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सोनियाजी, माफ करें!

कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी से ED की पूछताछ के संदर्भ में वरिष्ठ पत्रकार हरिशंकर व्यास का आलेख

मैं हिंदू, शर्मसार!-2:

हां, मैं सनातनी सत्य में जीने वाला एक आम हिंदू आपसे माफी चाहता हूं। मेरे लिए 21 जुलाई 2022 का वह वक्त स्वांत ग्लानि का था, जब आप ईडी के आफिस में उन हिंदू अफसरों को जवाब दे रही थी, जो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की ताबेदारी कर रहे थे। जब भाजपा के प्रवक्ता गला फाड़ चिल्ला रहे थे कि कांग्रेस शोर क्यों मचा रही है? जब देश के टीवी चैनल लाइव शो से उन हिंदुओं को यह सैडिस्टिक सुख दे रहे थे कि देखो सोनिया गांधी को औकात बता दी। मैं तब यह सोच व्यथित हुआ कि मैं कितना बड़ा पापी हूं जो उस हिंदू आइडिया को मैंने 16 मई 2014 को दूसरी आजादी करार दिया, जिसमें न विचार है, न संस्कार है, न बुद्धि है, न कृतज्ञता, है, और न ही लोकतांत्रिक मान-मर्यादा व मानवीय गरिमा है। इंसानी सभ्य राजनीतिक संस्कृति का तो खैर सवाल ही नहीं!

सोनियाजी, मैं गैर-कांग्रेसवादी रहा हूं। मेरा दिमाग राजनीतिक चेतना पैदा होने के साथ में पंडित नेहरू के समाजवाद, उनकी रीति-नीति की हिंदू विकास दर, संविधान-शासन में हिंदू सभ्यता-संस्कृति की मूल सनातनी धरोहर की अनदेखी से भभका रहा। मैं अंग्रेजी की गुलामी का निंदक रहा हूं। मैं ब्रितानियों की बनाई लुटेरी नौकरशाही (यह कितनी भ्रष्ट, चरित्रहीन, सत्ताखोर तथा रीढ़हीन है इसे आपने पिछले आठ सालों के अनुभव में भी समझा होगा।) से जस के तस सत्ता ट्रांसफर से गणों की गुलामी मानता रहा हूं। संविधान से जातवाद के पोषण का घोर विरोधी हूं। इमरजेंसी में इंदिरा गांधी की तानाशाही के खिलाफ 1977 की जनता क्रांति मुझे गदगद कर गई थी। तभी से मेरा लिखना शुरू हुआ और सौभाग्य जो रामनाथ गोयनका के बेधड़क मिजाज के माहौल में ‘जनसत्ता’ में मेरी पत्रकारिता फली-फूली।

हां, आपको भी ध्यान होगा कि ‘जनसत्ता’ और उसमें मेरे ‘गपशप’ कालम में, मैं प्रधानमंत्री राजीव गांधी के भोलेपन का मखौल उड़ाता था। कॉलम में आप पर भी लिखता था। तब अरूण सिंह, जगदीश टाइटलर, सतीश शर्मा, सुमन दुबे की पत्नी याकि आपकी अंतरंग सहेली मंडली को सत्ता की देवीस्वरूपा बता कर एक दफा तो मैंने संस्कृत का एक श्लोक रच आप पर कटाक्ष किया था। उस वक्त राजीव सरकार से जनता अभिभूत थी। लेकिन मैं तब भी वैसे ही लिखता था जो समझ आता था। मैंने राजीव गांधी के पंचायती राज कानून की तारीफ की तो शाहबानो मामले में आलोचना कर आरिफ मोहम्मद की वाह की। सचमुच वह वक्त आपके परिवार के बनवाए सभ्य, जिंदादिल लोकतंत्र का स्वर्णिम काल था। विपक्ष की राजनीति को मौका था। वीपी सिंह को मौका था। हम पत्रकारों को मौका था। तब दिल्ली निडर थी। बतौर पत्रकार मुझे एक भी दफा पीएमओ, शास्त्री भवन (मणिशंकर अय्यर, गोपी अरोड़ा, सुमन दुबे, फोतेदार, वी जार्ज, आरके धवन, अर्जुन सिंह, अरूण नेहरू, अरूण सिंह आदि से) में मेल-मुलाकात, गपशप करते हुए तनिक भी यह महसूस नहीं हुआ कि कोई नाराज है, धमकाते-फुसलाते हुए है। उलटे प्रधानमंत्री के साथ पहली विदेश यात्रा (मॉरीशस) का मुझे न्योता मणिशंकर अय्यर से मिला।

