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उत्तरप्रदेश चुनाव की क्या बन रही तस्वीर? पत्रकार राकेश अचल की समीक्षा

उत्तरप्रदेश में कुछ महीने बाद होने वाले विधानसभा चुनाव में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के लिए चुनौती देने वाला अगला लल्लनटॉप कौन होगा इसकी तस्वीर सामने आने लगी है। एक तरफ योगी का अतीत सुशासन यानि राम राज है तो दूसरी तरफ उसे उखाड़ फेंकने के लिए आतुर पुराने खिलाड़ी अखिलेश यादव की समाजवादी पार्टी और बहन मायावती की बहुजन समाजवादी पार्टी। कांग्रेस इस खेल में कहाँ है ये सभी जानते हैं।

चुनावों से पहले मतदाताओं की नब्ज टटोलने वाले बहुत से डॉक्टर मैदान में उतर जाते है। तकनीकी तौर पर ये सर्वे करने वाले दिहाड़ी के मजूर होते हैं लेकिन कुछ हद तक ये अपना काम करते हैं। काम के बदले इन्हें पैसा भी मिलता है इसलिए ये पैसा देने वाले के हितों का भी ख्याल रखते हैं किन्तु इन्हें अपने प्रायोजक के हितों का भी ख्याल रखना पड़ता है इसलिए बहुत ज्यादा उंच-नीच करना भी इनके हाथ में नहीं होता। इन सर्वेक्षणों के आधार पर राजनीतिक दल अपनी चुनावी तैयारियों कि समीक्षा कर उनमें फेरबदल भी करते हैं।

यूपी के चुनावी माहौल के दौरान फिलहाल एबीपी सी वोटर सर्वे सामने आया है। इस सर्वे के दौरान यह जानने की कोशिश की गई है कि उत्तरप्रदेश मे अगला मुख्‍यमंत्री कौन होना चाहिए और यूपी के लिए कौन बेहतर होगा। जिसपर लोगों ने अपनी प्रतिक्रिया दी है। सर्वे के दौरान सबसे अधिक योगी आदित्यनाथ को पसंद किया गया है। वहीं अखिलेश यादव लोगों के दूसरे पसंद बने हैं। इसके अलावा तीसरे नंबर पर बसपा प्रमुख मायावती, चौथे नंबर पर प्रियंका गांधी और अंत में लोगों ने रालोद अध्‍यक्ष जयंत चौधरी को पसंद किया गया है।

राकेश अचल

चुनावी सर्वेक्षणों के बारे में मै कभी आश्वस्त नहीं रहता लेकिन चूंकि मै भी इन सर्वेक्षणों का हिस्सा रहा हूँ। इसलिए मुझे पता है कि ये सर्वेक्षण सच के आसपास ही होते है। यानि यदि मौजूदा मुख्यमंत्री सत्ता प्रतिष्ठान विरोधी लहर को चलने से रोक ले तो उनकी कुर्सी बनी रह सकती ह। सर्वे में उन्हें 44 फीसदी मतदाताओं का आकलित समर्थन प्राप्त है। राज्य में भाजपा की सत्ता के खिलाफ सत्ता प्रतिष्ठान विरोधी लहर कहीं न कहीं है इसीलिए मुख्यमंत्री आदित्यनाथ को कड़ी चुनौती भी मिल रही है।

उन्हें बेदखल करने के लिए प्रयत्नशील नेताओं में सपा के अखिलेश यादव 31 फीसदी लोगों की पसंद बन चुके है। बहन मायावती के पास फिलहाल अखिलेश यादव से आधे यानि मात्र 15 फीसदी मतदाताओं का समर्थन नजर आता है। उत्तर प्रदेश में कांग्रेस को अपने पांवों पर खड़ा करने का प्रयास करने वाली श्रीमती प्रियंका रॉवर्ट वाड्रा के साथ मात्र 4 फीसदी लोग ही खड़े दिखाई दे रहे हैं। यद्यपि उन्होंने राज्य में एक सबल विपक्षी नेता की भूमिका का निर्वाह किया है और वे हमेशा सुर्ख़ियों में भी रहीं हैं।

