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बुंदेलखंड की वीरांगना जो हू-ब-हू दिखती थी रानी लक्ष्मीबाई

झलकारी बाई की गाथा आज भी बुंदेलखंड की लोकगाथाओं और लोकगीतों में सुनी जा सकती है।

भारतीय इतिहास में रानी लक्ष्मीबाई (Rani LaxmiBai), अवंती बाई जैसी कई वीरांगनाओं की शौर्य गाथाएं स्वर्ण अक्षरों में अंकित हैं लेकिन एक वीरांगना ऐसी भी है जिसका न तो किसी राज परिवार में जन्म हुआ और न किसी रियासत के राजुकमार से विवाह। एक बेहद निर्धन परिवार में जन्मी और सत्ता की बजाए सिर्फ देशहित में प्राणोत्सर्ग तक करने वाली इस वीरांगना का साहस और बलिदान इतिहास में भी उपेक्षित ही रह गया।  जी हां यह वीरांगना है बुंदेलखंड (Bundelkhand) का गौरव कही जाने वाली झलकारी बाई (JhalkariBai)। 22 नवंबर को झलकारी बाई (JhalkariBai) की जयंती है। जोशहोश मीडिया की ओर से भारतीय इतिहास की इस अप्रितम योद्धा को सादर नमन। झलकारी बाई का विवाह झांसी की रानी के सेना के बलिदानी पूरन कोरी से हुआ था। यही कारण है कोरी समाज भी प्रदेश भर में कई आयोजनों के माध्यम से अपनी इस साहसी वीरांगना की गौरवगाथा का स्मरण कर रहा है। 

 इस खास मौके पर हम आपको बता रहे है किस तरह झलकारी बाई अपने युद्ध कौशल की दम पर एक निर्धन परिवार में जन्म लेकर महारानी लक्ष्मीबाई के   दुर्गा दल की सेनापति बनी और किस तरह जब रानी लक्ष्मीबाई अंग्रेजों से घिर गईं तो अपनी कद काठी और चेहरे से झलकारी बाई ने अंग्रेजों को भ्रम में रख भारतीय इतिहास में खुद को अमर कर दिया। 

हू-ब -हू अपनी रानी की तरह देती थीं दिखाई 

झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई की नियमित सेना में महिला शाखा दुर्गा दल की सेनापति झलकारी बाई हू-ब -हू अपनी रानी की तरह दिखाई देती थी। उनका जन्म 22 नवम्बर 1830 को झांसी के पास के भोजला गाँव में एक निर्धन कोली परिवार में हुआ था। झलकारी बाई के पिता का नाम सदोवर सिंह और माता का नाम जमुना देवी था। जब झलकारी बाई बहुत छोटी थीं तब उनकी माँ की मृत्यु के हो गयी थी, और उसके पिता ने उन्हें एक लड़के की तरह पाला था। उन्हें घुड़सवारी और हथियारों का प्रयोग करने में प्रशिक्षित किया गया था। उन दिनों की सामाजिक परिस्थितियों के कारण उन्हें कोई औपचारिक शिक्षा तो प्राप्त नहीं हो पाई, लेकिन उन्होनें खुद को एक अच्छे योद्धा के रूप में विकसित किया था। झलकारी बचपन से ही बहुत साहसी और दृढ़ प्रतिज्ञ बालिका थी। झलकारी घर के काम के अलावा पशुओं का रख-रखाव और जंगल से लकड़ी इकट्ठा करने का काम भी करती थीं। एक बार जंगल में उसकी मुठभेड़ एक तेंदुए से हो गयी थी और झलकारी ने अपनी कुल्हाड़ी से उस तेंदुआ को मार डाला था। एक अन्य अवसर पर जब डकैतों के एक गिरोह ने गाँव के एक व्यवसायी पर हमला किया तब झलकारी ने अपनी बहादुरी से उन्हें पीछे हटने को मजबूर कर दिया था। इस बहादुरी से खुश होकर गाँव वालों ने उसका विवाह रानी लक्ष्मीबाई की सेना के एक सैनिक पूरन कोरी से करवा दिया, पूरन भी बहुत बहादुर था और पूरी सेना उसकी बहादुरी का लोहा मानती थी। 

