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धन तेरस: विधान बदलिए, यम को नहीं ‘ मंहगाई डायन’ को पूजिये

पत्रकार राकेश अचल का पांच दिवसीय दीपोत्स्व और मंहगाई के सन्दर्भ में आलेख

भारत में धन तेरस पर भगवान धन्वंतरि के साथ ही लक्ष्मी,,कुबेर और यम की पूजा करने का विधान है,लेकिन अब इस विधान के बदलने का समय आ गया है। आप इन सबको पूजकर भी निश्चिन्त नहीं हो सकते जब तक की आप महंगाई डायन की पूजा नहीं कर लेते। मंहगाई डायन अमूर्त है किन्तु समाज के हर व्यक्ति को प्रभावित कर रही है। महंगाई डायन को खुश किये बिना आप न निरोगी रह सकते हैं और न समृद्ध ,मृत्यु का भी तो आपको सदा बना ही रहेगा।

कार्तिक महीने में गुलाबी सर्दी की दस्तक सुनाई देती है लेकिन लोगों को इस गुलाबी सर्दी से फुरफुरी आने के बजाय महंगाई डायन के दस्तक देने से झुरझुरी महसूस हो रही है। खुश केवल वे हैं जिनके लिए महंगाई आराध्य पहले से है। जो महंगाई का प्रकोप बढ़ने से समृद्ध होते हैं। ऐसे लोगों की संख्या उँगलियों पर गिने जाने लायक है। कलियुग में तो महंगाई के बढ़ने से खुश होने वाले लोग तो खुशी के मारे पागल हुए जा रहे हैं।

धनतेरस पर पंडित प्रदोषकाल में पूजन का महत्व बताते हैं किन्तु मेरा कहना है की यदि आप मंहगाई दें की पूजा करने को राजी हैं तो किसी भी काल में उसकी पूजा कर सकते हैं,क्योंकि मंहगाई के आने,जाने और बढ़ने का कोई काल नियत नहीं है। मंहगाई पौ फटने के अलावा आधीरात को भी प्रकट हो सकती है। मंहगाई किसी भी रूप में प्रकट हो तेल आम आदमी का ही निकलता है। इसीलिए मै कहता हूँ की मंहगाई डायन को आम आदमी की देवी घोषित कर इसकी पूजा के लिए कोई दिन नियत कर शासकीय क्या राष्ट्रीय अवकाश घोषित कर देना चाहिए।

महंगाई दरअसल सभी देवी देवताओं से ऊपर निकल चुकी है.कोई इसके सामने टिक नहीं पा रहा। विद्वानों का मत है कि आप मन समझने के लिए भगवान धन्वंतरि,माँ लक्ष्मी, कुबेर और यम की पूजा करें किन्तु मंहगाई डायन की पूजा भी अनिवार्य रूप से करें क्योंकि कोई भी सरकार मंहगाई डायन को खुश नहीं कर पा रही है। किसी में इतना बूता नहीं है कि वो मंहगाई डायन के मुंह में लगाम डालकर उसे रोक सके। ये काम केवल आम आदमी कर सकता है। मंहगाई डायन को बढ़ने का अवसर देने वाली सरकारों को बदलकर।

धनतेरस के दिन से पांच दिवसीय दीपोत्स्व आरम्भ होता है,लेकिन मै इसे कलिकाल में आम आदमी के लिए ‘ दीवाला उत्सव ‘ मानता हूँ,क्योंकि इसी पांच दिन में आम आदमी का दीवाला निकलता है। मंहगाई डायन विविध रूप धरकर आम आदमी के मन में लालच और महत्वाकांक्षाएं पैदा करती है और उन्हें पूरा करने के लिए आम आदमी की जेब कतरती है। उसे ईएमआई के जाल में उलझकर अगले पांच-सात साल के लिए कर्जदार बना देती है। इन पांच दिनों में मंहगाई डायन को आप तांडव करते हुए देख सकते हैं, किन्तु इसे पहचान नहीं सकते। आप इसका कुछ बगाड़ भी नहीं सकते।

