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गांधी मर नहीं पा रहे और खलनायक से नायक में तब्दील नहीं हो पा रहे गोडसे

राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की पुण्यतिथि पर वरिष्ठ पत्रकार राकेश अचल का विशेष आलेख

आज पूरे पचहत्तर साल हो गए हैं माननीय मोहनदास करमचंद गांधी को हमारे बीच से गये, लेकिन वे आज भी हर साल मारे जाते हैं, किंतु गांधी में औरों से अलग कुछ है जो उन्हें मरने नहीं देता। गांधी का निर्वाण दिवस हो या जन्मदिन उन्हें बार बार अवरित कर देता है।

महात्मा गांधी आज के पंत प्रधान जैसे कथित अवतार नहीं थे। उन्होंने दुनिया में किसी ने ईश्वर के समकक्ष खड़ा नहीं किया , लेकिन महात्मा बनाया भी और माना भी। महात्मा होना आसान नहीं है किन्तु गांधी के लिए ये आसान इसलिए हुआ क्योंकि वे कभी चुनाव के चक्कर में नहीं पड़े। चुनाव के चक्कर में पड़ते तो मुमकिन है कि महात्मा कभी नहीं बनते। महात्मा बनने से उन्हें केवल एक बार गोली खाना पड़ी। अवतार बनने के बाद रोज दो-ढाई किलो गालियां खाना पड़ती हैं।

महात्मा गांधी के बारे में जितना लिखा जाए सकता था, उससे कहीं ज्यादा लिखा जा चुका है। इसीलिए उनके बारे में नया लिखा नहीं जा सकता।वे आज होते तो 154 साल के होते और कलियुग में व्यावहारिक रूप से कोई जीवित नहीं रहता। हां यदि कोई विचार है ,दर्शन है या जीवनशैली है तो वो सदियों तक जीवित रह सकता है। इस लिहाज से गांधी जिंदा हैं, उन्हें नाथूराम गोडसे नहीं मार पाए। मुमकिन है कि गोडसे की आत्मा आज भी अपनी इस नाकामी के लिए बेचैन होगी।

राकेश अचल

भारत महान देश है इसलिए यहां व्यक्ति के साथ ही विचारों की हत्या का अनुष्ठान भी किया जाता है। हत्यारों का महिमा मंडन बहादुरी का काम समझा जाता है। बीते 75 साल में ये घृणित अनुष्ठान चल रहा है। पहले चोरी छिपे कुछ खास शाखाओं में चलता था किन्तु विगत आठ वर्षों से ये काम खुल्लमखुल्ला हो रहा है। लेकिन कटु सत्य है कि गांधी मर नहीं पा रहे और गोडसे खलनायक से नायक में तब्दील नहीं हो पा रहे।

बीते आठ साल का इतिहास मुगलों, अंग्रेजों और कांग्रेस के सैकड़ों साल के इतिहास को चुनौती दे रहा है। बाग-बागीचे, भक्तिकाल की पुस्तकें,शहर, स्टेशन, स्टेडियम तक इस नए इतिहास लेखन की भेंट चढ़ चुके हैं।लोग गांधी को अपना पुरखा मानने के लिए राजी नहीं हैं और देश गोडसे को नया गॉड, गॉडफादर मानने को राजी नहीं है। देश के माफिक गांधी का दर्शन कल भी था,आज भी है,कल भी रहेगा। गांधीवाद किसी मंदिर या मस्जिद की तरह नहीं है जिसे कि बनाया अथवा बिगाड़ा या सके।

गांधी को पढ़ते और उनके बताए रास्ते पर चलते हुए 75 साल तो हो गये। हमने इस बीच समाजवाद भी देखा और साम्यवाद भी, किंतु गांधीवाद ही सबके ऊपर भारी है। दुनिया के तमाम छोटे -बड़े देशों में गांधी की आदमकद और आवक्ष प्रतिमाएं स्थापित हुई लेकिन गोडसे टापते रह गए। कांग्रेस भी गांधी की आंधी को रोक नहीं सकी।खुद कांग्रेस जमीन पर है किन्तु गांधी आसमान पर ही हैं।

अगर कोई समझना चाहे तो गांधी और गोडसे को समझना बहुत आसान है। शहीद और हत्यारे के नाम की वर्तनी ‘ग’ एक है किन्तु दोनों में भूमि और अंबर जितना फासला है। वर्तनी एक होने से कुछ होता नहीं।’ग’ से गुलाब भी बनता है और ‘ग’से गाजर घास भी। ‘क’ से कोयल भी होता है और कौआ भी। एक सुहावन तथा पावन है तो दूसरा अपावन। हत्यारे गोडसे के साथ राम थे और गांधी के साथ मोहन । लेकिन गांधी ने अंतिम समय में राम को स्मरण किया और नाथू भूल गए।

गुलाब और गाजर घास में,कोयल और कौए में, गांधी तथा गोडसे में जो द्वंद्व कल था, आज भी जारी है। इस द्वंद्व में पलड़ा हर बार गुलाब,कोयल और गांधी ही बाजी मारते आ रहे हैं। गोडसे की स्थापना की हर कोशिश नाकाम हो रही है। इसे नाकाम होना ही है क्योंकि गोडसे मनुष्यता के खिलाफ हैं और गांधी मनुष्यता के साथ।

महात्मा गांधी की पुण्यतिथि कोई मनाए या न मनाएं, श्रद्धांजलि दे या न दे,राजघाट जाए या न जाए इससे गांधी और उनके दर्शन पर कोई असर होने वाला नहीं है। उलटे गांधीवाद गोडसेवाद का सफाया करने में काम आ रहा है। गांधी को खलनायक मानने वाली बिरादरी राम-राम कर सत्ता तक पहुंच गई है। गांधी को खलनायक कहकर वह अपनी ही उपलब्धि पर पानी फेर रही है।इस बिरादरी का मन और बुद्धि जब तक गोडसे के कलुष से मुक्त नहीं होती तब तक उसका कल्याण होना असंभव है।

मैंने आज गांधी के करतबों का गुणगान नहीं किया, क्योंकि इसकी जरूरत नहीं है। पूरी दुनिया गांधी की उपलब्धियों के बारे में जानती है। मैंने सर नाथूराम गोडसे के खिलाफ भी एक तल्ख शब्द नहीं लिखा, क्योंकि मुझे ये सिखाया ही नहीं गया। गांधी किसी को घृणा करना सिखाता ही नहीं है। गांधी ने जो सिखाया था उस रास्ते पर चलकर हम आज भी बीते कुछ सालों में हुए नुकसान की क्षतिपूर्ति हो सकती है। गांधी ने भारत को भारत बनाने का सपना देखा था, विश्व गुरु बनने का ख्वाब उनका नहीं था, फिर भी वे विश्व गुरु बने हुए हैं। बिना डंका बजाए। गांधी को विश्व गुरु बनने के लिए न दूसरे गुजरातियों की तरह गाल बजाने पड़े और न ताली -थाली बजवाना पड़ी। सरकार का सहारा भी नहीं लेना पड़ा। सब अपने आप हुआ। रिवायत है इसलिए पुण्य तिथि पर महात्मा गांधी को विनम्र श्रद्धांजलि। वैसे वे हमेशा दिल में उपस्थित रहते हैं। आप गोडसेवाद को मारकर भी गांधी को सच्ची श्रद्धांजलि दे सकते हैं।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)

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