट का भाषण उबाऊ और नाटकीय रहा। बार-बार ये लगा कि वे संसद में नहीं बल्कि भाजपा की किसी आम सभा में बोल रहे थे। उन्होंने लोकसभा अध्यक्ष के बार-बार के निर्देशों की अवहेलना करते हुए न सिर्फ सत्ता पक्ष से नारेबाजी कराई बल्कि सुधीर रंजन चौधरी जैसे सांसदों पर निजी टिप्पणी कर सदन की और अपनी गरिमा को कम किया।

मुमकिन है कि माननीय प्रधानमंत्री जी ने शाबासी का काम किया हो लेकिन मुझे न जाने ऐसा क्यों प्रतीत नहीं हुआ। मै भाजपा या किसी दल का कार्यकर्ता नहीं हूँ, मुझे अंधभक्त भी नहीं कहा जा सकता,किंतु एक नागरिक के नाते मैंने माननीय प्रधानमंत्री जी के भाषण को अद्यतन सुना। हालाँकि इतना लंबा भाषण सुनना एक अग्निपरीक्षा से कम न था।

राकेश अचल

देश में जबसे संसद की कार्रवाई का सीधा-सजीव प्रसारण शुरू हुआ है तभी से देश ने न जाने कितने अविश्वास प्रस्तावों पर बहस सुनी है और प्रधानमंत्रियों के उत्तर भी सुने हैं, मेरी स्मृति में माननीय प्रधानमंत्री मोदी जी का ये भाषण सबसे निम्नस्तर का था। उनके भाषण से मणिपुर हिंसा को लेकर देश के भीतर और देश के बाहर जो सवाल उठाये गए थे उनके उत्तर आये ही नहीं। उन्होंने न देश को सरकार की भूमिका को लेकर आश्वस्त किया और न दुनिया को।

उन्होंने न योरोप और इंग्लैंड की संसदों में मणिपुर मुद्दा उठाये जाने पर एक शब्द कहा और न मणिपुर में हुई हिंसा पर सरकार की असफलताओं के लिए खेद जताया। वे राज्य और दुनिया की जनता को धार्मिक स्थलों को राख किये जाने पर भी कुछ नहीं बोले। उन्होंने न राज्य में सेना भेजने पर कुछ कहा और न जलाये गए धर्मस्थलों को दोबारा बनाये जाने का आश्वासन दिय। वे पीड़ितों के पुनर्वास और मृतकों के आश्रितों को मुआवजा देने कि मांग पर भी मौन रहे। ये सब अहमन्यता का मुजाहिरा नहीं तो और क्या है ?

अविश्वास प्रस्ताव पर प्रधानमंत्री जी से बेहतर और प्रभावी भाषण तो सीताराम बजट बनाने वाली वित्त मंत्री श्रीमती सीतारमण का भाषण था। कम से कम उन्होंने एक स्तर तो कायम रखा। नाटकीयता उनके भाषण में कम न थी किन्तु उसे सुनकर जुगुप्सा पैदा नहीं हुई। प्रधानमंत्री जी के इस दावे पर भी हंसी आयी कि उनकी सरकार द्वारा उठाये गए कदमों का असर आने वाले एक हजार साल तक रहेगा। यही अहमन्यता है। यही घमंड है। वे भूल जाते हैं कि राजनीतिक उपलब्धयों को लोग बहुत जल्द भूल जाते है। कोई भी निर्णय एक हजार साल तक असरकारी नहीं होता।

बहरहाल मुझे लगता है कि कांग्रेस के राहुल गांधी के कथित रूप से अमर्यादित 38 मिनट के भाषण के जबाब में किसी प्रधानमंत्री का 02 घंटे 12 मिनट बोलना और राहुल गांधी की ही तरह अमर्यादित होकर बोलना पद और संस्था की गरिमा के अनुरुप नहीं है। माननीय प्रधानमंत्री मोदी जी ऐसे अभागे प्रधानमंत्री है जिनके भाषण को समूचे विपक्ष ने अनसुना किया। विपक्ष बहिर्गमन कर गया। उनका भाषण केवल संसद की दीवारों ने सुना। टेलीविज के जरिये सीधे प्रसारण से देश ने भी उनका भाषण देखा होगा और जो धारणा बनाई होगी उसका पता आने वाले दिनों में देश के पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों के परिणामो से चलेगा।

