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क्या ज्योतिरादित्य सिंधिया की सियासी राह पर हैं जीतू पटवारी?

सियासी गलियारों में पटवारी की भूमिका को लेकर चल रहे तमाम सवाल जवाब

भोपाल (जोशहोश डेस्क) साल के अंत में होने वाले विधानसभा चुनाव को लेकर मध्यप्रदेश की सियासत में सरगर्मियां शबाब पर पहुंचती नजर आ रही हैं। बीते चुनाव में कांटे की टक्कर के बाद इस बार कौन किस पर भारी पड़ेगा, यह तो भविष्य के गर्त में हैं लेकिन कांग्रेस की अंदरूनी राजनीति का सियासी सीन एक बार फिर 2018 के चुनाव के बाद का घटनाक्रम याद दिला रहा है।

प्रदेश की राजनीति में इन दिनों पूर्व मंत्री और राउ से विधायक जीतू पटवारी सुर्खियों में है। सियासी गलियारों में पटवारी की भूमिका को लेकर तमाम सवाल जवाब चल रहे हैं। जिस तरह से जीतू पटवारी बीते कुछ महीनों से बयानबाजी कर रहे हैं उसे साफतौर पर यह माना जा रहा है कि न वे पार्टी में सहज महसूस कर रहे हैं और पार्टी भी पटवारी को लेकर निश्चित नहीं है।

जिस तरह 2018 के चुनाव के बाद कमलनाथ सरकार ज्योतिरादित्य सिंधिया की तथाकथित उपेक्षा या सियासी महत्वाकांक्षा का शिकार हुई ठीक वैसा ही सीन अब 2023 के चुनाव से पहले जीतू पटवारी प्रदेश की सियासत में सामने लाते दिखाई दे रहे हैं।

जीतू पटवारी मेहनती, ऊर्जावान और वाकचार्तुयता के चलते कांग्रेस विधायकों में सबसे मुखर माने जाते हैं। गुजरात में 2017 के विधानसभा चुनाव के दौरान जीतू पटवारी अपनी सक्रियता के चलते राहुल गांधी के करीबियों में शुमार होने लगे थे। हालांकि इसके बाद 2018 के विधानसभा चुनाव में जीतू पटवारी अपनी राउ सीट पर बमुश्किल जीत पाए थे।

कमलनाथ सरकार में जीतू पटवारी को खेल और युवा मामलों का मंत्री बनाया गया था। इसके बाद जब कमलनाथ सरकार को अस्थिर करने की साजिश रची गई तो गुडगांव के रिसोर्ट में जीतू पटवारी और जयवर्धन सिंह ने उसे नाकाम करने में अहम भूमिका निभाई थी। ज्योतिरादित्य सिंधिया की बगावत के बाद पार्टी की सेंकड जेनरेशन में पटवारी एक बड़े नेता के रूप में उभरे लेकिन सियासी हलकों में यह कहा जाता है कि पटवारी की सेंकड लाइन के अगुआ लीडर बनने की महत्वाकांक्षा ही उन पर भारी पड़ने लगी।

जब प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कमलनाथ के नेतत्व में प्रदेश की नई कार्यकारिणी का गठन हुआ तो कार्यकारी अध्यक्ष के पद को लेकर जीतू पटवारी की उहापोह स्पष्ट दिखाई दी। इसके बाद पटवारी ही प्रदेश कांग्रेस के पहले नेता थे जिन्होंने चुनाव जीतने की स्थिति में कमलनाथ को मुख्यमंत्री बनाए जाने को लेकर पार्टी में स्थापित लाइन से अलग जाकर बयान दिया था।

भारत जोड़ो यात्रा के मध्यप्रदेश से गुजरने पर राहुल गांधी ने इशारों ही इशारों में कमलनाथ के नेतृत्व में ही चुनाव लड़ने का संकेत दे दिया था। कांग्रेस भी कमलनाथ की अगुआई में बेहद सधे कदमों से चुनाव की तैयारियों में भाजपा से आगे दिखने लगी थी लेकिन जीतू पटवारी के कमलनाथ पर दिए गए अति उत्साही बयान ने पार्टी की अंदरूनी राजनीति को फिर चर्चा में ला दिया।

