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अवैध शराब से निपटने का नया फार्मूला, मध्यप्रदेश में नई दुकानें खोलने की तैयारी

मध्यप्रदेश में भाजपा के पुन: सत्ता में आने के बाद अवैध शराब से मौतों के तीन बड़े हादसे हो चुके हैं।

राकेश अचल

समस्याओं का निदान करने में सरकारों का कोई मुकाबला नहीं कर सकता। मध्यप्रदेश में हाल ही में अवैध शराब से हुई मौतों के बाद सरकार ने अवैध शराब कारोबारियों के खिलाफ कार्रवाई करने के बजाय प्रदेश में शराब की नयी दुकानें खोलने का फैसला किया है, और मुकाबले के लिए राजस्थान में प्रति लाख व्यक्ति शराब की दुकानों का आंकड़ा लिया है।

दरअसल अवैध शराब का कारोबार पुलिस, आबकारी विभाग और स्थानीय राजनेताओं की दुरभि संधि का नतीजा होता है, लेकिन सरकार इन तीनों के खिलाफ कोई भी कार्रवाई करने के लिए राजी नहीं है। फौरी तौर पर अफसरों के तबादले और निलंबन जरूर किया जा सकता है। नेताओं के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं हो पाती क्योंकि अधिकांश सत्तारूढ़ दल से जुड़े होते हैं। यानि सबका काम अवैध शराब से होने वाली आमदनी से चलता है।

मध्यप्रदेश में इससे पहले 2017 में तत्कालीन भाजापा सरकार ने तय किया था की अब प्रदेश में कोई भी नई शराब की दुकान नहीं खोली जाएगी, लेकिन अब दोबारा सत्ता में आने के बाद नई दुकाने खोलने के लिए तर्क दिया जा रहा है की प्रदेश में प्रति लाख की आबादी पर चूंकि शराब दुकानों की संख्या कम है, इसीलिए अवैध शराब का कारोबार शायद बढ़ रहा है। मप्र आबकारी विभाग का तर्क है की राजस्थान में प्रति लाख की आबादी पर 17 , महाराष्ट्र में 21 ,और उत्तर प्रदेश में 15 शराब की दुकाने हैं जबकि मध्य प्रदेश में प्रति लाख की आबादी पर मात्र 4 दुकाने हैं, इसलिए  ये संख्या बढ़ाई जाना चाहिए। अब इसे आप तर्क मानें या कुतर्क आपकी मर्जी।

प्रदेश में इस समय देशी शराब 65561239  प्रूफ लीटर शराब गटकी जाती है। अंग्रेजी शराब की खपत 29059317 प्रूफ लीटर की है। प्रदेश का आबकारी विभाग दिन रात काम करते हुए साल भर में अवैध शराब के 53  हजार से अधिक मामले बनाता है लेकिन अवैध शराब का कारोबार है की थमता ही नहीं। सबसे ज्यादा अवैध शराब के मामले देशी शराब के होते हैं। सरकारी कार्रवाई तब है जबकि आबकारी विभाग में 873 पद रिक्त हैं, जिसमें उपायुक्त, सहायक आबकारी अधिकारी, जिला आबकारी अधिकारी, सहायक जिला आबकारी अधिकारी, आबकारी उप निरीक्षक, मुख्य आरक्षक और आरक्षक के पद शामिल हैं।

आपको जानकार हैरानी होगी की सरकार हर साल नई आबकारी नीति बनाती है। भाजपा सरकार ने 2017 में जो आबकारी नीति बनाई थी यदि उसी पर अमल हो जाता तो शायद अवैध शराब पीकर मरने वालों की जान न जाती। आपको याद दिला दूं की भाजपा ने 2017 में आबकारी नीति में तय किया था कि शराब पीने का इलेक्ट्रानिक मीडिया पर होने वाला प्रचार बंद किया जाएगा, जन जागरण अभियान चलाया जाएगा, अगले चार साल तक कोई नई दुकान नहीं खोली जाएगी, नर्मदा किनारे से पांच किलोमीटर के दायरे में कोई दुकान नहीं खोली जाएगी, नेशनल हाइवे से 500 मीटर की दूरी पर खुली 1427 दुकानों को हटाया जाएगा, स्कूली पाठ्यक्रम में नशामुक्ति और शराब के दुष्प्रभाव से जुडी सामग्री पाठ्यक्रमों में जोड़ी जाएगी लेकिन कुछ नहीं किया गया।

आबकारी नीति में शराब पीकर गाड़ी चलाने पर सख्त कार्रवाई करने और शराब बंदी का अध्ययन करने के लिए गुजरात तथा बिहार अध्ययन दल भेजने का निश्चय किया था, लेकिन हुआ कुछ नहीं। नशामुक्त गांवों में सामाजिक न्याय विभाग की और से पुरस्कार योजना शुरू करने का फैसला भी धूल चाट रहा है। झुग्गियों और श्रमिक बस्तियों में नशे के खिलाफ वृत्तचित्र दिखने की योजना भी सरकार भूल गयी। नर्मदा किनारे बसे 11 जिलों की दुकानें भी आधी अधूरी बंद हुई। यानि सरकार की नियत ही नहीं है की प्रदेश में शराब का कारोबार सीमिति या बंद हो। सरकार तो आबकारी राजस्व से हर साल कम से कम दो हजार करोड़ अधिक का राजस्व वसूल करने का लक्ष्य तय करती है।

मध्यप्रदेश में भाजपा के पुन: सत्ता में आने के बाद अवैध शराब से मौतों के तीन बड़े हादसे हो चुके हैं, लेकिन एक भी मामले में पुलिस ने किसी भी मुख्य कारोबारी को नहीं पकड़ा। नाम के लिए माफिया के कुछ कर्मचारी जेल भेजे गए। जानकारों का कहना है कि सरकार जब तक अवैध शराब के कारोबार के खिलाफ सजा का प्रावधान नहीं बढ़ाएगी तब तक कुछ होने वाला नहीं है। अभी हालांकि अवैध शराब बनाना और बेचना गैर जमानती अपराध है, लेकिन इस मामले में सजा छह माह से लेकर दो साल तक की है और अधिकांश मामलों में आरोपियों को सजा हो नहीं पाती।

कहने का आशय ये है कि मध्यप्रदेश सरकार की कथनी और करनी में भारी अंतर है। सरकार एक तरफ अवैध शराब का कारोबार बंद करना चाहती है और दूसरी और शराब की दुकानों की संख्या बढ़ाने का फैसला लेने के लिए उत्सुक दिखाई देती है, जबकि दोनों काम परस्पर विरोधी है। ज्यादा दुकानें खोलने से सरकारी नियंत्रण वाली शराब की खपत तो बढ़ेगी लेकिन अवैध शराब की खपत होगी इसकी कोई गारंटी नहीं है, लेकिन सरकार तो सरकार होती है। सरकार के तर्क हो या कुतर्क उन्हें काटा नहीं जा सकता। वास्तविकता ये है कि अवैध शराब के मामले में सरकार माफिया के सामने असहाय है। शराब नीति बनाने में भी नौकरशाही और इस माफिया की ही प्रमुख भूमिका है।

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