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दीपोत्सव की रौनक, त्यौहारों के बाज़ार से चलती भारतीय अर्थव्यवस्था

त्यौहारों के दौरान लोग जमकर खरीददारी करते हैं, प्राचीन समय से त्यौहारों के बाजार हमारी अर्थव्यवस्था में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते आए हैं

बाजार दीपोत्सव की रौनक से सजे हुए हैं, ऑटोमोबाइल्स से लेकर कपड़ा बाजार तक और स्वर्ण आभूषणों से लेकर गिफ्ट व मिठाईयों की खरीदी चल रही हैै। असल में भारत के पर्व इस अनुसार ढले हुए हैं कि जब त्यौहारों का समय आता है तो मौसम में भी उसी अनुसार बहार नजर आती है और बाजार गुलजार दिखाई देते हैं। त्यौहारों पर लगने वाले बाजार अर्थव्यवस्था को भी गति देते हैं। प्राचीन समय से त्यौहारों के बाजार हमारी अर्थव्यवस्था में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते आए हैं, वहीं अब नए परिवेश में बाज़ारों में खरीदी के साथ ही लोग त्यौहारों पर आने वाले शुभ मूर्हुत के अनुसार शेयर ट्रेडिंग, आईपीओ और अन्य डिजिटल सिक्यूरिटिज में निवेश करने लगे हैं।

जानकारों की मानें तो त्यौहारी सीजन इस बार देशभर के व्यापारियों के लिए बड़े कारोबार का अवसर लेकर आ रहा है। दीपावली पर त्यौहारी खरीद एवं अन्य सेवाओं के जरिए करीब ढाई लाख करोड़ रुपये की तरलता का बाजार में आने की संभावना कन्फेडरेशन ऑफ ऑल इंडिया ट्रेडर्स (कैट) ने जताई है। प्राइवेट सेक्टर के कर्मचारियों को मिले दीपावली बोनस, खेतों में आई फसल बेचने से बाजार खरीदी करने निकले किसान और दीपोत्सव को लेकर युवाओं में खरीदी के उत्साह के कारण बाजार में कैश फ्लो बढ़ेगा।

भारतीय संस्कृति सबसे प्राचीन, संमृद्ध और वैज्ञानिक है। हम संस्कृति के अनुसार पर्व, परंपराएं और पूजन का विधान पूरा करते हैं। हर भारतीय त्यौहार का एक वैज्ञानिक महत्व है, हमारा हर पर्व रहन-सहन, खान-पान, फसलों व प्रकृति के परिवर्तनों पर आधारित है। हमारे पर्वों में जहां पौराणिक कथाओं का उल्लेख मिलता है, वहीं खगोलीय घटना, धरती के वातावरण, मनुष्य के मनोविज्ञान व सामाजिक कर्तव्यों की सीख भी परिलक्षित होती है।

प्रवीण कक्कड़

सारे त्यौहारों का हमारे जीवन में बहुत गहरा महत्व है। यह सारे त्यौहार हमारी सभ्यता और संस्कृति में इस तरह से रचे बसे हैं कि असल में इन्हीं के माध्यम से समरस समाज का निर्माण होता है। हमारे त्यौहार सांस्कृतिक एकता की सबसे बड़ी धरोहर होने के साथ ही अर्थव्यवस्था का पहिया भी हैं। हमारे पूर्वजों ने इन त्यौहारों में बड़ी ही शालीनता से हमारी संस्कृति ने आर्थिक और सामाजिक गतिविधियां भी जोड़ दीं।

भारतीय त्यौहारों के दौरान बड़े पैमाने पर मेले लगते हैं, बाजार भराते हैं, छोटे बड़े कस्बों में भांति-भांति के आयोजन होते हैं, लोग जमकर खरीददारी करते हैं। घरों को सजाते हैं, नए कपड़े पहनते हैं, नए वाहन खरीदते हैं और बहुत सी ऐसी चीजें होती हैं, जो होती तो असल में उत्साह से हैं, लेकिन उन्हें आर्थिक गतिविधि बड़े सलीके से पिरोई जाती है। एक तरह से यह त्यौहार हमारी धर्म और संस्कृति के साथ ही हमारी अर्थव्यवस्था का सबसे प्राचीन पहिया है।

यह अमीर को खर्च करने का और गरीब को नई आमदनी हासिल करने का मौका देते हैं। भगवान गणेश की प्रतिमाओं का निर्माण करने वाले, मां दुर्गा की प्रतिमाओं का निर्माण करने वाले और रावण के पुतले बनाने वाले ज्यादातर लोग कारीगर वर्ग से आते हैं। वे साल भर मेहनत करते हैं। इसी तरह दीपोत्सव पर सजने वाली बाजार के लिए मिट्टी के दिए जानी बताशे मूर्तियां, सजावटी सामान और इलेक्ट्रॉनिक झालरों से बाजार सजे रहते हैं जिन्हें साल भर तैयार करके कलाकार बाजार में लाते हैं।

भारत में हिंदू धर्म के साथ ही अन्य धर्मों के त्यौहार भी उसी उल्लास के साथ मनाया जाते हैं। धार्मिक और आर्थिक गतिविधि के साथ ही इन त्यौहारों में अलग-अलग धर्म के लोगों को एक दूसरे के रीति रिवाज और संस्कार समझने का मौका मिलता है। ऐसे में हिंदू जान पाता है पैगंबर हजरत मोहम्मद साहब के इस धरती पर आने से मानवता का क्या कल्याण हुआ और मुस्लिम समुदाय के लोग यह समझ पाते हैं कि भगवान राम ने असुरों का संहार करके यानी दुष्टों का संहार करके किस तरह से इस धरती को आम आदमी के रहने योग्य स्थान बनाया।

वाल्मीकि जयंती पर वाल्मीकि समुदाय इसमें ना सिर्फ महर्षि वाल्मीकि की आराधना करता है, बल्कि उसे यह गौरव करने का अवसर भी प्राप्त होता है कि हिंदू समाज के सबसे महत्वपूर्ण ग्रंथ वाल्मीकि रामायण की रचना उसी के समाज के महर्षि वाल्मीकि ने की थी। इस तरह से यह पर्व भारत में जात-पात के बंधन और ऊंच-नीच के भेदभाव को खत्म करने का भी काम करते हैं।

जब समाज के हर धर्म और हर जाति के लोग समान रूप से प्रसन्न होते हैं। एक दूसरे से घूलते-मिलते हैं। एक दूसरे के तीज त्यौहार में शिरकत करते हैं तो उससे इन सारी संस्कृतियों के मिलन से महान भारतीय संस्कृति का निर्माण होता है। भारत की यही वह संस्कृति है जिसको पूरी दुनिया में श्रद्धा और सम्मान की निगाह से देखा जाता है।

(लेखक समाजसेवी हैं । वे मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री के ओएसडी भी रह चुके हैं)

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