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18 मुख्यमंत्रियों के 18 किस्से : राजमाता सिंधिया की वजह से 19 महीनों के लिए बने थे CM

मध्यप्रदेश के सातवें मुख्यमंत्री गोविंद नारायण सिंह (Govind Narayan Singh) जो राजमाता विजयाराजे सिंधिया की वजह से 19 महीने के लिए सीएम बने थे।

दीपक तिवारी

भोपाल (जोशहोश डेस्क) मध्यप्रदेश के सातवें मुख्यमंत्री गोविंद नारायण सिंह (Govind Narayan Singh) जो राजमाता विजयाराजे सिंधिया की वजह से 19 महीने के लिए सीएम बने थे, जोशहोश मीडिया की सीरीज ’18 मुख्यमंत्रियों के 18 किस्से’ में आप जान सकेंगे, मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्रियों की अनसुनी कहानियां। आज पढ़िए मध्यप्रदेश के सातवें मुख्यमंत्री गोविंद नारायण सिंह (Govind Narayan Singh) के किस्से।

राजनीति में जो न हो, वह थोड़ा है। छोटी सी घटना कई बार इतनी बड़ी बन जाती है कि राजनीति की दिशा ही बदल देती है। कुछ ऐसा ही मध्यप्रदेश की राजनीति में हुआ। अगर द्वारका प्रसाद मिश्र ने पचमढ़ी में राजमाता विजयाराजे सिंधिया को अपमानित नहीं किया होता, तो शायद संविद सरकार नहीं बनती। अपने अपमान का बदला लेने के लिए और एक गौर-कांग्रेसी सरकार को बनाने के लिए जितने संसाधनों और नेतृत्व की आवश्यकता होती है, राजमाता सिंधिया ने वह सब उपलब्ध कराए। जब वे द्वारका प्रसाद मिश्र के विरुद्ध राजनीतिक लड़ाई लड़ रही थीं, उन दिनों वे करेरा से विधायक थीं और मुख्यमंत्री के बंगले के ठीक सामने एक नवाब कालीन महल में अस्थायी तौर पर रहा करतीं थी। उन दिनों मुख्यमंत्री द्वारका प्रसाद मिश्र श्यामला हिल्स पर किराये के मकान निशात मंजिल में रहते थे। राजमाता ने जिस स्थान पर अपना अस्थायी निवास बनाया वहां आज का जहांनुमा पैलेस होटल हैं, जहांनुमा और निशात मंजिल आमने-सामने हैं।

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कांग्रेस की सरकार पराजित हुई

इसके बाद 1967 में लगभग 15 फीसदी विधायकों ने दल-बदल किया। इसके बदले में उनको मुहमांगी रकम दी गई। इसके बाद बुलाई गई विधानसभा में अचानक 36 विधायक जो कांग्रेस की बैंच पर बैठे हुए थे, सभी उठकर विपक्ष की बैंच पर जा बैठे। इस दिन के बारे में राजेन्द्र प्रसाद शुक्ल ने अपनी आत्मकथा में लिखा एक अजीबोगरीब दृश्य था। विधानसभा के गर्भगृह में जैसे रस्साकसी होती है लगभग उसी तरह का दृश्य था। हम लोग जुए में हारे हुए पांडवों के समान द्रौपदी को नग्न होते देख रहे थे और दिल थामकर सिर झुकाए बैठे थे। शुक्ल ने लिखा उस समय विपक्ष के लोगों में से गोविंद नारायण सिंह ने खड़े होकर स्पीकर से कहा कि हम लोग जो कांग्रेस से दल-बदल करके इस तरफ आए हैं, हमारी जान को खतरा है। हम पर दबाव और प्रभाव डाला जाएगा। इसके बाद हुए मतदान में कांग्रेस की सरकार पराजित हुई और इस पराजय के तत्काल बाद द्वारका प्रसाद मिश्र सीधे विधानसबा से राजभवन गए। उन्होंने त्याग पत्र दिया और वहीं मध्यावधि चुनाव की मांग की। राज्यपाल ने त्यागपक्ष मंजूर कर लिया और नई सरकार बनाने तक काम करते रहने को कहा। जैसा कि तय था इस दल की नेता विजयाराजे सिंधिया चुनी गईं और मुख्यमंत्री गोविंद नारायण सिंह (Govind Narayan Singh) बने।  इस तरह गोविंद नारायण सिंह मध्यप्रदेश की पहली गैर-कांग्रेसी सरकार में मुख्यमंत्री बने थे और वे विधायक जो कांग्रेस से नाराज होकर गए थे, उनमें से ज्यादातर को मंत्री बना दिया गया।  

30 जुलाई को गोविंद नारायण ने मुख्यमंत्री पद की शपथ ली थी। 

संविदा सरकार ने 19 महीने काम किया

इस तरह सीएम गोविंद नारायण सिंह (Govind Narayan Singh) की संविदा सरकार ने 19 महीने काम किया। इन डेढ़ सालों में पूरा समय आपसी कलह तथा दल-बदल करने वालों के संबंध में तरह-तरह की अफवाहों में बीता। कई बार तो यह अफवाह फैलाई गई कि गोविंद नारायण सिंह कांग्रेस में वापसी कर रहे हैं। गोविंद नारायण 30 जुलाई 1967 से 12 मार्च 1969 तक सीएम की कुर्सी पर रहे। इस दौरान जो दल-बदलू मंत्रिमंडल में नहीं लिए जा सके, उन्हें अन्य आर्थिक लाभ अनैतिक रास्तों से प्रदान कराए गए। शासन के अन्य निजी लाभ भी उन्हें भरपूरा मिले। पर सबी बात यह थी कि मुख्यमंत्री गोविंद नारायण सिंह तथा विजयाराजे सिंधिया के हाथों शासन की बागडोर सिमट कर रह गई। हालांकि, संविदा सरकार पर लगे आरोपी और खींचतान से तंग आकर गोविंद नारायण वापस कांग्रेस में चले गए और यह सरकार भी गिर गई। 

25 मई 1988 को रांची हवाई अड्डे पर तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी का स्वागत करने बिहार के राज्यपाल के रूप में डॉ. गोविंद नारायण सिंह गए थे।

[साभार- पुस्तक राजनीतिनामा मध्यप्रदेश]

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