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‘गद्दारी’ पर अपने अज्ञान को ही उजागर कर रहे श्रीमंत ज्योतिरादित्य सिंधिया

ज्योतिरादित्य सिंधिया अब तक नहीं जान पाए कि 'विचारधारा' किस चिड़िया का नाम है?

उम्र का समझ से कोई लेना-देना नहीं होता। यदि होता तो बात और थी। पिछले बाइस साल से राजनीति में सक्रिय केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया अब तक नहीं जान पाए कि ‘विचारधारा’ किस चिड़िया का नाम है। वे कहते हैं कि कांग्रेस की विचारधारा ‘गद्दारी’ की विचारधारा है। लोग इस सोच के लिए सिंधिया के ‘लत्ते’ ले रहे हैं, किन्तु मुझे उन पर दया आती है। दया क्या सहानुभूति भी होती है।

सिंधिया अब उस पार्टी के सदस्य हैं जिसकी उम्र जुम्मा-जुम्मा अभी हाल फ़िलहाल कुल 43 साल की हुई है। इससे पहले यानि 2020 तक वे जिस पार्टी के साथ थे उसकी उम्र सवा सौ साल से ज्यादा की हो चुकी है। सिंधिया के पुरखों ने भी राजनीति में अपना सफर देश की उसी सबसे पुरानी पार्टी के साथ मिलकर शुरू किया था। ज्योतिरादित्य सिंधिया को उनके शिक्षकों ने शायद कभी नहीं बताया की उनकी दादी राजमाता विजयाराजे सिंधिया कांग्रेस का दामन थामकर ही राजनीति में आयीं थी, वे वर्षों कांग्रेस के साथ रहीं, फिर उनका अपहरण जनसंघ ने कर लिया। राजमाता ने विचारधारा के आधार पर ही कांग्रेस को चुना था।

केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया को उनके मास्टरों ने ये भी नहीं बताया की उनके दिवंगत पिता राजनीति में बिना डंडे-झंडे के आये थे लेकिन जब उन्हें विचारधारा के आधार पर राजनीति चुनने को कहा गया तो उन्होंने भी कांग्रेस को ही चुना और आजन्म कांग्रेस के साथ रहे। ये बात और है कि कांग्रेस ने ही उनसे पल्ला झाड़ लिया था, लेकिन वे कांग्रेस से निकाले जाने के बाद वापस कांग्रेस में लौट आये। वे चाहते तो उसी समय कोई दूसरी पार्टी को विचारधारा के आधार पर अपना सकते थे। उन्होंने ये गलती कभी नहीं की, क्योंकि वे समझदार नेता थे।

राकेश अचल

ज्योतिरादित्य सिंधिया को उनके किसी खैरख्वाह ने ये भी नहीं बताया कि जब उनके पिता का आकस्मिक निधन हुआ था, तब उन्हें अपनी गोदी में बैठाने वाली कांग्रेस ही थी। ज्योतिरादित्य सिंधिया के सामने विकल्प था कि वे कांग्रेस के अलावा किसी दूसरे राजनीतिक दल को अपना लेते किन्तु उन्होंने भी ऐसा नहीं किया। वे ऐसा कर भी नहीं सकते थे, क्योंकि उनकी विरासत तो कांग्रेस के पास थी। ज्योतिरादित्य सिंधिया ने कांग्रेस की विचारधारा को अंगीकार कर ही संसद और संसद के बाहर आज के प्रधानमंत्री श्रीमान नरेंद्र मोदी के खिलाफ जी भर कर भाषण दिए। तब वे कांग्रेस की विचारधारा के अग्रदूत थे। जानते थे कि कांग्रेस ही विचारधारा के रूप में सबसे ज्यादा समृद्ध राजनीतिक दल है।

कांग्रेस में अंदरूनी राजनीति के चलते ज्योतिरादित्य सिंधिया जब हासिये पर गए तो उन्होंने अपनी दादी की तरह कांग्रेस से तर्के ताल्लुक कर भाजपा में शरण ली। वे अचानक विभीषण बन गए। मध्यप्रदेश के आज के मुख्यमंत्री शिवराजसिंह ने खुद सिंधिया को विभीषण कहा। विभीषण भले ही एक साधु पुरुष थे किन्तु उनका नाम आज भी हजारों साल बाद एक गाली की तरह इस्तेमाल किया जाता है। ज्योतिरादित्य सिंधिया ने इस अपमान को भी सह लिया क्योंकि वे कांग्रेस की विचारधारा से विमुख हो गये थे। आज वे कांग्रेस की विचारधारा को “गद्दारी” की विचारधारा कह कर अपने ही अज्ञान को उजागर कर रहे है।

