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उकसावे की चरमपंथी सियासत, भारत को स्वीडन मत बनने दीजिए

अशांत स्वीडन और भारत में भी वैसे ही हालात के संदर्भ में वरिष्ठ पत्रकार राकेश अचल का आलेख।

भारत से साढ़े पांच हजार किमी दूर स्थित स्वीडन आज अशांत है। स्वीडन भारत की राजधानी दिल्ली से भी आबादी में कम जनसँख्या वाला देश है लेकिन यहां संवैधानिक लोकतंत्र और राजतंत्र है। यूरोपीय यूनियन का तीसरा बड़ा देश आज उसी तरह हिंसा की चपेट में है जिस तरह स्वीडन से सौ गुना बड़ा भारत। स्वीडन में अल्पसंख्यक समुदाय का धर्मग्रंथ जलाये जाने के बाद से हिंसा भड़की है जो लगातार चौथे दिन भी काबू में नहीं आयी है। आज जो छोटे से स्वीडन में एक चरमपंथी राजनीतिक दल कर रहा है कमोवेश वैसा ही कुछ भारत में भी होता दिखाई दे रहा है।

गनीमत है कि भारत में अभी बहुसंख्यक हिन्दू समाज चरमपंथी राजनीतिक दलों के उकसावे के बावजूद उग्र नहीं हुआ है लेकिन कोशिश तो की ही जा रही है। महाराष्ट्र की एक महान पार्टी के शुभ्र धवल नेता एक धर्म विशेष के पूजाघरों से ध्वनि विस्तारक यंत्र हटाने की मांग को लेकर वो ही सब करने की कोशिश कर रहे हैं जो स्वीडन में डेनमार्क की स्टार्म कुर्स पार्टी चलाने वाले डेनिश-स्वीडिश चरमपंथी रासमुस पालुदान कर रहे हैं। रासमुस पालुदान ने बयान में कहा कि उन्होंने इस्लाम की सबसे पवित्र किताब को जलाया है और आगे भी वह ऐसा करेंगे।

सवाल ये है कि लोग ऐसा करने पर क्यों उतारू हैं ? क्या उनके पास देश सेवा का कोई और प्रकल्प नहीं है? किसी धर्म विशेष के लोगों को हिंसा के लिए उकसाने की कोशिशों के स्वरूप अलग-अलग हो सकते हैं। कहीं उनके धर्मग्रंथ जलाये जाते हैं तो कहीं उनके पूजाघरों से ध्वनि विस्तारक यंत्र हटाने की मांग की जाती है और कहीं-कहीं उग्रता के साथ धार्मिक जुलूसों को निकालकर दहशत फ़ैलाने की कोशिश की जाती है। अर्थात पॉयदान केवल स्वीडन में ही नहीं बल्कि दुनिया के हर देश में मौजूद हैं।

राकेश अचल

गनीमत ये है कि स्वीडन के पंत प्रधान कम से कम हिंसा के इस मुद्दे पर खुलकर बोले तो। भारत में खरगोन हो जाये या गोधरा या दिल्ली का जहांगीरपुरी,कोई कुछ बोलता ही नहीं है और मध्यप्रदेश में कोई बोलता है तो मवालियों की भाषा में कि -‘जिन घरों की छतों से पत्थर फेंके गए उन्हें पत्थरों के ढेर में बदल दिया जाएगा’ इसके उल्ट स्वीडन के प्रधानमंत्री मैग्डेलेना एंडरसन ने हिंसा पर कहा कि यहां लोगों को अपनी राय व्यक्त करने की अनुमति है। यह हमारे लोकतंत्र का हिस्सा है, लेकिन हिंसा हम कभी भी स्वीकार नहीं करेंगे।

स्वीडन में स्टॉर्म कोर्स पार्टी ने धर्मग्रंथ जलाने के लिए स्टॉकहोम, लिंकोपिंग और नॉरकोपिंग में योजना बनाई थी। जहां-जहां कार्यक्रम आयोजित किए गए वहां-वहां हिंसा भड़की। गुरुवार को इन दंगों की शुरुआत हुई थी। स्टॉर्म कोर्स एक दक्षिण पंथी समूह है। मैं भारत में ऐसे अनेक दक्षिणपंथी समूहों को जानता हूँ लेकिन मै उनकी तुलना स्वीडन की स्टॉर्म कोर्स पार्टी से नहीं करना चाहता लेकिन कहना चाहता हूँ कि जैसी कोशिशें स्वीडन में की जा रहीं हैं वैसा ही कुछ भारत में भी होता दिखाई दे रहा है और दुर्भाग्य से जनादेश की सरकारें ऐसे कार्यक्रमों का अंग बन रहीं हैं।

पिछले दिनों रामनवमी पर देश की अनेक राज्य सरकारों ने प्रत्यक्ष और परोक्ष रूप से हिस्सा लिया। ये सरकारें किसी दूसरे धर्म के प्रति इतनी उदार नहीं होतीं। मध्यप्रदेश के एक छोटे से शहर दतिया में एक शक्तिपीठ को इसके लिए इस्तेमाल किया जा रहा है। दतिया में शक्तिपीठ आज से नहीं बल्कि दशकों पुरानी है लेकिन पहली बार देवी पीतांबरा को पीठ से बाहर निकालकर 12 लाख की लागत से बने रथ में बैठकर नगर भ्रमण कराया जाएगा,रथ पर हैलीकाप्टर से पुष्प वृष्टि की जाएगी और इस अवसर पर पूरे शहर के होटलों को आगंतुकों के लिए निशुल्क उपलब्ध कराया जाएगा। इस पूरी कोशिश के पीछे मध्यप्रदेश के वे ही मंत्री है जो पिछले दिनों दंगाइयों के घरों को पत्थरों के ढेर में बदलने की बात कह चुके हैं।

