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73 लाख करोड़ के कृषि कारोबार में कॉर्पोरेट्स की एंट्री, गांव-कस्बों में छोटे व्यापारियों की उल्टी गिनती शुरू?

कृषि कानूनों की तरह ही खाद-बीज के बाजार को ई काॅमर्स कंपनियों के लिए खोले जाने विरोध भी शुरू हो गया है।

भोपाल (जोशहोश डेस्क) किसान आंदोलन के बीच अब गांव कस्बों में चल रहे खाद बीज के बाजार को भी सरकार ने ई-कॉमर्स कंपनियों के लिए खोल दिया है। एमेजाॅन जैसी दिग्गज ई काॅमर्स कंपनी ने एग्रीबिजनेस के नाम पर लगभग 73 लाख करोड़ के इस बाजार में एंट्री भी मार दी है। कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने स्वयं एमेजाॅन के किसान स्टोर का हाल ही में उद्घाटन किया है। वहीं कृषि कानूनों की तरह ही खाद-बीज के बाजार को ई काॅमर्स कंपनियों के लिए खोले जाने विरोध भी शुरू हो गया है।

एमेजाॅन इंडिया ने खाद-बीज, कीटनाशक और अन्य कृषि आधारित करीब आठ हजार उत्पादों की ऑनलाइन बेचना शुरू किया है। एमेजाॅन ने इसके लिए अपने किसान स्टोर भी खोलना शुरू कर दिए हैं। ऐसे में गांव कस्बों में खाद बीज और कीटनाशक के छोटे व्यापारियों के धंधे चौपट होने की आशंका जताई जाने लगी है।

कांग्रेस विधायक जयवर्धन सिंह ने भी गांव गलियों में ऑनलाइन रिटेल कंपनियों के प्रवेश को छोटे व्यापारियों के लिए बड़ा खतरा बताया है-

एक्टिविस्ट जितेंदर ने इफको और एमेजाॅन पर खाद की कीमत तुलना करते हुए केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर द्वारा एमेजाॅन स्टोर का उद्घाटन करने पर सवाल उठाया है-

गाँव और किसानों पर केंद्रित असलीभारत.कॉम के को फाउंडर और एडिटर अजीत सिंह ने भी अपनी फेसबुक पोस्ट में इसे कृषि कारोबार को बड़ी कंपनियों के हवाले करने की योजना का हिस्सा बताया।

अजीत सिंह ने लिखा कि सरकार ने खाद-बीज के बाज़ार को ई-कॉमर्स कंपनियों के लिए खोल दिया है। कुछ लोग कह सकते हैं कि जब इतना कुछ ऑनलाइन बिक रहा है तो खाद-बीज भी बिकने दीजिये। क्या फर्क पड़ता है? लेकिन फर्क तो पड़ता है। वरना रिटेल में एफडीआई के खिलाफ भाजपा विपक्ष में रहते हुए विरोध-प्रदर्शन न करती। खुद आरएसएस से जुड़े संगठन दिग्गज ई-कॉमर्स कंपनियों के तौर-तरीकों को लेकर शिकायत करते रहते हैं। यहां सवाल सिर्फ व्यापार का नहीं है। यह पूरी कृषि और खाद्य व्यवस्था को कॉरपोरेट्स के हवाले करने कवायद है। इसलिए सवाल उठना चाहिए कि ई-कॉमर्स कंपनियों को खाद-बीज बेचने की छूट किसने दी है? कब दी है? खाद-बीज के व्यापार में ई-कॉमर्स को लेकर सरकार की आखिर नीति क्या है?

एकन्य पोस्ट में लिखा गया कि गांव और कस्बों में “कृषि सेवा केंद्र” चलाने वाले और कृषि से संबंधित सामान (खाद, बीज, दवाई इत्यादि) बेचने वाले छोटे दुकानदारों के दिन अब गिनती के बचे हैं क्योंकि इस कारोबार में एमेजॉन का प्रवेश हो गया है। लगभग 73 लाख करोड रुपए के इस कारोबार में बहुराष्ट्रीय कंपनी एमेजॉन (जिन्हें ईस्ट इंडिया कंपनी के नए संस्करण कह सकते हैं) ने एग्रीबिजनेस के नाम पर प्रवेश किया है। प्रवेश इतना धमाकेदार है कि देश के कृषि मंत्री ने स्वयं ही इनका स्वागत करते हुए अपने ट्विटर हैंडल पर प्रचार कर दिया। देखते हैं सरकार अब इसको क्या “नैरेटिव” देकर लोगों को इसके फायदे बताती है। या ये भी किसानों के “अच्छे दिनों” का ही एक्सटेंशन होने वाला है। हां स्वदेशी का डंका पीटने वाले आरएसएस, स्वदेशी जागरण मंच और उनसे जुड़े किसान संगठनों के रूख का ज़रूर इंतजार है।

गौरतलब है कि कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने एमेजॉन के कृषि स्टोर को लेकर कहा है कि एमेजॉन इंडिया की यह पहल डिजिटल अर्थव्यवस्था के आधुनिक दौर में भारतीय किसानों को शामिल करने, कृषि उपज की उत्पादकता बढ़ाने, लाजिस्टिक्स उद्योग जैसी सेवाएं उपलब्ध कराने को लेकर किसानों तथा खेती-किसानी से जुड़े लोगों के लिए लाभकारी साबित होगी।

वहीं एमेजॉन का दावा है कि उनके स्टोर्स से किसानों को आसानी से उनके दरवाज़े पर कृषि उपकरण, एक्सेसरीज, न्यूट्रिशन, उर्वरक, बीज, आदि जैसी वस्तुऐं किफायती दाम पर उपलब्ध होंगी। एमेजॉन इंडिया ने एग्रीकल्चर से जुड़े 8000 उत्पादों को अपनी ऑनलाइन बिक्री में शामिल किया है। एमेजॉन के मुताबिक अग्रणी तकनीक के माध्यम से भारतीय किसानों और कृषि समुदाय को सशक्त बनाएगा और उसकी इस पहल से कृषि उपज, फलों और सब्जियों की गुणवत्ता में सुधार आएगा।

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