हरिशंकर व्यास

सोनियाजी, आपने लोकतंत्र का मान रखा। श्वेत विदेशी और ईसाई परिवार में जन्म की शिक्षा-दीक्षा-संस्कारों की इतावली विरासत के बावजूद आपने हिंदू परिवार की आदर्श बहू के गरिमापूर्ण व्यवहार की मिसाल बनाई। मेरी याद्दाश्त में कई फोटो हैं, जो आपके ममतापूर्ण, भद्र-गरिमापूर्ण सनातनी हिंदू व्यवहार की बानगी हैं। छोटे बच्चे वरूण गांधी का बैठ कर नाड़ा ठीक करता वह फोटो, इंदिरा गांधी की चिंता करता हुआ फोटो, राजीव के संग सिर पर पल्लू रख गरीब की झोपड़ी में फोटो, वेशभूषा में साड़ी, सूट का ग्रेसफुल पहनावा, विदेशी अतिथियों के साथ मृदु-सभ्य लोकाचार, हर विजिटर का गरिमा के साथ स्वागत और निवास परिसर में घर के दरवाजे तक छोड़ना तथा मंत्री हो या अफसर सबसे भद्र सहजता में बात करना। हां, मैंने 45 साल की लुटियन दिल्ली की अपनी खबर-खोज में कभी, एक भी बार यह नहीं सुना कि सोनिया गांधी ने किसी से तू-तड़ाके में बात की हो। घमंड-अहंकार और देख लेने, बदला लेने की धमकी दी या ऐसा कोई काम किया हो। केवल एक दफा पी उपेंद्र के मुंह से ऐसा सुना, उसे बाद में उन्होंने खुद ही नकारा। न ही उद्योगपतियों से पैसे लेने, धमकाने के फोन जैसे किस्से सुने।

सोनियाजी, मैं सनातनी भारतीय नागरिक के नाते आपका इसलिए अहसानमंद हूं क्योंकि आपने नेहरू-इंदिरा गांधी परिवार का गौरव बनाया। लाज रखी। सन् 1984 में राजीव गांधी के प्रधानमंत्री बनने से लेकर सन् 2022 के 36 सालों में आपने एक भी ऐसा काम नहीं किया, जिससे नेहरू-गांधी परिवार की राजनीतिक पूंजी-विरासत पर आंच आए। जाहिल-काहिल हिंदू चाहे जो कहें और वे राहुल गांधी-प्रियंका गांधी को पप्पू या खराब बताएं लेकिन सत्ता-पैसे-वैभव के बावजूद राहुल और प्रियंका दोनों खानदान के संस्कारित व्यवहार के प्रतिनिधि हैं। राहुल प्रधानमंत्री बन सकते थे नहीं बने। राहुल और प्रियंका में राजनीति की वे धूर्ततताएं, वे नीचताएं, वह अवसरवाद, वह वैचारिक बेइमानियां और सौदेबाजी नहीं है जो हिंदू आइडिया ऑफ इंडिया के मौजूदा वक्त में मंत्रियों के लाड़लों तथा कांग्रेसी खानदानों के नई पीढ़ी के दलबदलू लाड़लों ने पिछले आठ वर्षों में दिखलाई हैं।

सोनियाजी, आप नेहरू परिवार की आदर्श बहू थीं। राजीव गांधी की गौरवपूर्ण अर्धांगिनी। और एक सफल मां। हां, राजीव और इंदिरा गांधी ने जब आपको पंसद किया तो उन्होंने भी कल्पना नहीं की होगी कि एक विदेशी, इतावली कंजरवेटिव परिवार की ईसाई लड़की शादी के बाद कोई पचपन वर्ष भारत राष्ट्र-राज्य की न केवल नियति होगी, बल्कि भारत की आजादी की बैकग्राउंड के मूल्यों, गांधी-नेहरू के सेकुलर-लेफ्ट आइडिया की सरंक्षक मशाल बनेगी। वक्त और परिस्थितियों ने आपके क्या-क्या रोल नहीं बनाए!

