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देश को उलझन में डाल मौन हो जाना, सरकार की आदत और ताकत

अग्निपथ के देशव्यापी विरोध और प्रधानमंत्री की चुप्पी पर वरिष्ठ पत्रकार राकेश अचल का आलेख।

ऐसा पहली बार हो रहा है की सरकार ने मौन को अपनी ताकत बना लिया है। सरकार अपनी नई और विवादास्पद योजनाओं को जनता के सामने रखती है और फिर होने वाली प्रतिक्रिया पर कोई प्रतिक्रिया नहीं देती। मौन साध लेती है। भले ही मामला नोटबंदी का हो या अग्निपथ का। अग्निपथ योजना के खिलाफ देश के करीब आधे भूभाग में हिंसक विरोध हो रहा है लेकिन सरकार चुपचाप सब देख रही है।

कांग्रेस के अंतिम प्रधानमंत्री डॉ मनमोहन सिंह आज के प्रधानमंत्री की तरह वाचाल नहीं थे इसीलिए उनका मजाक मन मौन सिंह कहकर उड़ाया जाता था लेकिन प्रधानमंत्री बनते ही मौजूदा प्रधानमंत्री डॉ मनमोहन सिंह से भी बड़े मौनी साधक निकले। वे बोलते ही नहीं हैं। लोग उनकी प्रतिक्रिया जानना चाहते हैं लेकिन वे नहीं बोलते। प्रधानमंत्री जी का मौन इंगित कर रहा है कि देश में चाहे कुछ हो जाये सरकार अपने निर्णयों को वापस नहीं लेगी। किसान कानूनों के
मामले में सरकार ने एक साल बाद अपना मौन तोड़ा था और भारी मन से कानूनों को वापस लिया था,लेकिन इससे सरकार की बड़ी किरकिरी हुई थी।

अग्निपथ मामले में जनता जितनी उग्र हो रही है सरकार उतनी ज्यादा निष्ठुर है। सत्तारूढ़ दल चुनाव की तैयारियों में व्यस्त हैं। विपक्ष के नेता राहुल गांधी का मनोबल तोड़ने की कोशिश कर रहा है लेकिन कोई अग्निपथ पर खड़े लोगों के सामने नहीं आ रहा। प्रधानमंत्री जी अपने निर्धारित कार्यक्रम के तहत गुजरात के दौर पर निकल रहे हैं, लेकिन अग्निपथ से उनका कोई लेना देना नजर नहीं आ रहा। रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह जरूर बैठकें कर रहे हैं लेकिन बोल वे भी नहीं रहे।

देश को उलझन में डालकर मौन हो जाना सरकार की आदत बन गयी है। अग्निपथ से पहले कितने ही मुद्दे ऐसे आये जिन पर सरकार को बोलना चाहिए था,लेकिन सरकार नहीं बोली। सरकार की और से वाट्सप विश्वविद्यालय से जुड़ी फ़ौज बोलती है। जैसे अभी बोल रही है। अग्निपथ के नफा-नुक्सान को बताने में लगी है,लेकिन सरकार की और से कोई बात नहीं की जा रही। शयद सरकार को लगता है की विरोध अपने आप समाप्त हो जाएगा लेकिन ऐसा होता नहीं है। किसान आंदोलन पूरे एक साल चला था।

राकेश अचल

केंद्र ही नहीं भाजपा की राज्य सरकारें भी इस तरीके से काम कर रहीं हैं। मध्यप्रदेश में मालवा,चंबल और दुसरे अनेक हिस्सों में अग्निपथ को लेकर हिंसक प्रदर्शन हुए लेकिन राज्य की सरकार और सत्तारूढ़ पार्टी स्थानीय निकाय चुनावों में उलझी हुई हैं। भाजपा की सरकारों के लिए चुनाव प्राथमिकताओं में सबसे ऊपर रहे हैं। बिहार में जहाँ भाजपा और जेडीयू की सरकार है वहां स्थिति लगातार गंभीर हो रही है। राज्य बंद किया जा रहा है किन्तु केंद्र से कोई एक शब्द बोलने के लिए राजी नहीं है।

