बड़े नोट-बड़े नेता और बड़ा फैसला, नुक्ताचीनी का कोई हक नहीं
नोटबंदी पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले के संदर्भ में वरिष्ठ पत्रकार राकेश अचल का आलेख
बड़े देश में जो होता है सो बड़ा ही होता है। नेता बड़े होते हैं, तंत्र बड़ा होता है, फैसले बड़े होते हैं और तो और फैसलों पर बड़ी अदालत का फैसला भी बड़ा ही होता है। बड़े फैसलों पर हम ,आप जैसे छोटे लोगों को नुक्ताचीनी करने का कोई हक नहीं होना।
अब देश की सबसे बड़ी अदालत यानि सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार के छह साल पहले 500 और 1000 रुपये के नोटों को बंद करने के फैसले को बरकरार रखा है. इस फैसले पर देश के बड़े राजनीतिक दल भाजपा और कांग्रेस दोनों ने अपनी प्रतिक्रिया दे दी है. कांग्रेस ने उच्चतम न्यायालय के फैसले पर नाराजगी जताई है. जबकि भाजपा ने फैसले को ऐतिहासिक बताया है. किसी ने आम जनता से पूछा ही नहीं कि उसे फैसला कैसा लगा ?
कांग्रेस के मुताबिक ये कहना पूरी तरह से गुमराह करने वाली बात है कि सुप्रीम कोर्ट ने नोटबंदी को जायज ठहराया है. पार्टी महासचिव जयराम रमेश कहते हैं कि शीर्ष अदालत ने इस पर फैसला सुनाया है कि क्या रिजर्व बैंक अधिनियम, 1934 की धारा 26(2) को नोटबंदी की घोषणा से पहले सही ढंग से लागू किया गया या नहीं ? कांग्रेस आज भी कहती है कि नोटबंदी एक बर्बादी वाला फैसला था जिससे आर्थिक प्रगति थम गई और लाखों नौकरियां चली गई.
कौन , क्या कहता है इसे ताक पर रखकर आप खुद याद कीजिए कि मोदी सरकार द्वारा लागू की गई नोटबंदी की वजह से देश में 120 लोगों की जानें गई थी। करोड़ों लोगों का रोज़गार छीन गया था, असंगठित क्षेत्र तबाह हो गया था। सरकार के बड़े फैसले से न काला धन कम हुआ और न नकली नोट। सुप्रीम कोर्ट का फैसला जो भी हों लेकिन मोदी सरकार का नोटबंदी का निर्णय भारतीय अर्थव्यवस्था पर हमेशा एक गहरे जख़्म की तरह रहेगा ।
हमारी सरकार अपने हर फैसले पर कुर्बानी वसूल करती है। नोट बंदी के फैसले पर 120 लोगों ने अपनी जान दी थी। किसानों के लिए बने कानून 700 से ज्यादा किसानों की जान लेकर ही मानें। ये सिलसिला कायम रहने वाला है।पता नहीं कब सरकार कौन सा नया फैसला कर जनता से कुर्बानी वसूल करने लगे।
भाजपा को सुप्रीम कोर्ट का फैसला ऐतिहासिक लगना स्वाभाविक है। पिछले कुछ वर्षों में आपने गौर किया हो तो आप पाएंगे कि केंद्र सरकार और हमारे सर्वोच्च न्यायालय में ऐतिहासिक काम करने की एक अघोषित प्रतिस्पर्धा सी चल रही है। ये संयोग भी हो सकता है और नहीं भी। भाजपा चाहती है कि सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद भारत जोड़ो यात्रा पर निकले राहुल गांधी माफी मांगें क्योंकि उन्होंने नोटबंदी के खिलाफ अभियान चलाया था। भाजपा मानती है कि आतंकवाद की रीढ़ को तोड़ने में नोटबंदी ने महत्वपूर्ण काम किया.
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि केंद्र सरकार के 2016 में 500 और 1000 रुपये की श्रृंखला वाले नोट बंद करने के फैसले को अनुचित नहीं ठहराया जा सकता. न्यायमूर्ति एस. ए. नज़ीर की अध्यक्षता वाली पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने कहा कि इस संबंध में फैसला भारतीय रिजर्व बैंक और सरकार के बीच विचार-विमर्श के बाद किया गया। कोर्ट के इस फैसले को अब जनता की अदालत के अलावा कहीं और चुनौती नहीं दी जा सकती।दी भी नहीं जाना चाहिए।ऐसा करने से भारतीय न्याय व्यवस्था की बुनियाद हिल सकती है।
गनीमत ये कि हमारी न्याय व्यवस्था अपने फैसलों को भगवान का फैसला नहीं कहती। हालांकि यदि ऐसा कहा जाने लगे तो भी कुछ किया नहीं जा सकता। हमारे यहां नेताओं को तो भगवान का अवतार बताया ही जाने लगा है। मोदी जी हों राहुल गांधी दोनों अंधभक्तों के लिए अवतार हैं। ऐसे में जनता मूर्ख, कल कामी के अलावा और क्या हो सकती है ?
भारतीय मौद्रिक प्रणाली में तो एक का नोट और एक से सौ के बीच के सिक्के होते हैं, होना चाहिए, लेकिन नहीं है। कोई बड़ा आदमी, अदालत और दल इस विषय पर नहीं बोलेगा। बोले भी तो कैसे? देश में आजकल एक ही सिक्का चल रहा है वो है मोदी जी का सिक्का। ये सिक्का चित हो,पट हो या खड़ा हो रहेगा मोदी जी का ही। जब तक देश में जनता कोई नया सिक्का खुद नहीं चलाती तब तक यथास्थिति रहने वाली है। जय श्रीराम।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)