PM मोदी के नए लौह पुरुष, अब सिंधिया ही BJP का भविष्य?
ज्योतिरादित्य सिंधिया को इस्पात मंत्रालय के अतिरिक्त प्रभार के संदर्भ पर वरिष्ठ पत्रकार राकेश अचल का आलेख
ग्वालियर के लोग खुश हैं कि केंद्रीय उड्डयन मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया को इस्पात मंत्रालय का अतिरिक्त प्रभार मिल गया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का सिंधिया के प्रति विश्वास का ये नया संकेत है। स्थानीय निकाय चुनावों में सिंधिया की हुई किरकिरी की भरपाई इस नए घटनाक्रम से हुई है। अब सिंधिया मोदी सरकार के नए लौह पुरुष होंगे। पहले ये विभाग ग्वालियर के ही नरेंद्र सिंह तोमर के पास रह चुका है।
भाजपा के लिए सिंधिया महत्वपूर्ण हैं, ये सब जानते हैं। सिंधिया की वजह से ही मध्यप्रदेश में सत्ताच्युत हुई भाजपा दोबारा बिना चुनाव लड़े सत्ता में वापस लौटी है। सिंधिया ने इसके लिए अपने स्वर्गीय पिता और अपनी खुद की दो दशक की कांग्रेस की विरासत को दांव पर लगाकर प्रदेश में कांग्रेस की सरकार गिराई थी। इसके लिए उन्हें विभीषण और गद्दार जैसे अलंकरणों से भी नवाजा गया लेकिन सिंधिया ने पीछे मुड़कर नहीं देखा। पुरस्कार स्वरूप उन्हें भाजपा ने पहले राज्य सभा की सदस्य्ता और बाद में केंद्रीय मंत्रिमंडल में मंत्री पद से नवाजा। भाजपा किसी का उधार वैसे भी नहीं रखती।
बीते दो साल में सिंधिया ने आपने आपको समर्पित भाजपाई बनाने और प्रमाणित करने का कोई अवसर हाथ से नहीं जाने दिया। वे भाजपा के आम कार्यकर्ता की तरह अपने आपको ढालने की कोशिश में लगे रहे और इसमें उन्हें आंशिक कामयाबी भी मिली,किन्तु उनकी बढ़ती साख की वजह से भाजपा में उनके प्रति प्रतिसपर्धा भी बढ़ी। पिछले महीने स्थानीय निकाय के चुनावों में सिंधिया अपने गृह नगर ग्वालियर में अपनी पसंद का प्रत्याशी बनवाने में नाकाम रहे। इस मामले में अंतत: केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर की चली लेकिन सिंधिया ने अपमान का ये घूँट ‘ कोल्ड काफी ‘ की तरह चुपचाप पी लिया और स्थानीय निकाय चुनाव में एक पैर खड़े होकर चुनाव प्रचार में हिस्सा लिया ,लेकिन अब वे चुनाव परिणामों की ओर से बेफिक्र हैं।
ज्योतिरादित्य सिंधिया को मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने शुरू में खुला साथ दिया। हर निर्णय में सिंधिया की पूछ-परख की लेकिन अब उनका रुख भी भीतर से बदलता दिखाई दे रहा है। शिवराज सिंह चौहान अब नरेंद्र सिंह तोमर के साथ खड़े दिखाई दे रहे हैं। इससे पहले कि ये सार और दरार और बढ़ती प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सिंधिया को इस्पात मंत्रालय का अतिरिक्त भार देकर एक और जहाँ सिंधिया का कद बढ़ा दिया दूसरी और सिंधिया के जख्मों पर मरहम भी लगा दिया। अब सिंधिया भी खुश हैं और उनके कार्यकर्ता भी खुश हैं। भाजपा के लिए सिंधिया की अनदेखी करना आसान नहीं है।