सोनियाजी, आप प्रधानमंत्री बन सकती थीं। राजीव गांधी की हत्या के तुरंत बाद भी कांग्रेस अध्यक्ष और प्रधानमंत्री बन सकती थीं। पर आपने पीवी नरसिंह राव को प्रधानमंत्री बनाया। आपने डॉ. मनमोहनसिंह को प्रधानमंत्री बनाया। और दुनिया गवाह है तथा इतिहास याद रखेगा कि इन दो प्रधानमंत्रियों से 75 साल के आजाद भारत का इतिहास कैसा बदला। किसी भी एंगल से सोचें, हिंदू आकांक्षा की पहचान और विकास की दोनों कसौटियों में भारत को दिशा नरसिंह राव तथा डॉ. मनमोहन सिंह के कारण मिली है।

सोनियाजी, आपने पीवी नरसिंह राव के योगदान के साथ न्याय नहीं किया। आपकी अध्यक्षता के दौरान उनकी मृत्यु पर कांग्रेस पार्टी का अशोभनीय व्यवहार था। लेकिन मैं जानता हूं कि एमएल फोतेदार की सलाह पर आपने नरसिंह राव को प्रधानमंत्री बनवाने का फैसला किया था तो बाबरी मस्जिद के ध्वंस के बाद फोतेदार ने ही कैबिनेट में बगावत करके अर्जुन सिंह, एनडी तिवारी के साथ साझे में आपको बरगलाया कि कांग्रेस के आइडिया के खिलाफ नरसिंह राव हैं। वे कम्युनल हैं। वे हिंदुवादी हैं। आपको दरबारी कांग्रेसियों ने गुमराह किया। इन्होंने ही तब कांग्रेस की उस हिंदू जागरण से दूरी बनवाई जिसे अयोध्या में मंदिर शिलान्यास करवाने वाले राजीव गांधी की पत्नी होते हुए भी आप समझ नहीं पाईं। हिंदू भावनाओं की अनदेखी की। और आगे अपना राजनीतिक सलाहकार अहमद पटेल को बनाया।

सोनियाजी, आपने एक और गलती की। फोतेदार, अहमद पटेल और लेफ्ट के सुरजीत की ऐसे वक्त में सलाह मानी जब 9/11 के बाद इस्लामी जेहादियों के कारण पूरी दुनिया में मुसलमानों को लेकर सोच बदलती हुई थी। आपने नेहरू-गांधी परिवार की सेकुलर-प्रगतिशील वैचारिकता में अपने को ढाले रखा। और उम्मीद न होने के बावजूद सन् 2004 में हिंदूवादी वाजपेयी सरकार को हराने के बाद आपने और आपके बेटे-बेटी ने यह धारणा पाल ली कि हिंदुओं का कट्टर सियासी रूपांतरण नहीं होना है। आपके लिए 2004 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस की जीत अप्रत्याशित थी। मुझे यह बात इसलिए याद है क्योंकि चुनाव से पहले अंबिका सोनी आपकी सलाहकार थीं। वे मेरे गपशप कॉलम और चुनावी विश्लेषण की मुरीद थीं। मैंने वाजपेयी सरकार के हार सकने का जब विश्लेषण किया तो अंबिका सोनी ने न केवल मुझसे हैरानी से बात की, बल्कि आपसे भी मुलाकात कराई और आपसे भी तब अविश्वास झलका था।

सोनियाजी, अप्रत्याशित जीत के कारण ही आपने कौन बनेगा प्रधानमंत्री के पहलू पर नहीं सोचा था। तभी जीत की खुशी और आपको श्रेय देते हुए कांग्रेसियों ने प्रधानमंत्री बनने के लिए जब आपसे कहा, आपके घर हिंदुओं ने भीड़ लगाई, एक ने तमंचा तान आत्महत्या जैसे दबाव बनाए तो आप दुविधा में थीं। मैं असंख्य भारतीयों की तरह तब राहत की सांस लेते हुए था जब आपने हिंदू भावना (संकीर्ण) का सम्मान किया। कांग्रेस को चुनाव जितवाने, महाबली वाजपेयी सरकार को हराने के बावजूद आपने प्रधानमंत्री बनने का मौका ठुकराया। फालतू बात है कि सुषमा स्वराज-उमा भारती की सिर मुंड़ा लेने जैसी भभकियों से आप डरीं। मैंने ‘पंजाब केसरी’ में गपशप कालम में तब लिखा था कि राहुल गांधी ने निर्णायक रात के दिन राजीव गांधी की समाधि पर जा कर अपनी राय बनाई। और फिर मां-बेटे-बेटी की समझदारी से डॉ. मनमोहन सिंह को प्रधानमंत्री बनाने का फैसला हुआ। आप न खुद बनीं और न किसी चालबाज, सत्ताखोर कांग्रेसी (प्रणब मुखर्जी से लेकर अर्जुन सिंह आदि) को प्रधानमंत्री बनाया, बल्कि सचमुच बुद्धिमान, अर्थशास्त्री भद्र डॉ. मनमोहन सिंह को सत्ता सुपुर्द की।