प्रधानमंत्री श्री मोदी जी की तरह मैंने भी मान लिया है कि चाहे पूरब जले या पश्चिम,उत्तर जले या दक्षिण मोदी जी हर सूरत में तीसरी बार देश के प्रधानमंत्री बनेंगे। इसके लिए उन्हें न चुनावों के परिणामों की प्रतीक्षा है और न चुनकर आने वाले सांसदों के समर्थन की जरूरत। वे स्वयम्भू प्रधानमंत्री बन चुके हैं। किस ज्योतिषी ने या किसी ख्वाब ने प्रधानमंत्री जी को आश्वस्त कर दिया है कि वे ताउम्र प्रधानमंत्री रहने वाले हैं पंडित जवाहर लाल नेहरू की तरह। मै या कोई और उनके ख्वाब और भाग्य को चुनौती नहीं दे सकता नितिन गडकरी, राजनाथ सिंह और अमितशाह को भी अब प्रधानमंत्री बनने का सपना देखना बंद कर देना चाहिए।

ये काम जनता ही कर सकती है। जनता का काम जनता को करने देना चाहिए। भगवान करे मोदी जी का ख्वाब पूरा हो। लेकिन तब तक देश का क्या कुछ बनना और बिगड़ना है इस पर सभी को निगाह रखना चाहिए। अविश्वास प्रस्ताव पर माननीय के भाषण से एक बात स्पष्ट हो गयी है कि उन्हें न देश की फ़िक्र है और न दुनिया की। जिसे जो कहना है ,कहता रहे । वे करेंगे अपने मन की ही।

अविश्वास प्रस्ताव पर विपक्ष की तैयारी सचमुच लचर रही। विपक्ष जरा सी मेहनत और करता तो मुमकिन है कि परिदृश्य कुछ और होता। विपक्ष को समझ लेना चाहिए कि प्रधानमंत्री न कांग्रेस की भारत जोड़ो यात्राओं से आतंकित हैं और न नए विपक्षी गठबंधन से। उनके पास चुनाव जीतने का जो मन्त्र है वो कुछ और ही है। वे चुनाव को पूंजी के ढंग से जीतना चाहते है। भाजपा ने पिछले दो आम चुनावों को जितना मंहगा बनाया है आने वाला चुनाव उससे भी कहीं ज्यादा मंहगा होगा क्योंकि इस समय सरकार और पूंजीपति एक -दूसरे की मुठ्ठी में है। विपक्ष के पास सत्तापक्ष की पूँजी का मुकाबला करने लायक पूँजी नहीं है । जनता का समर्थन ही विपक्ष की पूँजी हो सकता है। जनता की पूँजी भी सुरक्षित नहीं है। उसे कभी भी खरीदा और लूटा जा सकता है।

हममें से शायद कोई भी आज की राजनीति का प्रभाव देखने के लिए एक हजार साल जीवित रहे। एक हजार साल तो विचारधाराएं भी जीवित नहीं रह पातीं। लेकिन हमें कम से कम अपनी आने वाली पीढ़ियों पर आज की राजनीति के प्रभावों और दुष्प्रभावों पर नजर रखना चाहिए। बच्चों को आज की अदावती, नफरती, संकुचित और अनुदार राजनीति के बारे में खुलकर बताना चाहिए। आने वाली पीढ़ी ‘ केरियरनिष्ठ पीढ़ी है। उसके पास सियासत को समझने या सियासत में हिस्सा लेने की फुरसत नहीं है। इसका लाभ लम्पट राजनीति के पोषक उठा रहे हैं।

भाजपा ने जिन तीन चीजों को ‘ क्विट इंडिया’ के लिए चुना है। उनको समझते हुए विपक्ष को सावधानी पूर्वक आगे बढ़ना होगा ,अन्यथा अधीर रंजन चौधरी ने गुड़ का गोबर किया हो या न किया हो लेकिन स्वप्नलोक में जीने वाले अहमन्य नेता जरूर देश के गुड़ का गोबर कर देंगे। एक पूरी पीढ़ी के दिमाग में नफरत का गोबर भर देंगे।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)

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