पार्टी में अपनी जगह बनाये रखने के लिए सिंधिया अपनी और से मुख्यमंत्री शिवराज सिंह के साथ ही भाजपा के प्रदेशाध्यक्ष वीडी शर्मा के साथ भी तालमेल बैठाये रखने की कोशिश कर चुके हैं, लेकिन दोनों ने ही अनेक अवसरों पर सिंधिया से किनारा कर लिया। सिंधिया को बड़े प्रशासनिक निर्णयों में शामिल नहीं किया जा रहा है बल्कि उनके समर्थक नौकरशाहों को किनारे लगाया जा रहा है। यहां तक कि स्थानीय जिला प्रशासन में भी उनके लोग नहीं हैं। सब दूर केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर की पसंद कि लोग बैठे हैं। इसके बावजूद सिंधिया ने टकराव की मुद्रा अख्तियार नहीं की है। उन्हें अहसास है कि भाजपा में वे अभी भी नवागंतुक नेता हैं।
आपको याद होगा कि जीवन में पहला लोकसभा चुनाव हार चुके सिंधिया का प्रभा मंडल ग्वालियर चंबल संभाग के अलावा मालवा अंचल के अनेक जिलों तक है। पुरानी सिंधिया रियासत के तमाम इलाकों में अभी भी सिंधिया का आकर्षण बरकरार है। भाजपा को भी इसका अनुमान है फिर भी भाजपा तो भाजपा है। सिंधिया को अपना अंतरंग मानने में हिचकती रहती है।
बहरहाल इस्पात मंत्रालय मिलने के बाद सिंधिया के हाथ में कुछ वजनदार काम आया है। उड्डयन मंत्रालय में तो करने के लिए बहुत कुछ नहीं था। बावजूद इसके सिंधिया ने महत्वहीन हो चुके इस उड्डयन मंत्रालय को भी चर्चा में ला दिया। बीते कुछ ही महीनों में घरेलू उड़ानों की संख्या में इजाफा करने में सिंधिया की अहम भूमिका रही। अब बारी इस्पात मंत्रालय की है। इस मंत्रालय ने अतीत में नरेंद्र सिंह तोमर को इस्पाती नेता बनाया है। इस मंत्रालय के जरिये उन्होंने बहुतों को उपकृत किया, कुछ लोहा उनके ऊपर भी चढ़ा। वे हर तरह से मजबूत हुए लेकिन जब इस्पात पर जंग लगने लगी तो ये विभाग उनसे वापस ले लिये गया। खैर वो एक अलग कहानी है।
आने वाले दिनों में लगातार चुनाव होने हैं। अनेक राज्यों में विधानसभा के चुनाव हैं फिर अगले साल मध्य्प्रदेश में भी विधानसभा के चुनाव हैं। इसकी तैयारी अभी से शुरू हो चुकी है। इन चुनावों के मद्दे नजर सिंधिया का इस्पाती होना आवश्यक था। सिंधिया यदि कहीं से भी कमजोर होंगे तो उसका लाभ कम से कम मध्यप्रदेश में तो कांग्रेस को मिलेगा। संयोग से अभी कांग्रेस सिंधिया का तोड़ नहीं खोज पायी है किन्तु सबने मिलकर उनके गृह क्षेत्र में कांग्रेस की स्थिति को मजबूत तो बनाया है। विधानसभा उपचुनाव में कांग्रेस सिंधिया के दो समर्थकों को पराजित करने का सुख भोग चुकी है,स्थानीय निकाय के चुनावों में भी कांग्रेस को सिंधिया के इलाके में अच्छी सफलता की उम्मीद है।
भाजपा के लिए सिंधिया एकनाथ शिंदे की तरह महत्वपूर्ण हैं हालाँकि उन्हें शिंदे की तरह तत्काल मुख्यमंत्री नहीं बनाया गया था किन्तु आने वाले डेढ़ साल में मुमकिन है कि भाजपा को मध्य प्रदेश में सिंधिया के नाम पर ही दांव लगना पड़े क्योंकि शिवराज सिंह की पारी न सिर्फ पूरी हो चुकी है बल्कि कुछ ज्यादा ही लम्बी हो चुकी है। भाजपा वैसे तो कोई भी तिलिस्म कर सकती है, किसी भी चेहरे को आगे कर विधानसभा का चुनाव लड़ सकती है किन्तु ज्यादा फायदा उसे सिंधिया पर दांव लगाने से होगा। अब जो होगा सो होगा,फिलहाल सिंधिया के राजनीतिक कट आउट पर चढ़ाई गयी इस्पात की नयी परत उन्हें मजबूत अवश्य बनाएगी।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)