सोनियाजी, वह आपका बेजोड़ निर्णय था। भारत राष्ट्र-राज्य की एकता-अखंडता की चिंता से था। अपनी सास इंदिरा गांधी की हत्या और सिख उग्रवाद, 1984 की हिंसा के जख्मों को भुलवाने, खालिस्तानी आइडिया पर पानी डालने में आपने डॉ. मनमोहन सिंह का जो मतलब बूझा क्या वैसी दूरदृष्टि 75 वर्ष के भारत इतिहास में किसी और पार्टी ने दिखाई? मनमोहन सिंह की दस साल की सरकार में खालिस्तानी शब्द गुमनामी में चला गया था जो अब मोदीजी के आठ सालों में सिर उठाए हुए है। यूपीए अध्यक्षा के आपके रोल से उत्तर-पूर्व के उग्रवादियों का समरस होना शुरू हुआ। आपने सत्ता से जवाब तलब करने का हिंदुओं को सूचना अधिकार (जो अब लगभग छीना हुआ है) दिलाया। हिंदुओं में साहस भरा। आपने गरीब वोटों को खैरात नहीं बांटी, बल्कि श्रम-रोजगार के बदले मजदूरी देने की मनरेगा योजना बनवाई। आपने रेहडी वालों को रेहडी लगाने का संसदीय कानून बनवाया। आपने महिला आरक्षण का बिल बनवाया। आपने आदिवासियों कों जंगल के अधिकार दिलाए। आपने डॉ. मनमोहन सिंह को वह आजादी दी कि जब वे अमेरिका से एटमी करार पर अड़े और लेफ्ट ने सत्ता से बाहर होने, सरकार गिराने की धमकी दी तब भी डॉ. मनमोहन सिंह को वह कूटनीति करने दी, जिससे भारत का वैश्विक अछूतपना खत्म हुआ। आपने पार्टी में मतभेदों के बावजूद, प्रदेश में कांग्रेस के खत्म होने के खतरे के बावजूद तेलंगाना के लोगों की इच्छा पर तेलंगाना बनने दिया। कैबिनेट में कांग्रेसी मंत्रियों, यूपीए के घटक दलों के मंत्रियों (प्रणब मुखर्जी, चिदंबरम आदि से रघुवंश प्रसाद से लेकर मारन तक) की आजादी, गरिमा, अधिकार (और आज?) बनवाएं रखे। कांग्रेसियों को राज्यों में जितवाया। नेताओं को मंत्री (ज्योतिरादित्य, हिमंता से जितिन आदि), मुख्यमंत्री बनाया। सौ फूल खिलने दिए। मीडिया की आजादी फूलने दी। संस्थाओं को और पॉवरफुल बनाया। जनता को आंदोलन करने दिया। मीडिया को आजादी दी। आडवाणी, जेटली से लेकर तमाम विपक्षी नेताओं के मान-सम्मान के साथ उनकी डॉ. मनमोहन सिंह, प्रणब, चिदबंरम आदि सभी से एक्सेस बनवाए रखी। संसद में विपक्ष ने कितने ही हंगामे किए। गाली-गलौज, प्रदर्शन किए लेकिन स्पीकर से ऐसे तानाशाही आदेश नहीं निकलवाए कि भाषण-बहस में फलां-फलां शब्द नहीं हो या परिसर में प्रदर्शन-धरना नहीं होगा। या पत्रकारों के लिए सेंट्रल हॉल बंद व संसद परिसर में सीमित एंट्री।