अक्सर सवाल उठाया जाता है कि यदि हम अपने ही देश में अपने धर्म का प्रचार,प्रसार और प्रदर्शन नहीं करेंगे तो क्या किसी दूसरे देश में जायेंगे? ये दलील भी है और कुतर्क भी। सवाल ये है कि क्या आपको पता है कि आप जिस देश में रहते हैं वहां सिर्फ आपको ही नहीं बल्कि सभी धर्मों को समान आदर,समान संरक्षण और समान स्वतंत्रता संवैधानिक रूप से दी गयी है। अब आप खुद ही इस देश को एक धर्म विशेष की थाती समझते हैं तो कोई क्या कर सकता है? ये देश सबका है और सबका बना रहना चाहिए। यहां कोई एक धर्म वाला किसी दूसरे धर्म वाले को न आतंकित कर सकता है और न उसे ऐसा करना चाहिए।

भारत को हिन्दू राष्ट्र बनाने की एक धुन यदि किसी एक राजनीतिक दल या उसके अनुयायियों के सर पर सवार हो गयी है तो बात बेहद गंभीर है। देश की आजादी के समय बिलों में घुसे लोग आजादी के अमृत वर्ष में यदि ताल ठोंक कर भारत को हिन्दू राष्ट्र बनाने की चेष्टा करते हों तो आपको समझ लेना चाहिए कि ऐसे लोगों की संविधान में कोई आस्था नहीं है। उन्होंने संविधान की झूठी कसम खाकर सत्ता हासिल की है। वे आपके साथ और संविधान के साथ छल कर रहे हैं। वे पिछले दरवाजे से भारतीय दंड विधान संहिता के मुकाबिले बुलडोजर संहिता पर अमल कर रहे हैं।

आने वाले दिनों में भारत स्वीडन न बने इसके लिए भारत में एहतियात बरती जाना जरूरी है। सौभाग्य से दिल्ली की हिंसा के बाद देश के अहिंसावादी गृहमंत्री अमितशाह ने पुलिस आयुक्त को सख्त कार्रवाई के निर्देश दिए हैं। निर्देश तो दिल्ली की आप सरकार भी दे सकती थी लेकिन पुलिस कमिश्नर आप सरकार की बात मानते कब हैं ? अमित शाह जी को महाराष्ट्र के युवा तुर्क राज ठाकरे को भी समझाना चाहिए कि वे खामखां भारत के पालूदान बनने की कोशिश न करें।
पूजाघरों से ध्वनि विस्तारक यंत्रों पर पाबंदी का फैसला क़ानून के आधार पर होगा न की जूनून के आधार पर। सरकार के पास इस मामले से निबटने के लिए पहले से क़ानून हैं और अगर वे क़ानून पर्याप्त नहीं हैं तो नए क़ानून बनाये जा सकते हैं।

आपको याद हो कि दिल्ली पुलिस आयुक्त राकेश अस्थाना का बयान भी आया है, जिसमें उन्होंने कहा है कि जहांगीरपुरी घटना की हर एंगल से जांच के लिए हमने 14 टीमों का गठन किया है। बता दें कि अब तक 21 आरोपियों को गिरफ़्तार किया जा चुका है। जहांगीरपुरी थाने में दर्ज प्राथमिकी के अनुसार हनुमान जयंती पर शोभा यात्रा के दौरान दो गुटों में कहासुनी हो गई थी। जिसने हिंसा का रूप ले लिया था।

सौभाग्य की बात ये है कि भारत में अभी भी लोगों का न्यायव्यवस्था पर भरोसा है इसीलिए कुछ लोगों ने हिंसा की जांच कि लिए सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है। भारत के मुख्य न्यायाधीश एनवी रमना के समक्ष एक पत्र याचिका दायर की गई है, जिसमें अदालत से स्वत: संज्ञान लेकर कोर्ट की निगरानी में जांच की मांग की गई है। सुप्रीम कोर्ट से जहांगीरपुरी हिंसा की निष्पक्ष जांच करने के लिए सुप्रीम कोर्ट के मौजूदा जज की अध्यक्षता में एक कमेटी गठित करने का आग्रह किया गया है।

स्वीडन की तरह हिंसा को लेकर भारत में भी राजनीति हो रही है। इस हिंसा के लिए आम आदमी पार्टी ने बीजेपी को जिम्मेदार माना है। आप का कहना है कि हाल की घटनाओं को देखकर यह स्पष्ट है कि हिंसा के पीछे बीजेपी ही है। “दिल्ली बीजेपी प्रमुख आदेश गुप्ता ने स्वयं बर्बरता और गुंडागर्दी के आरोप में गिरफ्तार किए गए 8 गुंडों को सम्मानित व सम्मानित किया। जब आप खुद ऐसे गुंडों का सम्मान करते हैं तो आप जनता को संदेश देते हैं कि आप हिंसा के पक्ष में हैं.”जबकि भारतीय जनता पार्टी अध्यक्ष जे पी नड्डा ने दावा किया कि हाल ही में रामनवमी और हनुमान जयंती पर निकाली गई शोभा यात्राओं के दौरान हुई सांप्रदायिक हिंसा समाज को तोड़ने की एक ‘साजिश’ है..जनता कि पास इन दोनों दलों कि दावों को जांचने की कोई मशीन नहीं है। इसलिए बेहतर है कि अदालत इसमें दखल दे।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)

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