दुनिया हैरान हो या न हो किन्तु मैं हैरान हूँ, सिंधिया के हृदय परिवर्तन से। मैं समझ नहीं पा रहा कि बंदे ने मात्र तीन साल में कैसे भाजपा की विचारधारा को आत्मसात कर लिया? मै हैरान हूं ये देखकर कि ग्वालियर के स्वयं-भू महाराज के चश्मे का नंबर इतनी जल्दी कैसे बदल गया ? कैसे उन्हें कांग्रेस उन्हें गद्दारी की विचारधार लगने लगी, जबकि गद्दारी का इतिहास तो औरों के साथ ही नहीं बल्कि उनके अपने परिवार के साथ बाबस्ता था। जिसे उनके विद्वान पिताश्री ने कांग्रेस में शामिल होकर बड़ी मुश्किल से धोया था। 1857 के स्वतंत्रता संग्राम का एक पृष्ठ हमेशा देश को ये याद दिलाता है कि “गद्दारी” भी किसी ‘चिड़िया’ का नहीं बल्कि ग्वालियर के “महाराजा” का नाम होता था।

मुझे लगता है की सिंधिया ने जो कहा सो बचपने में कहा, उसे गंभीरता से नहीं लिया जाना चाहिए। गोया कि मै किसी राजनीतिक दल का सदस्य नहीं हूँ इसलिए कांग्रेस की विचारधारा को लेकर सिंधिया ने क्या कहा, इससे मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता। किन्तु सिंधिया और ग्वालियर से मेरा रिश्ता है इसलिए मुझे अपनी जग हंसाई से डर लगता है। लोग मुझसे सवाल करते हैं कि -“आपका नेता इतना अलोल है जो विचारधाराओं कि बारे में कुछ नहीं जानता ?” ऐसे में मै किसी को क्या उत्तर दूँ ? मेरी समझ में नहीं आता। मुझे इस सवाल का जबाब हंसकर टालना पड़ता है।

मैं आज तक ज्योतिरादित्य सिंधिया को पढ़ा-लिखा ही नहीं बल्कि दूरदृष्टि वाला नेता मानता था, लेकिन अब मेरी धारणा बदल रही हैं। सिंधिया यदि ‘दल’ बदल सकते हैं तो मेरे जैसा आदमी क्या उनके प्रति अपनी धारणा भी नहीं बदल सकता ? राजनीति में मुझे कांग्रेस की विचारधारा पसंद है, वामपंथियों की विचारधारा पसंद है। मुझे भाजपा की विचारधारा में भी संकीर्णता और धर्मान्धता को निकाल दें तो बहुत ज्यादा बुराई नजर नहीं आती, किन्तु मैं किसी भी विचारधारा को गद्दारी की विचारधारा कहने से पहले सौ बार सोचूंगा। क्योंकि किसी विचारधारा को आरोपित करना बहुत आसान काम नहीं है।

ये देश कम से कम एक सदी से तो कांग्रेस की विचारधारा के साथ चल रहा हैं। इसी सदी में उसने वामपंथियों की विचारधारा को पनपते और समाप्त होते देखा है। इस देश ने इसी सदी में भाजपा को जन्म लेते और सत्ता कि शीर्ष पर जाते भी देखा है। गद्दारी की विरासत चस्पा होने कि बावजूद भाजपा को जनता ने मौक़ा दिया है तो कोई कुछ नहीं कर सकता। जनादेश तो जनादेश है। उसे विचारधारा के आधार पर ही स्वीकार और ख़ारिज किया जा सकता है। मैं उम्मीद करता हूँ कि हमारे श्रीमंत “महाराज” के जीवनकाल में ही गद्दारी की कथित विचारधारा वाली कांग्रेस फिर भाजपा का विकल्प बनेगी। यदि ऐसा हुआ तो क्या सिंधिया फिर से कांग्रेस में वापस लौटेंगे या अपने बेटे से कहेंगे कि वो कांग्रेस में जाकर उनकी गलतियों का प्रायश्चित करे !

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)

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