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क्या BJP सरकारों की ‘बुलडोजर संहिता’ को PM मोदी का भी समर्थन है?

वरिष्ठ पत्रकार राकेश अचल का भाजपा सरकारों द्वारा भारतीय दंड संहिता के बजाय बुलडोजर संहिता के इस्तेमाल पर आलेख।

खरगोन में हुए दंगे को लेकर मेरे आलेख पर देशव्यापी प्रतिक्रियाएं आईं, कुछ गालियां भी मिलीं लेकिन ज्यादातर लोग इस बात से सहमत थे कि मैंने जो बिंदु रेखांकित किये वे विचारणीय थे। खरगोन दंगों को लेकर प्रदेश की सरकार ने जिस तरह से बुलडोजर संहिता का इस्तेमाल किया उससे दंगाइयों को सबक मिलेगा या नहीं ये तो आने वाले कल में पता चलेगा लेकिन सरकार कि इस कार्रवाई से विश्व गुरु भारत की जमकर जगहंसाई जरूर हुई है।

दुनिया भर में मानवाधिकारों के हनन में नंबर एक अमेरिका ने विदेश और रक्षा मंत्री स्तर की बैठक में भारत के रक्षामंत्री राजनाथ सिंह और विदेश राज्य मंत्री एस जयशंकर को भारत में मानवाधिकारों के हनन के लिए खूब सुनाई और दुर्भाग्य ये कि दोनों मौन सुनते भी रहे। दोनों पर प्रतिवाद तक करते नहीं बना। आपको बुरा लगा हो या न लगा हो लेकिन एक भारतीय के नाते मुझे बहुत बुरा लगा। खरगोन की घटनाओं के बाद अमेरिका में रहने वाले भारतीयों को शर्म से अपनी आँखें नीची करके चलना पड़ रहा है।

सवाल घूम-फिर कर वहीं आता है कि आखिर ऐसा क्या हुआ है जो सरकारों को खरगोन हो या कोई दूसरे शहर में भारतीय दंड संहिता के बजाय बुलडोजर संहिता का इस्तेमाल करना पड़ रहा है? आप तहकीकात करेंगे तो पाएंगे कि सरकार अपनी अक्षमताओं पर पर्दा डालने के लिए असंवैधनिक कार्रवाई करने पर मजबूर है और इसके लिए उसने अपने भक्तमंडल को पहले से समर्थन में खड़ा कर रखा है। आपको शायद पता नहीं होगा कि मध्य्प्रदेश में राजधानी भोपाल सहित प्रदेश के अधिकाँश जिलों में पुलिस थाने आधे से भी कम पुलिस बल के साथ चल रहे हैं। सरकार ने बीते सालों में राजनीति के चलते तमाम नए जिले और कुछ संभाग बनाये लेकिन उनके लिए पर्याप्त संसाधन मुहैया नहीं कराये, नतीजा प्रदेश की जर्जर क़ानून और व्यवस्था है।

राकेश अचल

देश और प्रदेश में दंगाइयों और बलात्कारियों को फांसी जैसी कठोरतम सजाये देने का प्रावधान है लेकिन उसका इस्तेमाल करने के लिए अदालतों में जाना पड़ेगा लेकिन अदालतों में जाये कौन? इसलिए उठाओ बुलडोजर और रोंद डालो उन बेकसूर लोगों को जिनका न दंगे से कोई वास्ता है और न बलात्कार जैसी वारदातों से। कम से कम निर्जीव मकानों का तो कोई वास्ता नहीं है,लेकिन उन्हें सजा दी जा रही है।

प्रदेश में पुलिस आरक्षकों के 22 हजार पद खाली पड़े हैं। सरकार के पास साल भर में 21 हजार नव आरक्षकों को प्रशिक्षत करने का इंतजाम है लेकिन प्रशिक्षण संस्थानों में कौवे उड़ रहे हैं। जब भर्तियां ही नहीं हो रहीं तो आखिर प्रशिक्षण दिया किसे जाये? प्रदेश में हर आईपीएस अफसर के आगे पीछे कम से कम 15 पुलिस जवान लगते हैं। पहले से पुलिस बल की कमी झेल रही पुलिस अब कानून और व्यवस्था देखे या अफसरों की सेवा करे? प्रदेश के चंबल इलाके में लड़के बीते कई वर्षों से सड़कों पर दौड़ लगाकर पुलिस और सेना में भर्ती की तैयारियां कर थक चुके हैं लेकिन सरकारें नई नियुक्तियां करने के लिए राजी नहीं। सरकार को पुलिस बल बढ़ाने से ज्यादा आसान काम बुलडोजर का इस्तेमाल करना लगता है।

खरगोन दंगे के बाद सरकार पूरे प्रदेश से अतिरिक्त पुलिस बल खरगोन भेजने को मजबूर है। त्यौहारों को देखते हुए पुलिस कर्मियों की छुट्टियां रद्द करने को मजबूर है लेकिन नयी भर्तियां करने को मजबूर नहीं है। सरकार की तैयारी है भी तो कुल छह हजार नयी नियुक्तियां करने की। यानि ऊँट के मुंह में जीरा ,और चाहते हैं कि अमन-चैन बना रहे .ये आखिर कैसे मुमकिन है?

