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जनता नहीं बल्कि सिंधिया की आकांक्षाओं का शहर बन कर रह गया ग्वालियर?

सिंधिया को शहर का ऐतिहासिक वैभव चाहिए लेकिन जनता को शहर का भोपाल और इंदौर जैसा सर्वांगीण विकास

मध्यप्रदेश का ग्वालियर शहर उन गिने चुने शहरों में से एक है जिसके पास कहने को तो एक से जयादा निगेबान और पासवां है, संतरी हैं,लेकिन ग्वालियर पिछले सात दशक में आगे बढ़ने के बजाय पिछड़ता ही जा रहा है। इसकी असल वजह ये है कि आज भी ये शहर उन्हीं लोगों के हाथों का खिलौना बना हुआ है जो कल भी इस शहर के भाग्यविधाता थे और आज भी हैं।

ग्वालियर के सांसद विवेकनरायण शेजवलकर हैं लेकिन यहां उनकी कोई नहीं सुनता। ग्वालियर का प्रशासन ,पुलिस और प्रदेश की सरकार केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया के इशारों पर काम करती है। दूसरे केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह भी ग्वालियर की निगेबानी की हुंकार भरते हैं किन्तु जब सिंधिया आगे आते हैं तो वे पीछे हट जाते हैं। इस तरह ग्वालियर यहां की जनता की आकांक्षाओं का नहीं बल्कि सिंधिया की आकांक्षाओं का शहर बनकर रह जाता है। प्रदेश सरकार के मंत्री भी सिंधिया के बिना ग्वालियर के बारे में कुछ सोचने और करने का साहस नहीं जुटा पाते।

आपको हैरानी होगी कि केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया ग्वालियर के निर्वाचित जनप्रतिनिधि न होते हुए भी निर्वाचित जन प्रतिनिधियों से ऊपर हैं। जिले में क्या हो और क्या नहीं, इसका फैसला सिंधिया ही करते हैं। हालाँकि बीच-बीच में केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ग्वालियर के मामलों में दखल करने की कोशिश करते हैं लेकिन खुलकर सामने नहीं आते। ग्वालियर में कौन कलेक्टर हो, कौन एसपी हो,कौन आईजी हो, कौन कमिश्नर हो ये सब सिंधिया पर निर्भर है। यदि उनकी पसंद के बिना कोई अधिकारी आ भी जाये तो उसे हिकारत का सामना करना पड़ता है।

राकेश अचल

अभी हाल ही में सिंधिया ने ग्वालियर जिला प्रशासन के साथ बैठकर ग्वालियर के विकास कार्यों की समीक्षा की। स्थानीय सांसद विवेक शेजवलकर उनके बगल में गुड़ खाकर बैठे रहे। प्रदेश के प्रभारी मंत्री और दूसरे मंत्री विधायक भी सिंधिया की हाँ में हाँ मिलाने के लिए थे। बैठक में किसी भी जन प्रतिनिधि का साहस नहीं हुआ की वो कहे की ग्वालियर अनियोजित और अराजक विकास की वजह से नर्क बन चुका है। कोई नहीं बोला कि शहर की सड़कें उखड़ी पड़ीं हैं। यातायात व्यवस्था ठप्प है, सफाई हो नहीं पा रही लेकिन सिंधिया स्मार्ट सिटी परियोजना द्वारा महाराज बाड़ा पर लगाईं गयी फसाद लाइट्स की सजावट पर लट्टू हैं।

सिंधिया कहते हैं कि केन्द्र सरकार एवं प्रदेश सरकार के माध्यम से ग्वालियर विकास के कई प्रोजेक्ट धरातल पर चल रहे हैं। इन प्रोजेक्टों के पूरे होने से ग्वालियर भी विकास की दौड़ में आगे निकलकर न केवल प्रदेश में बल्कि देश में भी अपना अलग स्थान बनायेगा।

ग्वालियर में दुर्दशा की वजह सिंधिया हैं या नरेंद्र सिंह तोमर या स्थानीय सांसद विवेक शेजवलकर कहना कठिन है क्योंकि इस शहर की तमाम विकास योजनाएं चींटी की चाल से आगे बढ़ रही हैं। कहने को स्मार्ट सिटी, अमृत परियोजना, नया हवाई अड्डा, एक हजार बिस्तर का अस्पताल, एलीवेटेड रोड़, मुरार नदी का जीर्णोद्धार जैसे अनेक कार्य धरातल पर हैं लेकिन न अस्पताल पूरा है और न दूसरी कोई योजना।

शहर को ‘हैरिटेज लुक’ देने का भूत सर पर सवार है। जिस महाराज बाड़ा पर पैदल चलने की जगह नहीं है वहां केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने विक्टोरिया मार्किट में एक संग्रहालय बनवा दिया तो अब सिंधिया शासकीय प्रेस के भवन में दूसरा संग्रहालय बनाना चाहते हैं। दर्शक अपने वाहन कहाँ पार्क करेंगे किसी को फ़िक्र नहीं। विक्टोरिया मार्केट कि दुकानदार आज भी तीन-टप्परों में बैठकर अपना कारोबार चला रहे हैं,उन्हें मार्केट कि जीर्णोद्धार कि बाद उसी जगह पुनर्वासित नहीं किया गया।

