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ठेंगे पर क़ानून: राजनीतिक तानाशाही का प्रतीक बनते बुलडोजर

पुलिस का इकबाल बुलंद करने में नाकाम सरकारों द्वारा बुलडोजर के इस्तेमाल पर वरिष्ठ पत्रकार राकेश अचल का आलेख।

सौ साल पहले बुलडोजर बनाने वाले किसान जेम्स कमिंग्स और ड्राफ्ट्समैन जे अर्ल मैकलियोड ने सोचा भी न होगा की खेती-किसानी के लिए ईजाद की गई उनकी मशीन कालान्तर में एक राजनीतिक हथियार बन जाएगी। वर्ष 1923 में बुलडोजर के लिए पहला डिज़ाइन बना। अमेरिका के मोरोविले, कान्सास में सिटी पार्क में बुलडोजर की एक प्रतिकृति प्रदर्शित की गई। 18 दिसंबर, 1923 को, कमिंग्स और मैकलियोड ने यूएस पेटेंट दायर किया जिसे बाद में 6 जनवरी, 1925 को “ट्रैक्टर के लिए अटैचमेंट” के लिए जारी किया गया था।

भारत में आज बुल्डोजर एक मुहावरा बन गया है। अब मंत्रिमंडल से लेकर मुख्यमंत्री तक बुलडोजर होने लगे हैं। कलियुग के ये बुलडोजर अब क़ानून को ठेंगा दिखते हुए आगे बढ़ रहे हैं। आप कह सकते हैं की बुलडोजर राजनीति को तानाशाही प्रवृत्ति की और धकेल रहे हैं, लेकिन किसी को इसकी फ़िक्र नहीं है। फ़िक्र छोड़िये अब बुलडोजर बनने की प्रतिस्पर्द्धाएं शुरू हो गयीं हैं लेकिन दुर्भाग्य ये है कि बुलडोजर को आज भी गरीब ही अपना शिकार दिखाई देता है। रसूखदार पर बुलडोजर केवल बदले की नीयत से चलता है। अब बुलडोजर को क़ानून और व्यवस्था के नाम पर अपराधियों में भय पैदा करने के लिए खुलकर इस्तेमाल किया जा रहा है।

आदि मान्यता है कि ‘ जड़ ‘ व्यक्ति हो या समुद्र विनय नहीं मानता,उसके लिए भय पैदा करना ही पड़ता है तभी उसके मन में क़ानून के प्रति प्रीति पैदा होती है। त्रेता में राम जी को भी लंका जाने के लिए समुद्र पर पुल बाँधना था,उन्होंने समुद्र से विनती की लेकिन उसने नहीं सुनी, तब उन्होंने समुद्र को भयाक्रांत करने के लिए समुद्र को सुखा देने का विकल्प चुना।

विनय न मानत जलधि,जड़ गए तीन दिन बिन बीत
बोले राम स्कोप तब भय बिन होय न प्रीति

संयोग देखिये की हिन्दुस्तान में रामभक्त सरकारें अब क़ानून को ठेंगा दिखाते हुए बुलडोजर के जरिये भय उतपन्न करने का अमानवीय और गैर कानूनी प्रयास कर रहीं हैं। पुलिस का इकबाल बुलंद करने में नाकाम सरकारों ने बुलडोजर का इस्तेमाल शुरू किया। उत्तर प्रदेश ने इस काम में बढ़त हासिल की और बाद में पड़ौसी मध्यप्रदेश से उसकी बुलडोजर के राजनीतिक इस्तेमाल को लेकर स्पर्द्धा शुरू हो गयी। पुलिस को पालतू बना चुकी सरकारें अब केवल राजनीतिक बदले के लिए ही नहीं बल्कि समाज में असामाजिक तत्वों के खिलाफ सख्त कार्रवाई के नाम पर झूठी वाह-वाही लूटने के लिए बुल्डोजर का निर्मम इस्तेमाल कर रहीं हैं।

राकेश अचल

मध्यप्रदेश के श्योपुर जिले में प्रशासन ने डकैती के फरार आरोपी छूटइ,बल्लू और शैली के खेतों में खड़ी गेंहूं की फसल पर बुलडोजर चला दिया। जिला प्रशासन को किसी अदालत ने ऐसा करने के लिए नहीं कहा था। खेत वर्षों से फरार आरोपियों के पास थे,लेकिन प्रशासन को ये अचानक अवैध दिखाई देने लगे। प्रशासन ने इन खेतों को सरकारी जमीन मान लिया। यहां तक भी ठीक है लेकिन इन खेतों में खड़ी फसल को उजाड़ने से पहले किसी ने ये नहीं सोचा की गेंहू की फसल का कोई दोष नहीं है। उसे काटा जा सकता था, खलिहानों तक पहुंचाया जा सकता था लेकिन नौकरशाहों को क्या पता की खेतों में फसल कितने खून-पसीने से पैदा होती है?

