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विवाद या विषाद: जयंती के दिन ही गांधी को नकारने की बेशर्म कोशिशें

बीते कल गांधी जयंती थी। गांधी देश के ही नहीं दुनिया के लिये अनुकरणीय हैं। हाल ही में भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अमेरिकी राष्ट्रपति जो वाइडेन के बीच मुलाकात में गांधी प्रमुख रूप से उल्लखित हुए। अमेरिकी राष्ट्रपति ने महात्मा गांधी को लेकर कहा कि विश्व को आज उनके अहिंसा, सम्मान और सहिष्णुता के संदेश की जितनी जरूरत है, उतनी शायद पहले नहीं थी।

जिस गांधी को दुनिया में सम्मान मिला है उस गांधी को कल ठीक उनकी जयंती के दिन नकारने की बेशर्म कोशिशें हुईं। सोशल मीडिया ट्वीटर पर गांधी के हत्यारे गोडसे को महिमा मंडित करने से एक विचारधारा विशेष से प्रभावित लोग नहीं चूके। ट्वीटर पर गोडसे ज़िंदाबाद का हैशटैग चलाया गया। फेसबुक पर भी गांधी जयंती को शास्त्री जयंती बताने वालों की कमी नहीं थी। ऐसा कहा गया कि 2 अक्टूबर गांधी जयंती के नाम से जाना जाता है इसलिये शास्त्री उपेक्षित रह गए।

राकेश पांडेय

शास्त्री यानि लाल बहादुर शास्त्री स्वतंत्र भारत में नेहरू के बाद दूसरे नियमित प्रधानमंत्री बने थे। एक छोटे से कालखंड में वे बड़ा काम कर गए थे। 1965 में पाकिस्तान से युद्ध में उन्होंने भारत को गौरवपूर्ण विजय दिलाई थी। उस कठिन समय मे ‘जय जवान जय किसान’ का नारा देकर देश को दिशा दी थीं।

नेहरू मंत्रिमंडल में रेलमंत्री के रूप में भी वे एक अभिनव उदाहरण दे गए। शास्त्री सादगी के पर्याय थे। गांधी के सच्चे अनुयायी थे। उन्हें भारत के श्रेष्ठ प्रधानमंत्रियों की सूची में रखा जा सकता है। याद किया जा सकता है पर गांधी को उपेक्षित नहीं किया जा सकता।

दुनिया मे जो पहचान और स्वीकार्यता गांधी को मिली है वह किसी दूसरे को नहीं मिल सकती। दुनिया मे भारत गांधी के देश के तौर पर पहचाना जाता है। भारत को जो भी सम्मान दुनिया में मिलता है उसकी वजह सिर्फ और सिर्फ गांधी हैं। भारत में गांधी से बड़ा कोई व्यक्तित्व बन पाएगा ऐसी संभावना दूर दूर तक नहीं है।

वह विचारधारा जो सोशल मीडिया पर नाथूराम गोडसे जिंदाबाद ट्रेंड चलाती है उसके लीडर भी गांधी जयंती पर दुनिया को दिखाने के लिए ही सही, सबसे पहले गांधी जी को श्रद्धांजलि देने पहुंच जाते है। यह कमाल है।

मैंने गांधी के संदर्भ में लिखा था कि आज हिंसा, उग्रवाद, असमानता, गरीबी और विषमता आदि की उपस्थिति में भी यदि कोई गांधी और उनके विचारों की प्रासंगिकता का प्रश्न करता है तो शायद गांधी के विचारों को लेकर उस व्यक्ति की समझ में कोई अस्पष्टता है।

लोकतंत्र में आलोचना करना सभी का अधिकार होता है, परंतु आलोचना करने से पूर्व यह भी आवश्यक है कि हम उस व्यक्ति के बारे में अच्छे से पढ़ें और तर्क के आधार पर उसकी आलोचना करें।

आज मैं देख रहा हूँ कि देश में गांधी के काम को आगे बढ़ाने वाले लोग भी मौन हैं। वे साहस के साथ गांधी के नाम और काम को लेकर नहीं खड़े हैं। गांधी जयंती कोई औपचारिक अवसर नहीं है कि उसे झाड़ू लगाकर मना लिया जाय। गांधी जयंती कोई स्वच्छता दिवस भी नहीं है। गांधी को अगर गांधी का देश ही नकार देगा तो ऐसे देश को दुनिया धिक्कारेगी ही, सराहेगी नहीं।

(लेखक उत्तरप्रदेश बैंक कर्मचारी यूनियन के पदाधिकारी हैं)

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