दूसरी ओर इसे पटवारी की प्रेशर पॉलिटिक्स भी करार दिया जा रहा है। यह कहा जा रहा है कि पार्टी के सर्वे में जीतू पटवारी की अपनी सीट पर स्थिति कमजोर बताई गई है। यह खबरें भी सामने आई थी कि कमलनाथ ने पटवारी को अपनी सीट पर फोकस करने की नसीहत भी दी थी। इसके बाद पटवारी ने अपनी सीट से परे खुद को प्रदेश स्तर का नेता स्थापित करने में बयानबाजी का दौर शुरू कर दिया।

कांग्रेस के अंदरखाने में यह भी चर्चा है कि जीतू पटवारी न सिर्फ अपनी सीट पर कमजोर हैं बल्कि उन्होंने अब तक जिन सीटों पर अपने नामों को हरी झंडी दिलाई वहां भी कांग्रेस को हार का मुंह ही देखना पड़ा। कहा जाता है कि सिंधिया की बगावत के बाद 28 सीटों के उपचुनाव में जीतू पटवारी ने तुलसी सिलावट और प्रदुम्न सिंह तोमर के खिलाफ प्रेमचंद गुडडु और सुनील शर्मा के नाम की जमकर पैरवी की थी लेकिन दोनों ही बुरी तरह चुनाव हारे।

इससे पहले जीतू पटवारी खेमे के कहे जाने वाले मनोज पटेल तो सिंधिया के साथ ही होकर पार्टी का साथ छोड़ चुके थे। हाल ही में इंदौर महापौर के चुनाव में भी जीतू पटवारी की भूमिका पर पार्टी के अंदर ही सवाल उठे थे। ऐसे में जीतू पटवारी जहां कांग्रेस के लिए बड़ा चेहरा होने का दावा भले ही करते रहे हों लेकिन धरातल पर वे पार्टी को मजबूत करने में उतने सफल होते नहीं दिखे।

विधानसभा के बजट सत्र में भी शिवराज सरकार पर हमलावर होने के फेर में निलबंन के बाद पार्टी पूरी उनके साथ खड़ी दिखी लेकिन पटवारी की असहजता पार्टी के 13 तारीख को होने वाले प्रदर्शन की अपील में भी दिखाई दी।

दूसरी ओर आम आदमी पार्टी की प्रदेश में भाजपा और कांग्रेस के उन नेताओं पर नजर है जो पार्टी लाइन के खिलाफ दिख रहे हैं। चर्चा यहां तक है कि आप के अंदरखाने में भी जीतू पटवारी को विकल्प के रूप में देखा जा रहा है। दूसरी ओर सियासी गलियारों में पटवारी की भाजपा से नजदीकी की चर्चा तो उस समय से है जब वे कमलनाथ सरकार में मंत्री बनाए गए थे और उन्हें नरोत्तम मिश्रा का बंगला आवंटित हुआ था लेकिन पटवारी ने नरोत्तम मिश्रा को उसी बंगले में रहने दिया था। तब से ही दोनों के बीच आपसी समझ की बात भी कही जाती रही है।

अब भाजपा लगातार कमलनाथ और पटवारी की बीच आपसी संबंधो को लेकर कटाक्ष के रूप में पटवारी को जो राह दिखा रही है वह भी किसी से छिपी नहीं है। ऐसे में विधानसभा चुनाव से पहले पटवारी प्रदेश के लिए एक बड़ी सियासी चर्चा का विषय बने हुए हैं। यह कहा जा रहा कि आगामी चुनाव से पहले वे बड़ा कदम उठाने का भी सोच सकते हैं देखना यह है कि अगर ऐसा होता है तो क्या पटवारी का यह कदम ज्योतिरादित्य सिंधिया की राह पर ही होगा?

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