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बुंदेलखंड यूनिवर्सिटी पर वादाखिलाफी, बलि चढ़ा ऐतिहासिक महाराजा काॅलेज

महाराजा छत्रसाल बुंदेलखंड यूनिवर्सिटी में महाराजा महाविद्यालय के विलय को मंज़ूरी।

छतरपुर (जोशहोश डेस्क) जिले के ऐतिहासिक महाराजा महाविद्यालय का अस्तित्व खत्म हो गया। राज्य मंत्रिमंडल ने महाराजा छत्रसाल बुंदेलखंड यूनिवर्सिटी में महाराजा महाविद्यालय के विलय को मंज़ूरी दे दी। इसके साथ ही साल 1865 में मदरसे के रूप में शुरू होकर 1949 में काॅलेज का आकार लेने वाले महाराज काॅलेज का नाम खत्म हो गया। वहीं काॅलेज के पूर्व छात्रों ने सरकार के इस फैसले के विरोध में रैली निकालकर सांकेतिक चक्काजाम किया। प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कमलनाथ ने भी इस निर्णय का विरोध किया है।

छतरपुर जिले के पहले महाराजा महाविद्यालय में अभी करीब 9800 छात्र अध्यनरत हैं। हजारों विद्यार्थी यहां से निकल देश विदेश में बुंदेलखंड का नाम रोशन कर रहे हैं। पूर्व छात्रों का कहना है कि प्रदेश सरकार ने नौ साल पहले बुंदेलखंड यूनिवर्सिटी का ऐलान किया था लेकिन नई यूनिवर्सिटी के लिए न कोई भवन बनाया गया और न ही इसका आधारभूत ढांचा तैयार किया गया। अब तक महाराजा महाविद्यालय परिसर में चल रही यूनिवर्सिटी के लिए अब महाराजा महाविद्यालय को ही बलि चढ़ाया जा रहा है।

यूनिवर्सिटी को लेकर सरकार की वादाखिलाफी और अब महाराजा महाविद्यालय के अस्तित्व को ख़त्म किये जाने के विरोध में महाराजा महाविद्यालय के पूर्व छात्रों के संगठन ने मोर्चा खोल दिया। मंगलवार को पूर्व छात्रों ने रैली निकाली और सांकेतिक चक्काजाम कर मुख्यमंत्री के नाम तहसीलदार को ज्ञापन सौंपा। छात्रों के संगठन की मांग है कि महाराजा महाविद्यालय को बरकरार रखते हुए महाराजा छत्रसाल बुंदेलखंड यूनिवर्सिटी के लिए बजट जारी कर आधारभूत ढांचा तैयार किया जाए।

वहीं कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष कमलनाथ ने भी सरकार के इस फैसले का विरोध किया है। कमलनाथ ने ट्वीट किया कि बुंदेलखंड यूनिवर्सिटी की नौ साल पुरानी घोषणा को लेकर सरकार ने अब तक कुछ नहीं किया है। अब सरकार ने अपनी वादाखिलाफी पर पर्दा डालने के लिए यह जनविरोधी निर्णय लिया है-

महाराजा महाविद्यालय (फैक्ट फाइल)

विद्यार्थी -9800

शैक्षणिक स्टाफ-90

अन्य कर्मचारी- 47

मदरसे से महाविद्यालय तक

मदरसे से महाविद्यालय तक इस ऐतिहासिक धरोहर का सफर अब करीब 150 साल पुराना हो चुका है। वर्ष 1865 में छतरपुर रियासत के दीवान तांतिया साहब गोरे ने उर्दू मदरसा की स्थापना की थी। वर्ष 1881 में मदरसा एबीएम स्कूल में परिवर्तित हो गया। वर्ष 1934 में राजमाता ने इसे स्कूल से महाराजा इंटरमीडिएट कॉलेज में बदला। वर्ष 1949 में इसे महाराजा कॉलेज के रूप में स्नातक तक परिवर्तित किया गया।

महाराजा महाविद्यालय पहले यह आगरा विश्वविद्यालय से सम्बद्ध रहा। वर्ष 1957 में तत्कालीन शिक्षा मंत्री डॉ. शंकरदयाल शर्मा ने महाराजा कॉलेज में स्नाकोत्तर कक्षाएं शुरू कराते हुए के इसे सागर विश्वविद्यालय से संबद्ध कर दिया। साल 2014 में छतरपुर में महाराजा महाराजा छत्रसाल बुंदेलखंड विश्वविद्यालय की शुरुआत हुई और महाराजा कॉलेज को भी इस विवि से संबद्ध कर दिया गया और अब प्रदेश सरकार ने इसका विश्वविद्यालय में विलय कर दिया है।

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