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‘श्रेष्ठ सनातनी’ का प्लान ठीक था, मगर `गलती से मिश्टेक’ हो गया

शुक्ला जी का काम सिनेमा के पर्दे पर एक ऐसे हनुमान की रचना करना था, जिनमें 2024 में पहली बार वोटर बने गोबर पट्टी के लौंडे अपनी छवि देख सकें...

श्रेष्ठ सनातनी शुक्ला जी ने कार्य वही किया था, जो पार्टी की ओर से उनसे अपेक्षित था। बस जोश-जोश में जरा मिस्टेक हो गया। ये मिस्टेक कुछ वैसा था जैसा फिल्म `मुन्नाभाई एमबीएस’ में सर्किट ने किया था।

परमभक्त सर्किट ने देखा कि मुन्नाभाई को मेडिकल कॉलेज में चीरने के लिए अलग से कोई डेड बॉडी नहीं मिल रही है, तो टेंशन में आ गया। आनन-फानन उसने एक जिंदा आदमी को बेहोश करके बोरी में भरा और भाई के सामने ला पटका। मुंतशिर से पुन: शुक्ला भये मनोज बाबू ने भी कुछ ऐसा ही किया।

उनका काम सिनेमा के पर्दे पर एक ऐसे हनुमान की रचना करना था, जिनमें 2024 में पहली बार वोटर बने गोबर पट्टी के लौंडे अपनी छवि देख सकें। व्हाट्स एप पर रात-दिन ज़हर की खुराक ले रहे और दूसरों को बांट लौंडों को लगे कि बजरंग बली भी बोल-बचन में उन्हीं की तरह थे।

राकेश कायस्थ

सिनेमा हॉल में बजरंग बली के बगल वाली सीट पर पर बैठकर वो चवन्नी छाप डायलॉग पर सीटी मारें, फिर हॉल से निकलकर ‘मैं भी बजरंग बली’ वाली डीपी बनाये। ये नशा दिमाग पर छाया रहे और तब तक राम-मंदिर बनने की खबर आ जाये। यानी प्रभाव दोगुना और 2024 में सीधे 400 सीटें। प्लान एकदम दुरुस्त था। फिर `गलती से मिश्टेक’ कैसे हो गया?

इमोशनल होकर सुकुल जी ने बजरंगबली को कुछ ज्यादा ही टपोरी बना दिया। ये बात उन लोगों को भी हजम नहीं हुई जो रात-दिन हिंदू-मुसलमान करने में जुटे हैं लेकिन अपने देवी-देवताओं के प्रति उनके मन आदर हैं। लेखक का दावा था कि उसने चप्पल उतारकर डायलॉग लिखे थे, लेकिन फिल्म का पहला शो खत्म होते ही दर्शक हाथ में चप्पल लेकर उन्हें ढूंढने लगे।

अगर इस नाराज़ भीड़ में सिर्फ सरकार विरोधी लोग होते तो गोदी मीडिया का काम बहुत आसान हो जाता। फिर तो गला फाड़-फाड़कर ये बताया जाता कि आदिपुरुष वाले बजरंगबली लोकमानस के निकट हैं, उनकी लोकप्रियता बढ़ रही है, इसलिए सूडो सेक्यूलर इसे पचा नहीं पा रहे हैं। लेकिन सरकार समर्थक लोग भी जिस तरह बड़ी संख्या में भड़के, उससे पूरा का पूरा खेल बिगड़ गया।

मुंतशिर ने पहले इंटरव्यू में यहा कि ये पूरी तरह रामकथा है। लोगों की नाराजगी सामने आने के बाद दिये इंटरव्यू में उसने कहा कि हमने कभी नहीं कहा कि ये रामकथा है, तो ये राम से प्रेरित एक काल्पनिक कहानी है। दो बयानों में सत्य के प्रति सुकुल जी का आग्रह देखकर समझ में आ गया कि वो भी पीएम मैटेरियल हैं।

नवीनतम सूचना ये है कि फिल्म से टपोरी डायलॉग हटाये जा रहे हैं। हो सकता है कि इसके बाद बीजेपी शासित राज्य फिल्म को टैक्स फ्री कर दें और जगह-जगह फिल्म का मुफ्त स्क्रीनिंग भी होने लगे। लेकिन क्या डायलॉग बदल देने से लोगों की नाराजगी दूर हो जाएगी?

बेहद घटिया आफ्टर इफेक्ट देखने बाद लोग ये कह रहे हैं कि 600 करोड़ खर्च होने का दावा झूठा है या फिर प्रोड्यूसर को निर्देशक और बाकी लोगों ने मिलकर चूना लगाया है। डायलॉग बदल जाएंगे लेकिन सुलेमान की तरह दिखने वाले हनुमान को दर्शक कहां तक पचा पाएंगे ये एक बहुत बड़ा सवाल है।

(लेखक और पत्रकार राकेश कायस्थ की फेसबुक वॉल से साभार)

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