चुनाव पूर्व सर्वेक्षणों से आप इस बात का अनुमान लगा सकते हैं कि हवा की दिशा क्या है ? हवा की दिशाएँ बदलती भी रहतीं है। सत्तारूढ़ दल को भी इसका अनुमान होता है ,है भी तभी तो इस बार राज्य में बूथ स्तरीय प्रबंधन में पार्टी ने केंद्रीय गृहमंत्री से लेकर आम कार्यकर्ता की भी जिम्मेदारी तय की है। भाजपा को सत्ताच्युत करने के लिए कसबल लगा रहे समाजवादी पार्टी के लिए भविष्य सुनहरा जरूर दिखाई दे रहा है लेकि एन मौके पर कहाँ,क्या हो जाये कुछ कहा नहीं जा सकता ,क्योंकि उनके अपने चाचा कभी भी अपना रंग बदलकर अखिलेश को परेशानी में डाल सकते हैं। बावजूद इसके फिलहाल अखिलेश का चुंबकत्व भाजपा की नींद उड़ाने में कामयाब रहा है। बसपा,कांग्रेस और उससे इतर दूसरे नेताओं का रुख ही यूपी के चुनावी परिदृश्य को स्पष्ट कर पायेगा।

उत्तरप्रदेश देश की राजनीति में अपना प्रमुख स्थान रखता है। आप कह सकते हैं कि देश की राजनीति की दिशा भी निर्धारित करता है। इसलिए भाजपा बहुत ज्यादा सचेत हैं। भाजपा ने अपने तमाम पत्ते खोल दिए हैं। सबसे बड़ी चुनौती किसान आंदोलन था उसे भी एक तरह से भाजपा ने कृषि क़ानून वापस लेकर विपक्ष का दबाब कम करने की कोशिश की है। इस कोशिश के नतीजे तो बाद में ही आएंगे। समाजवादी पार्टी तमाम दबाबों के बावजूद भी अचानक राज्य में अपने पांवों पर खड़ी नजर आ रही है। बसपा और कांग्रेस भाजपा को सीधी चुनौती दे नहीं सकती। बाक़ी दूसरे दलों कोई हैसियत ईंट-रोड से ज्यादा नहीं है। ये छोटे दल सरकार बनते समय यत्र-तत्र इस्तेमाल किये जाते हैं।

बीते वर्षों में हुए अनेक विधानसभा चुनावों में भाजपा का प्रदर्शन बहुत अच्छा नहीं रहा है । अनेक राज्य उसके हाथ में नहीं हैं और जहां भाजपा सत्ता में है वहां भी उसकी हैसियत बहुत अधिक मजबूत नहीं है। अर्थात भाजपा को दिल्ली हो, बंगाल हो ,बिहार हो ,पंजाब हो यहां तक कि मध्यप्रदेश ,राजस्थान और छत्तीसगढ़ में भी पहले जैसा जन समर्थन हासिल नहीं है। मध्यप्रदेश में तो भाजपा की मांग में उधार का सिन्दूर भरा हुआ है।

दक्षिण पूर्वी राज्यों में भी भाजपा की पकड़ ढीली हुई है। आने वाले दिनों में मौजूदा परिदृश्य में तेजी से तबदीली होगी। क्योंकि भाजपा को हर कीमत पर उत्तरप्रदेश की सत्ता चाहिए। भाजपा अतीत में ही इसके लिए बहुत ज्यादा कीमत अदा कर चुकी है। अब यूपी में राम मंदिर कोई मुद्दा नहीं है। बाबरी मस्जिद अतीत का हिस्सा बन चुका है। इसलिए अब जातिवाद,आदिवासी कार्ड ही खोले और खेले जा सकते हैं। लेकिन इतना तय है कि उत्तर प्रदेश कि जनता को केसरिया और लाल रंग ही फबता है।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)

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