इंदौर में दो गुटों में हुए विवाद में एक युवक की मौत हो गई थी और 6 लोग घायल हुए थे। इसके बाद जिला प्रसाशन ने इस मामले के 7 आरोपियों के घर पर बुलडोजर चलाकर उनके मकान को जमींदोज करने की कार्रवाई की। एसडीएम ने कहा है कि मौके पर मुख्यमंत्री ने अपराधियों पर नकेल कसने के निर्देश दिए हैं। इसके बाद यह कार्रवाई की गई है। आरोपियों के घर के लोग रात में ही घर से फरार हो गए थे। फरार आरोपियों की गिरफ्तारी न होने की दशा में प्रशासन और पुलिस को अदालत से आरोपियों की सम्पत्ति जब्त करने के लिए लम्बी कार्रवाई करना पड़ती है लेकिन जब अदालतों से ऊपर मुख्यमंत्री के निर्देश हों तो किसी अदालती आदेश की क्या जरूरत?

प्रदेश के शहडोल और मंदसौर जिले में भी बलात्कार के आरोपियों की गिरफ्तारी के बाद उनके मकानों को अवैध बताकर बुलडोजर चला दिए गए। किसी अपराधी के प्रति किसी की कोई सहानुभूति नहीं हो सकती लेकिन क़ानून के राज में किसी अपराधी के खिलाफ क़ानून से हटकर भी नहीं किया जा सकता लेकिन जब सियासत के हाथ में बुलडोजर हो तो उसे भी कुम्भकर्ण की तरह कुछ दिखाई नहीं देता। मुख्यमंत्रियों को लगता है कि वे जनसेवक के बजाय बुलडोजर बनकर अपना रूतबा कायम रख सकते हैं।

उत्तर प्रदेश में दूसरी बार मुख्यमंत्री बने बाबा योगी आदित्यनाथ तो अपने आपको बुलडोजर मुख्यमंत्री कहलवाने में फक्र महसूस करते हैं। उन्होंने अपराधों के साथ ही अपने राजनीतिक विरोधियों के खिलाफ बुलडोजर का जमकर इस्तेमाल किया। मध्यप्रदेश में विकास के लिए बुलडोजर का इस्तेमाल पूर्व मुख्यमंत्री बाबूलाल गौर ने किया था। पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ ने अपने राजनीतिक विरोधियों द्वारा सरकारी जमीनों पर कब्जे कर बनाई गयी इमारतों को जमीदोज करने के लिए जमकर बुलडोजर चलाया और मात्र 18 माह में नए कीर्तिमान बना दिए। भीतरघात की वजह से सत्ता गंवा बैठे कमलनाथ की कार्रवाई का बदला सत्ता में बैशाखियाँ लगाकर वापस लौटे मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान भी अब पूरी दमखम से कर रहे हैं।

सरकारी सम्पत्तियों को रसूखदारों के कब्जे से मुक्त करने के लिए अदालती आदेशों पर बुलडोजर के इस्तेमाल से किसे इंकार हो सकता है? लेकिन दुर्भाग्य ये है कि सरकार का बुलडोजर अपनी एक आँख बंद कर चलाया जाता है। ग्वालियर समेत प्रदेश के सभी छोटे-बड़े शहरों में सरकारी जमीनों ही नहीं बल्कि नदी–नालों तक पर रसूखदारों के अतिक्रमण हैं लेकिन मजाल की बुलडोजर उनकी तरफ मुंह करके भी खड़ा हो सके। बुलडोजर को गरीब,गुरबे ही दिखाई देते हैं .जो न आह भर सकते हैं और न बुलडोजर का मुकाबला कर सकते हैं। उनके खेतों में खड़ी फसलें भी बुलडोजरों के आगे निरीह हैं।

अपराधों के मन में क़ानून का भय पैदा करने और प्रदेश को अपराधमुक्त बनाने की मुहिम के लिए क्या बुलडोजर ही एकमात्र विकल्प है? क्या अपराधियों की सम्पत्ति को कुर्क कर उनका आमजन के हित में इस्तेमाल नहीं किया जा सकता? क्या खेतों में खड़ी फसलों को बुलडोजर से रोंदना मानसिक दिवालियापन नहीं है? क्या ऐसे सनकी प्रशासन के खिलाफ कोई कार्रवाई कर सकता है? शायद नहीं क्योंकि खुद मुख्यमंत्री और उनकी सरकार अदलातें बनने की धृष्टता दिखने में लगीं हैं। प्रदेश में हर दिन लगभग 80 हत्याएं और 77 बलात्कार होने का आधिकारिक आंकड़ा एनसीआरबी का है। क्या सरकार प्रतिदिन हत्या और बलात्कार के सभी आरोपियों की सम्पत्ति पर बुलडोजर चलाती आयी है? ऐसा नहीं होता,ये केवल तमाशा है। क़ानून को ठेंगा दिखने का और झूठा रूतबा ग़ालिब करने का। जनता को सरकार की तानाशाही को सहने का रियाज कराया जा रहा है शायद।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)

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