सोनियाजी, आपने नेहरू-गांधी की विरासत, उनके आइडिया ऑफ इंडिया की सेकुलर, प्रगतिशील, सेंटर टू लेफ्ट की वैचारिक ईमानदारी को भरे-पूरे लोकतांत्रिक मिजाज से अंगीकार किया। आपकी गरीब की, दलित, अल्पसंख्यकों की चिंता सच्ची थी। आपने भारत की राजनीति का वैश्विक मान बनवाया। पश्चिमी देशों के एटमी क्लब के लिए भारत स्वीकार्य हुआ। भारत की आर्थिकी उछलती-कूदती विश्व की उभरती अर्थव्यवस्था हो गई। इस सबके बीच आपकी गलती थी जो अहमद पटेल तथा वामपंथियों के बहकावे में आपने इस्लाम के वैश्विक उत्पात और हिंदुओं पर उसके असर को नहीं समझा। आंखों देखे गोधरा सत्य को भी लालू यादव एंड पार्टी, वामपंथियों तथा लुटियन दिल्ली के तब के लाल लंगूरों (जो अब भगवा लंगूरों-भोंपू संस्थाओं में परिवर्तित हैं) ने हिंदुओं के मत्थे मढ़ा। गुजरात के चुनाव में ‘मौत का सौदागर’ का जुमला बोल कर नरेंद्र मोदी को यह कहने का मौका दिया कि ‘भोपाल गैस त्रासदी में हजारों लोगों की जान लेने वाले को बचाने वाला कौन है, इसका जवाब मैडम सोनिया गांधी अब खुलकर क्यों नहीं दे रही हैं? मौत का सौदागर कौन है, इस सवाल का जवाब अब देश को सोनिया गांधी (जबकि घटना उनके वक्त की नहीं थी) से चाहिए’।… निर्दोषों का कत्ल करने वाले माओवादियों, आतंकवादियों को ईंट का जवाब पत्थर से देने, कसाब जैसे कातिल को महीने में फांसी देने जैसे जुमले बोलने का मोदी को मौका दे कर हिंदुओं के वशीकरण का उनका रोडमैप बनवा दिया। आपके भाषण लेखक जर्नादन द्विवेदी एंड पार्टी की वह महाबलंडर थी जिसके कराण महात्मा गांधी की वैष्णव जन वाली हिंदू कांग्रेस पार्टी हिंदुओं के दिमाग से उतरने लगी।

सोनियाजी, आपने विदेशी होते हुए भी उन हिंदू कांग्रेसियों पर विश्वास किया, जिनका विवेक और बुद्धि सत्ता की मनसबदारी के इतिहासजन्य डीएनए की है। पिछले आठ सालों में निश्चित ही आपको पश्चिमी मानस और हिंदू चरित्र का फर्क समझ आया होगा। पर पहले न आपने हिंदू रियलिटी समझी और न राहुल गांधी को समझाया। आप अहमद पटेल-येचुरी के आइडिया ऑफ इंडिया में इतिहास की हिंदू-मुस्लिम ग्रंथि से अनजान बनी रहीं। उसी लीक में राहुल गांधी अब कन्हैया एंड पार्टी के भरोसे दीर्घकालीन संघर्षों की खामोख्याली में हैं। अभी भी उन्हें समझ नहीं आया कि हिंदुओं में संघर्ष, खुद्दारी, स्वाभिमान, वैचारिक ईमानदारी, विचार-व्यवहार शुचिता तथा आजादी के डीएनए है ही नहीं। यदि होते तो क्या हजार साल गुलामी में रहते! क्या तब आठ वर्षों में मोदी लोकतंत्र में इतनी गुलामी बनवा लेते? सत्ता और पैसे से इतने हिंदू नेताओं और वोटों को क्या खरीद पाते?

सो, सोनियाजी, माफ करें। आपने भारत राष्ट्र की सेवा की। पीवी नरसिंह राव व डॉ. मनमोहन सिंह जैसे योग्य सज्जनों, सुधीजनों, सच्चे एनजीओ के मौके बनवाए। देश की आबादी के तीस प्रतिशत गरीबों को गरीबी रेखा से ऊपर उठवाया। कांग्रेसियों को सत्ता दिलाई। देश की वैश्विक प्रतिष्ठा बनवाई।…..लेकिन बावजूद इस सबके मैं सनातनी हिंदू असमर्थ हूं अपनी कौम की अहसानफरामोशी के आगे कुछ कर सकने में। समझाने में। इतिहास ने हम हिंदुओं को ऐसा ही बनाया है। हम हिंदुओं में सही-गलत के फैसले की न बुद्धि है और न साहस। तभी मैं आपकी मान-मर्यादा के चीरहरण में वैसी ही लाचारी और ग्लानि में हूं, जैसे दुर्योधन के वक्त में वेदव्यास रहे होंगे। मगर हां, मैं यह सनातनी विश्वास दिलाता हूं कि इतिहास दुर्योधनों के विनाश का होगा। भारत के महाभारत में बदलने का होगा।
(जारी)

(वरिष्ठ पत्रकार लेखक हरिशंकर व्यास का यह आलेख नया इंडिया में प्रकाशित है, जिसे साभार यहाँ लिया गया है)

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