मंहगाई डायन दरअसल शक्ति के नौ रूपों के पूजन से खिन्न आत्मा है। जो लोकतंत्र में अपनी पूजा करने पर आमादा है। मंहगाई भले ही सर्वत्र व्याप्त है किन्तु उसकी किसी ने अब तक प्राण-प्रतिष्ठा नहीं की है। यही वजह है कि जब चाहे तब ये डायन रौद्र रूप धारण कर लेती है। मंहगाई डायन को हमारी वजीरे खजाना श्रीमती निर्मला सीतारमण भी खुश नहीं कर सकतीं, काबू में करना तो दूर की बात है। मंहगाई डायन को कोई चौकीदार या 56 इंच वाला महानायक भी नियंत्रित नहीं कर सकता।

राकेश अचल

भाग्य की बिडम्वना देखिये की मंहगाई डायन के बढ़ने के पक्ष में सरकार के पास लम्बे -लम्बे तर्क हैं किन्तु विपक्ष में किसी के पास कोई तर्क नहीं है। आप ज्यादा से ज्यादा इसे सरकार की नाकामी कह सकते हैं। सरकार तो अपने सर पर नाकामियों का बोझ लेकर चलने के लिए ही बनती है। यदि कोई सरकार कामयाब हो जाये तो फिर बात ही क्या है? सरकारें नाकाम होतीं हैं तभी उन्हें बदलने का बहाना मिलता है अन्यथा चुनाव करने का फायदा ही क्या है? मंहगाई आपका चूल्हा बुझा सकती है,आपके स्कूटर,कार की गति थाम सकती है। आपके खानपान,रहन-सहन को बदल सकती है .यमराज से जूझने की ताकत क्षीण कर सकती है।

दौरे हालात में तो मंहगाई ने जमानत करना भी मंहगा कर दिया है। बेचारे आर्यन खान को ही ले लीजिये,उसके पास क्या नहीं था?,लेकिन मंहगाई डायन की कृपा नहीं थी सो न चाहते हुए भी उसे जेल में रहना पड़ा। आर्यन की दीवाली उसकी जमानत के बाद ही मनाई जा सकी। मंहगाई डायन की कृपा से देश के उद्योगपतियों की चांदी कट रही है। आप भी यदि चांदी काटना चाहते हैं तो मंहगाई डायन की पूजा कीजिये। मंहगाई तब तक खुश नहीं होती जब तक की जनता उसके खिलाफ सड़कों पर न उतरे। मंहगाई डायन को लग ही नहीं रहा की लोग उसके कारण दुखी है। न कोई धरना,न प्रदर्शन। सब चुपचाप उसका कोप सह रहे हैं। मंहगाई डायन दुखी है कि देश में कोई उसकी उपस्थिति पार ध्यान ही नहीं दे रहा।

कोई माने या न माने पिछले सात साल में भारतीय जनता की सहनशक्ति बहुत बढ़ी है। सहनशक्ति केवल भक्तिभाव से बढ़ती है। मुझे तो लग रहा कि सरकार जनता की सहनशक्ति बढाकर मंहगाई डायन को ठेंगा दिखाना चाहती है। सरकार मंहगाई डायन को रोकने के बजाय जनता की सहनशक्ति बढाकर स्थिति से निबटना चाहती है। सहनशील जनता हर स्थिति का मुकाबला करने में सक्ष्म होती है। जनता ने कोरोनाकाल में अभूतपूर्व सहनशीलता का परिचय दिया। बिना दवाओं और आक्सीजन के भी कोरोना से जूझती रही। आज भी जूझ रही है। ऐसी जुझारू जनता देखकर अमरीका और चीन तक हमसे ईर्ष्या करने लगे हैं। अब कोई इन विदेशियों को कौन समझाए कि सहनशीलता हमारे डीएनए में है।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)

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