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देव दुर्लभ कार्यकर्ताओं पर अविश्वास, हरियाणा के रिसार्ट में BJP के पार्षद

ग्वालियर सभापति के चुनाव से पहले BJP की रिसार्ट पॉलिटिक्स पर वरिष्ठ पत्रकार राकेश अचल का आलेख

मामला एकदम स्थानीय है, लेकिन सत्तारूढ़ दल के आंतरिक भय को रेखांकित करता है। भाजपा के गढ़ माने जाने वाले ग्वालियर शहर में स्थानीय निकाय के चुनाव में पराजय का सामना कर चुकी भाजपा अपने नव निर्वाचित कार्यकर्ताओं को बंधक बनाकर हरियाणा के एक रिसार्ट में रखे हुए है। महापौर का पद गंवाने के बाद सभापति के चुनाव में भी कहीं हार न हो जाये इसलिए भाजपा अपने पार्षदों को ग्वालियर से ले उड़ी। भाजपा को दरअसल अपने पार्षदों के बिकने का खतरा है।

ग्वालियर अतीत में जनसंघ और भाजपा का गढ़ रहा है। ग्वालियर के जयविलास पैलेस और रानी महल से इन संगठनों को हर तरह का संरक्षण मिलता रहा है। यही वजह है की ग्वालियर में बीते 57 साल से स्थानीय निकाय पर भाजपा का कब्जा बना हुआ था। लेकिन इस बार भाजपा का ये अभेद्य दुर्ग ध्वस्त हो गया। विधायकों की खरीद-फरोख्त में सिद्धहस्त भाजपा को ग्वालियर में अपने नव निर्वाचित पार्षदों के बिकने का खतरा है। कांग्रेस के विधायक सतीश सिकरवार अपनी नव निर्वाचित महापौर पत्नी डॉ शोभा सिकरवार की राह आसान बनाने के लिए सभापति का चुनाव भी जीतना चाहते हैं और इसके लिए उन्होंने भाजपा पार्षद दल में सेंध लगा दी है।

ग्वालियर की 66 सदस्यीय नगर निगम में ग्वालियर नगर निगम चुनाव में महापौर भले ही कांग्रेस की प्रत्याशी बनी हो, लेकिन भाजपा के पास सबसे ज्यादा 34 पार्षद हैं। कांग्रेस के पास 25 और एक पार्षद बसपा के हैं। इसके अलावा 6 निर्दलीय पार्षद भी हैं। एक निर्दलीय हाल ही में कांग्रेस में शामिल हो गया है। इसी वजह से सभापति को लेकर कांग्रेस के दावे से घबराई भाजपा ने अपने पार्षदों को एक वीडियो कोच में बैठकर ग्वालियर से हरियाणा भेज दिया है। खबर है कि दिल्ली में भाजपा प्रदेश अध्यक्ष वीडी शर्मा, केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया, केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर और ग्वालियर सांसद विवेक शेजवलकर भाजपा पार्षद दल की बैठक लेंगे। इसी दौरान पार्षद दल के नेता और सभापति के चुनाव के लिए नाम का भी चयन किया जाएगा।

राकेश अचल

देश की राजनीति से कांग्रेस को नेस्तनाबूद करने का दावा करने वाली भाजपा कि लिए ग्वालियर में पहली बार मुश्किलें खड़ी हुईं हैं। ग्वालियर में केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर और ज्योतिरादित्य सिंधिया कि अलावा भाजपा कि प्रदेशाध्यक्ष की मौजूदगी कि बावजूद महापौर पद पर पराजय ने भाजपा पार्षदों निराश कर दिया है। पार्षद तो अपने बूते जीत गए लेकिन महापौर प्रत्याशी सुमन शर्मा नेताओं कि भरोसे थीं ,वे चुनाव हार गयीं। अब सत्ता में अपना हिस्सा पाने कि लिए भाजपा कि पार्षद बिकने को तैयार हैं। भाजपा निर्दलीय पार्षदों के भरोसे सभापति का पद हथियाना चाहती है किन्तु कांग्रेस ने भी निर्दलीयों पर दांव लगा रखा है।