सरकार के पास इस बात का कोई जबाब नहीं है कि दंगों के फौरन बाद उसने कौन सी खुर्दबीन लगाकर पता कर लिया कि दंगाई कौन थे? क्या ये खुर्दबीन दंगे होने से पहले काम नहीं कर सकती थी। जब स्थानीय पुलिस को पता था कि दंगाई कौन हो सकते हैं तो उनके खिलाफ पहले से प्रतिबंधात्मक कार्रवाई क्यों नहीं की? अब सरकार न अपील,न वकील और न दलील का मौक़ा दिए बिना धड़ाधड़ कथित आरोपियों के मकान तोड़े जा रही है, जग हंसाई होती है तो होती रहे। प्रधानमंत्री जी दुनिया में बदनाम होते हैं तो होते रहें, किसी को क्या पड़ी है?

खरगोन के दंगों के बाद सरकार तो कटघरे में खड़ी ही है ,विपक्ष भी खामोश बैठा है। किसी को नहीं सूझ रहा कि क्या किया जाये? कोई वहां गांधीवादी तरीके से उपवास करने की सूझबूझ नहीं दिखा रहा,उलटे मुझे तो कभी-कभी लगता है कि कांग्रेस के दिग्विजय सिंह जैसे बड़े नेता जाने-अनजाने प्रदेश सरकार के संकटमोचक/तारणहार बन रहे हैं। दंगों पर बात न हो इसलिए वे नया मुद्दा उखाड़कर जनता का ध्यान बांटना चाहते हैं। वरना अभी क्या जरूरत थी भागलपुर की तस्वीर ट्वीट करने या किसी से जेल जाकर जेल अधिकारी के चैंबर में मिलने की। क्या उन्हें शांति बहाली के लिए खरगोन नहीं जाना चाहिए था बजाय जेल में बंद अपने किसी कार्यकर्ता से मिलने के?

सच लिखने पर किसी को देशद्रोही कह देना आसान है लेकिन सचमुच देश और जनता से द्रोह करने वालों को बेनकाब करना कठिन। प्रदेश में भी ही भाजपा की सरकार है लेकिन सबकी सरकार है। उसे सबके साथ समान व्यवहार करना चाहिए,ऐसा कोई कदम नहीं उठाना चाहिए जिससे जनता में दहशत और विदेशों में देश की मान -प्रतिष्ठा कम हो। मै फिर दुहरा रहा हूँ कि ‘ बुलडोजर संहिता ‘ से कोई भी सरकार क़ानून और व्यवस्था की स्थिति नहीं सुधार सकती । भय से प्रीति उत्पन्न हो रही होती तो कब की हो चुकी होती।

यदि सरकार ने मान ही लिया है कि एक विशेष समुदाय के लोग ही दंगाई है और दुसरे समुदाय के लोग साधू तो फिर कुछ भी कहने की जरूरत नहीं बचती। बेहतर हो कि सरकार एक बार पूरे प्रदेश में दंगाइयों को चिन्हित कर उन सबको प्रदेश निकाला दे दे। संविधान में तो ऐसी कोई व्यवस्था है नहीं लेकिन जैसे भारतीय दंड संहिता के स्थान पर बुलडोजर संहिता का इस्तेमाल किया जा रहा है उसी तरह उपद्रवियों की जमात को भी प्रदेश से खदेड़ने का अभियान चलाया जा सकता है। मोदी जी है तो सब मुमकिन है।

दुर्भाग्य की बात है कि देश में जहां-जहां भाजपा सरकारों ने बुलडोजर संहिता का इस्तेमाल शुरू किया है वहां की किसी सरकार को माननीय मोदी जी ने राजधर्म निभाने की सीख नहीं दी। इससे लगता है कि भाजपा कि डबल इंजन की प्रदेश सरकारों को माननीय मोदी जी का मौन समर्थन हासिल है और सचमुच यदि ये सही है तो ये देश के लिए बहुत घातक है। क़ानून का राज फिर बेमानी है। लगता है राम राज लाने के लये कानून की नहीं,अदालत की नहीं पुलिस की नहीं बल्कि केवल और केवल बुलडोजर की जरूरत है। जनता खुद तय करे कि उसे बुलडोजर के राम राज की जरूरत है या क़ानून के राज वाले राम राज की?

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)

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