योगी के नक्शेकदम शिवराज, क्या भाजपा में लद गए उदार चेहरों के दिन?

शिवराज अपनी उदार छवि के दायरे से बाहर आ योगी आदित्यनाथ के नक्शेकदम दिख रहे हैं। मुद्दा ये कि शिवराज बदल रहे हैं या भाजपा की सियासत?

भोपाल (जोशहोश डेस्क) मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान (Shivraj Singh Chouhan) अपने चौथे कार्यकाल में बदले-बदले नजर आ रहे हैं। शिवराज बतौर मुख्यमंत्री अपनी तीन पारियों में उदार ही दिखे लेकिन इस पारी में वे अपनी उदार छवि के दायरे से बाहर आ योगी आदित्यनाथ के नक्शेकदम दिखाई दे रहे हैं।

हाल ही में नर्मदा जयंती पर होशंगाबाद का नाम नर्मदापुरम किए जाने की घोषणा के बाद शिवराज ने रविवार को नसरुल्लागंज का नाम भेरुन्दा करने का ऐलान कर दिया। इससे पहले शांत और गंभीर रहने वाले शिवराज माफियाओं को भी 10 फीट जमीन में गाड़ने जैसी चेतावनी दे चुके हैं। उनके चौथे कार्यकाल में माफियाओं के मकानों पर जेसीबी चलाई जा रही है। जो पहले तीन कार्यकाल में कभी नहीं चली।अब मुद्दा ये है कि शिवराज बदल रहे हैं या भाजपा की सियासत?

नसरुल्लागंज में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान

शिवराज के बीते तीन कार्यकाल को देखें तो उन्होंने बड़ी से बड़ी राजनीतिक और प्रशासनिक चुनौतियों का सामना बेहद संयम के साथ किया। लगातार तीन कार्यकाल के बाद भी शिवराज 2018 में सत्ता से बाहर तो हुए लेकिन बहुत ही मामूली से अंतर से। इस हार को भी शिवराज की बजाए उनके अंहकारी मंत्रियों की हार माना गया था।

अब सवाल यह है कि शिवराज की सियासत तीन कार्यकाल में भी नहीं बदली तो चौथे कार्यकाल में ऐसा क्या है कि शिवराज को पहला कार्यकाल भी पूरा नहीं कर पाए योगी आदित्यनाथ के माॅडल को अपनाना पड़ रहा है? माॅडल भी वो जो विकास से ज्यादा ध्रुवीकरण की राजनीति पर टिका हो।

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इस पूरी कवायद को शिवराज के बजाए अगर भाजपा में आए बदलाव और उसमें खुद को प्रासंगिक बनाए रखने की जद्दोजहद कहा जाए तो ज्यादा बेहतर होगा। भारतीय जनता पार्टी में जिस तरह योगी आदित्यनाथ और अगली पीढ़ी में तेजस्वी सूर्या जैसे चेहरे आगे आ रहे हैं उसके संकेत को समझा जाना जरूरी है।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जब एक ओर ‘सबका साथ सबका विकास’ का नारा बुलंद करते हैं तो उसी समय योगी आदित्यनाथ और उनके जैसे अन्य भगवा चेहरे धुव्रीकरण की खुली सियासत करते नजर आते हैं। पेट्रोल-डीजल, महंगाई, कृषि कानून को लेकर विरोध की आवाजों के बीच भी भाजपा अपने सियासी भविष्य को लेकर आशंकित नहीं तो उसका कारण शिवराज जैसे उदार चेहरे नहीं बल्कि ब्रांड मोदी में भरोसे के साथ योगी और तेजस्वी सूर्या की दम पर तैयार की जा रही वोटों की फसल है।

दूसरी ओर राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ भी भाजपा में बदलाव की पटकथा तैयार कर चुका है। संघ को उदार चेहरे पहले भी कभी रास नहीं आए। संघ खासकर मध्यप्रदेश में तो भाजपा को पूरी तरह अपने प्रभाव में ले चुका है। वीडी शर्मा के अध्यक्ष बनने और उसके बाद भाजपा में जिस तरह बदलाव की बयार बह रही है उसके संकेत यही हैं कि मध्यप्रदेश में भाजपा अब एक सियासी दल न होकर संघ का मुखौटा भर रह गई है।

अब इस नई भाजपा में खुद को ढाल लेना शिवराज की सियासी मजबूरी ही कहा जा सकता है। यही कारण है कि अपने चौथे कार्यकाल में शिवराज की कार्यशैली पूरी तरह बदली नजर आ रही है।

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