भाजपा कि लिए अब सभापति पद प्रतिष्ठा का प्रश्न है क्योंकि यदि निगम में भाजपा का सभापति नहीं चुना जाता तो भाजपा कि लिए कांग्रेस की महापौर को काबू में रख पाना कठिन हो जाएगा। सभापति पद पर कब्जा करने कि लिए कांग्रेस विधायक डॉ सतीश सिंह सिकरवार के साथ उनकी पूरी पार्टी एकजुट है। खबर है कि कांग्रेस ने निर्दलीय पार्षदों को मुंह मांगी कीमत देने का वायदा किया है। कांग्रेस ने भाजपा कि ही कुछ पार्षदों को समर्थन देने कि एवज में सभापति देने का प्रस्ताव रखा है। पार्षददल में टूट-फूट की आशंका से घिरी भाजपा को हारकर सभी को ग्वालियर से हटाना पड़ा। नवनिर्वाचित पार्षदों में तमाम महिला पार्षद भी हैं। पार्टी को इस वजह से पार्षद पतियों को भी साथ रखना पड़ रहा है।

आपको याद होगा कीसत्ता कि जोड़तोड़ कि लिए रिसोर्ट पालटिक्स पिछले आठ साल से देश में चल रही है लेकिन ये तरीका केवल विधायकों पर ही इस्तेमाल किया जाता है। पहली बार स्थानीय निकाय चुनावों कि साथ ही पंचायत अध्यक्ष कि चुनाव में इस तरीके का इस्तेमाल किया गया है। खासतौर पर मध्यप्रदेश में। जाहिर है कि जनादेश खरीदने कि बावजूद प्रदेश में भाजपा की जड़ें खोखली हो रही हैं,यदि ऐसा न होता तो भाजपा को पार्षदों तक को एकजुट रखने कि लिए रिसॉर्ट पालटिक्स का सहारा न लेना पड़ता।

ग्वालियर में कोई चार दशक पहले जब महापौर का चुनाव पार्षद करते थे तब भी इसी तरह की विषम स्थिति का सामना करना पड़ा था। उस समय विपक्ष ने एक पत्रकार को महापौर का प्रत्याशी बनाकर मैदान में उतार दिया था। भाजपा के 9 पार्षद असंतुष्ट थे। उन्हें क्रास वोटिंग से रोकने कि लिए पार्टी कार्यालय में बंधक बनाकर रखना पड़ा था। बहरहाल भाजपा की जबरदस्त किरकिरी हो रही है इस बार। ग्वालियर से अपने परिवार का ढाई शताब्दी का रिश्ता बताने वाले केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया स्थानीय निकाय चुनाव में अपना जादू दिखने में नाकाम रहे। केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर की बंद मुठ्ठी भी खुल गयी। वे ग्वालियर कि साथ ही अपने गृह जिले मुरैना में भी अपनी पार्टी कि महापौर प्रत्याशी को नहीं जीता पाए।

दो साल पहले कांग्रेस की सरकार गिराने के बाद हुए उप चुनाव में भी भाजपा ग्वालियर जिले में दो सीटें खो चुकी है। डबरा और ग्वालियर पूर्व सीट कांग्रेस ने भाजपा से छीन ली थी। भाजपा को मजबूत बनाने कि लिए प्रदेश मंत्रिमंडल में सिंधिया कि दो समर्थक ग्वालियर जिले से लिए गए। दो को निगम-मंडलों में नामजद किया गया,लेकिन कोई नतीजा नहीं निकला। कांग्रेस लगातार मजबूत होती जा रही है। भाजपा की वर्तमान दशा को देखकर पार्टी का नेतृत्व चिंतित है। इसी चिंता कि चलते रिसार्ट पालटिक्स अब स्थानीय स्तर पर इस्तेमाल की जा रही है। 5 अगस्त को इस रिसार्ट पॉलिटिक्स के नतीजे सामने आ जायेंगे। तब तक पार्षद अघोषित तौर पर नजरबंद हैं और रहेंगे। पार्टी के देव् दुर्लभ कार्यकर्ताओं के साथ ऐसा व्यवहार देखकर पुराने कार्यकर्ता भी दुखी हैं ,लेकिन कुछ बोल नहीं सकते .पार्टी अनुशासन का मामला जो है।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)

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