ग्वालियर गवाह है कि सिंधिया की इच्छा के चलते कलेक्ट्रेट गोरखी महल से हटाकर सिटी सेंटर भेज दी गयी और तब से अब तक इस महल का कोई इस्तेमाल नहीं हो पाया। एक दूसरा महल, मोती महल था उसे भी खाली करा लिया गया लेकिन उसका भी अभी तक न कायाकल्प हुआ है और न कोई दूसरा इस्तेमाल ग्वालियर दुर्ग पर आसानी से जाने के लिए जिस ‘रोप -वे’ के लिए ग्वालियर दशकों से तरस रहा है उसके बारे में किसी समीक्षा बैठक में जिक्र नहीं होता, क्योंकि सिंधिया नहीं चाहते की रोप वे बने। जबकि प्रदेश के तमाम जिलों में छोटे-छोटे मंदिरों तक जाने के लिए रोप-वे बना दिए गए हैं।

ग्वालियर के जन प्रतिनिधियों को ग्वालियर के चतुर्दिक विकास की न फ़िक्र है और न उनके पास इसके बारे में कोई नक्शा है। सिंधिया को शहर का ऐतिहासिक वैभव चाहिए लेकिन जनता को शहर का भोपाल और इंदौर जैसा सर्वांगीण विकास। ग्वालियर के विकास के लिए बना विशेष क्षेत्र प्राधिकरण किस हालत में है किसी को इसकी चिंता नहीं है।

नए ग्वालियर की पुरानी परिकल्पना कहाँ खो गयी, कोई नहीं जानना चाहता। खुद सिंधिया सिंधिया ने स्मार्ट सिटी की समीक्षा करते हुए कहा है कि हमारे शहर का महाराज बाड़ा ऐतिहासिक बाड़ा है। यहाँ पर स्थित विभिन्न इमारतें अपनी अलग पहचान रखती हैं। इन सभी इमारतों के संरक्षण और संवर्धन के लिये कार्य किया जा रहा है।

सिंधिया चाहते हैं कि बाहर से आने वाले सैलानियों को इन ऐतिहासिक इमारतों का इतिहास भी मालूम पड़े, इसके लिये सभी ऐतिहासिक इमारतों के बाहर इस तरह का सिस्टम लगाया जाए जिसका बटन दबाते ही सैलानियों को उस इमारत के संबंध में सम्पूर्ण इतिहास और अन्य महत्वपूर्ण जानकारी उपलब्ध हो सके। इसके साथ ही सभी इमारतों के बाहर एक शिलालेख पर सम्पूर्ण जानकारी के साथ स्थापित किया जाए। यह शिलालेख ग्वालियर स्टोन पर ही लगाया जाए।

उन्होंने यह भी निर्देशित किया है कि महाराज बाड़े पर किए जा रहे सौंदर्यीकरण को देखते हुए जितने भी बिजली के तार हैं उन्हें अंडरग्राउण्ड किया जाए। केन्द्रीय मंत्री श्री सिंधिया ने यह भी निर्देशित किया है कि महाराज बाड़ा पर स्थापित सभी विद्युत पोल भी हैरीटेज लुक के लगाए जाएँ। आधुनिक विद्युत पोल सभी हटा दिए जाएँ। महाराज बाड़े पर स्थापित उद्यान को और व्यवस्थित एवं हरा-भरा बनाया जाए। पेडेस्टल जोन को भी अधिक से अधिक हरा-भरा किया जाए।आपको बता दें की महाराज बाड़ा पर सिंधिया के पूर्वज जयाजी राव सिंधिया की आदमकद प्रतिमा लगी है। सिंधिया हैरिटेज के नाम पर इस प्रतिमा स्थल को चमकाना चाहते हैं।

ग्वालियर के विकास के नाम पर सिंधिया के महल से ही स्मार्ट सिटी रोड का निर्माण शुरू किया गया है जबकि पहले से इस रोड को भाजपा की तत्कालीन महपौर समीक्षा गुप्ता थीम रोड के रूप में तीन करोड़ रूपये खर्च कर विकसित करा चुकी थीं। हजारों करोड़ रूपये के विकास का दावा करने वालों के पास इस बात को कोई जबाब नहीं है की ग्वालियर के आसपास की पहाड़ियों पर भोपाल जैसा विकास क्यों नहीं हो सका जबकि ऐसा हो सकता था?

एक आईएएस और लोकसभा सदस्य रहे भगीरथ प्रसाद ने एक पहाड़ी पर कर्मचारी कालोनी बनाकर उदाहरण वर्षों पहले पेश कर दिया था। इन पहाड़ियों को स्थानीय नेताओं ने अवैध रूप से विकसित कर अरबों रूपये कमा लिए। किसी जन प्रतिनिधि को फ़िक्र नहीं की शहर से आवारा मवेशियों को कब और कैसे बाहर किया जाये,वे केवल गौशाला में गाय पूजन कर खुश हैं। करोड़ों की गौशाला भी नगर निगम ने बाहरी बाबाओं को सौंप रखी है।

चूंकि ये चुनावी साल है इसलिए दूसरे शहरों की तरह ग्वालियर में शिलान्यासों और उद्घाटनों की बहार है लेकिन असल में ग्वालियर आधुनिक विकास के लिहाज से बहुत पीछे खड़ा हुआ है। धूल -धूसरित ग्वालियर को भोपाल और इंदौर का मुकाबला करने के लिए युगों तक इंतज़ार करना पड़ेगा। यहां से विकास तो मुमकिन है लेकिन आम जनता के मन का विकास होना असम्भव है। 2023 का ग्वालियर 1904 के ग्वालियर की तुलना में बहुत बीमार दिखाई देता है।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)

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