झलकारी बाई को देख भौचक्का रह गई थी लक्ष्मीबाई 

एक बार गौरी पूजा के अवसर पर झलकारी गांव की अन्य महिलाओं के साथ महारानी को सम्मान देने झाँसी के किले में गयीं, वहाँ रानी लक्ष्मीबाई उन्हें देख कर अवाक रह गयी क्योंकि झलकारी बिल्कुल रानी लक्ष्मीबाई की तरह दिखतीं थीं। झलकारी की बहादुरी के किस्से सुनकर रानी लक्ष्मीबाई बहुत प्रभावित हुईं। रानी ने झलकारी को दुर्गा सेना में शामिल करने का आदेश दिया। झलकारी ने अन्य महिलाओं के साथ बंदूक चलाना, तोप चलाना और तलवारबाजी की प्रशिक्षण लिया। यह वह समय था जब झांसी की सेना को किसी भी ब्रिटिश दुस्साहस का सामना करने के लिए मजबूत बनाया जा रहा था। 

हथियार उठाने का लिया संकल्प 

लार्ड डलहौजी की राज्य हड़पने की नीति के चलते, ब्रिटिशों ने निःसंतान लक्ष्मीबाई को उनका उत्तराधिकारी गोद लेने की अनुमति नहीं दी थी। ब्रिटिशों की इस कार्रवाई के विरोध में रानी के सारी सेना, उसके सेनानायक और झांसी के लोग रानी के साथ लामबंद हो गये और उन्होने आत्मसमर्पण करने के बजाय ब्रिटिशों के खिलाफ हथियार उठाने का संकल्प लिया।

 इस तरह अंग्रेजो को दिया चकमा

 जब ब्रिटिश सेना के जनरल ह्यूग रोज ने 1857 के विद्रोह के दौरान एक बड़ी सेना के साथ झांसी पर हमला किया था, तब झलकारी बाई ने रानी लक्ष्मीबाई को किले से सुरक्षित निकल जाने में मदद की थी। इस युद्ध में रानी के सेनानायकों में से एक दूल्हेराव ने दग़ाबाज़ी कर किले का एक संरक्षित द्वार ब्रिटिश सेना के लिए खोल दिया। झलकारी बाई का पति पूरन किले की रक्षा करते हुए शहीद हो गया लेकिन झलकारी ने बजाय अपने पति की मृत्यु का शोक मनाने के, ब्रिटिशों को चकमा देने की एक योजना बनाई। योजना के अनुसार झलकारी ने रानी लक्ष्मीबाई का भेष रख अंग्रेज़ी सेना का सामना किया, ताकि दुश्मन उनके साथ लड़ाई करते रहें और दूसरी तरफ से रानी लक्ष्मीबाई किले से सुरक्षित निकल सकें। योजना कामयाब रही और रानी लक्ष्मीबाई किले से सुरक्षित बाहर निकल गईं और ब्रिटिश सेना देखती ही रह गई। इतिहासकार मानते हैं कि झलकारी इस युद्ध के दौरान वीरगति को प्राप्त हुईं। हालांकि कई इतिहासकार इस से सहमत नहीं हैं। 

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मैथिलीशरण गुप्त द्वारा झलकारी बाई के लिए लिखे गए कुछ शब्द

जवाब सुन दंग रह गया था जनरल 

यह भी कहा जाता है कि किले के बाहर निकल झलकारी बाई ब्रिटिश जनरल ह्यूग रोज़ के शिविर में उससे मिलने पहँची। जनरल रोज़ और उसके सैनिक प्रसन्न थे कि न सिर्फ उन्होने झांसी पर कब्जा कर लिया है बल्कि जीवित रानी भी उनके कब्ज़े में है। जनरल ह्यूग रोज़ जो उसे रानी ही समझ रहा था, ने झलकारी बाई से पूछा कि उसके साथ क्या किया जाना चाहिए? तो उसने दृढ़ता के साथ कहा,मुझे फाँसी दो। 

 जनरल झलकारी का साहस और उसकी नेतृत्व क्षमता से बहुत प्रभावित हुआ। कहा जाता है कि झलकारी के इस उत्तर से जनरल ह्यूग रोज़ दंग रह गया और उसने कहा कि “यदि भारत की 1% महिलायें भी उसके जैसी हो जायें तो ब्रिटिशों को जल्दी ही भारत छोड़ना होगा”।

 सम्मान में जारी डाक टिकट

झलकारी बाई की गाथा आज भी बुंदेलखंड की लोकगाथाओं और लोकगीतों में सुनी जा सकती है। भारत सरकार ने 22 जुलाई 2001 में झलकारी बाई के सम्मान में एक डाक टिकट जारी किया है। 

 उनकी प्रतिमा और एक स्मारक अजमेर, राजस्थान में निर्माणाधीन है, उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा उनकी एक प्रतिमा आगरा में स्थापित की गयी है, साथ ही उनके नाम से लखनऊ में एक धर्मार्थ चिकित्सालय भी शुरु किया गया है।

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