देश के प्रधानमंत्री अग्निपथ से बनी स्थिति पर बोलने के बजाय अपने गृहराज्य गुजरात में विधानसभा चुनाव प्रचार के लिए जा रहे हैं। वे पावागढ़ पहाड़ी पर स्थित श्री कालिका माता के पुनर्विकसित मंदिर का दर्शन और उद्घाटन करेंगे। मोदी जी वडोदरा में गुजरात गौरव अभियान में हिस्सा लेंगे। गुजरात गौरव अभियान में सरकार की विभिन्न योजनाओं के लाभार्थी भी हिस्सा लेंगे। इस दौरान प्रधानमंत्री 16,000 करोड़ रुपये से अधिक की विभिन्न रेलवे परियोजनाओं का लोकार्पण और शिलान्यास करेंगे। इनमें समर्पित फ्रेट कॉरिडोर के 357 किलोमीटर लंबे न्यू पालनपुर-मदार खंड का राष्ट्र को समर्पण, 166 किलोमीटर लंबे अहमदाबाद-बोटाद खंड का आमान परिवर्तन, 81 किलोमीटर लंबे पालनपुर-मीठा खंड का विद्युतीकरण और अन्य शामिल है। प्रधानमंत्री सूरत, उधना, सोमनाथ और साबरमती स्टेशनों के पुनर्विकास के साथ-साथ रेलवे क्षेत्र में अन्य परियोजनाओं की आधारशिला भी रखेंगे।

जाहिर है कि केंद्र सरकार को आग की लपटों से घिर देश की कम अपनी पार्टी और चुनाव की चिंता ज्यादा है। राजनीतिक दलों की इस तरह की प्राथमिकताएं हैरान करतीं हैं। सवाल ये है कि आखिर प्रधामंत्री जी को कब बोलना चाहिए? प्रधानमंत्री जी ही हैं जिन्हें ये देश सुनता है। दुर्भाग्य से इस समय देश में प्रधानमंत्री के अलावा सत्तापक्ष और विपक्ष के पास कोई दूसरा नेता नहीं है जिसकी अपील देश सुने। मुझे नहीं लगता कि देश अमित शाह या राजनाथ सिंह की अपील पर भी ध्यान देगा। देश संघ प्रमुख डॉ मोहन भागवत की बात पर भी ध्यान नहीं देता।

सेना में भर्ती की नई योजना के खिलाफ पूरे देश में विरोध का अर्थ ये भी है कि ये मुद्दा केवल सामजिक या रोजगार से जुड़ा नहीं है बल्कि राजनीति भी इसके पीछे है। यदि ऐसा न होता तो एक साथ देश के एक दर्जन राज्यों में आगजनी और हिंसा नहीं होती। ये विरोध इतना व्यापक है कि इसके खिलाफ कोई सरकार बुलडोजर संहिता का इस्तेमाल भी नहीं कर सकती। आखिर इतने बुलडोजर आएंगे कहाँ से ? सार्वजनिक सम्पत्ति को नुक्सान पहुँचाने वाले तत्व चिन्हित किये जाने चाहिए। विरोध के और भी तरीके हैं। किसानों ने जिन तरीकों का इस्तेमाल किया उन्हें भी ध्यान में रखना आवश्यक है।

केंद्र सरकार का मौन केवल अग्निपथ पर ही नहीं कांग्रेस सांसदों की पिटाई पर भी चौंकाने वाला लगता है। देश में सांसदों की पसलियां और जबड़े पुलिस तोड़े इससे ज्यादा शर्मनाक क्या हो सकता है? लोकसभा अध्यक्ष और खुद प्रधानमंत्री जी को इस नृशंसता के खिलाफ बोलना चाहिए था लेकिन अपनी आदत के अनुरूप वे नहीं बोले। प्रधानमंत्री जी का मौन अब सालने लगा है। देश ने बहुत दिनों से दूरदर्शन पर प्रधानमंत्री जी को अपील करते नहीं देखा है। वे कब बोलेंगे ,कोई नहीं जानता। अभी तो लगता है कि सरकार खुद मौन रहने के साथ ही विपक्ष की भी बोलती बंद करने की जुगत में है। राहुल गांधी से नशे के कारोबारियों की तरह ईडी की लम्बी पूछताछ से तो कम से कम यही लगता है।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)

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