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नेताओं के पुतलों पर क्यों जान छिड़क रही ‘हुक्म की गुलाम’ पुलिस?

पत्रकार राकेश अचल का ग्वालियर की घटना के संदर्भ में आलेख। एक नेता का पुतला जलने से बचाने के फेर में झुलसा सब इंस्पेक्टर।

पुतला जलाना लोकतंत्र में विरोध का एक चिर-परिचित तरीका है। इस देश में प्रधानमंत्री से लेकर मुहल्ले के गुंडे तक के पुतले जलाये जाते हैं लेकिन कभी कोई इन पुतलों के पीछे अपनी जान जोखिम में नहीं डालता था,लेकिन पिछले कुछ दिनों से पुलिस को नेताओं के पुतले जलने से बचाने के लिए अपनी जान तक छिड़कना पड़ रही है। सरकार किसी नेता का पुतला क्यों नहीं जलने देना चाहती ये समझ से परे है।

ग्वालियर में एक नेता का पुतला जलने से बचाने के फेर में एक पुलिस सब इंस्पेक्टर की जान पर बन आयी है। पुलिस सब इंस्पेक्टर को इलाज के लिए गंभीर अवस्था में दिल्ली भेजा गया है। पिछले दिनों ग्वालियर की हजीरा स्थित सब्जी मंडी को इंटक मैदान में स्थानांतरित करने के विरोध में स्थानीय सब्जी कारोबारियों के साथ कांग्रेस पिछले एक पखवाड़े से आंदोलन छेड़े हुए थी। जैसे ही इस सब्जी मंडी को जमींदोज किया गया वैसे ही कांग्रेस ने अपने आंदोलन को और तेज कर दिया।

इसी दौरानजब फूलबाग चौराहे पर क्षेत्रीय विधायक और प्रदेश के ऊर्जा मंत्री प्रद्युम्न सिंह तोमर का पुतला दहन किया जा रहा था उसे रोकते समय इंदरगंज थाने के सब इंस्पेक्टर दीपक गौतम पुतला छीनते समय आग से झुलस गए। इस हादसे के बाद पुलिस के हाथों के तोते उड़ चुके हैं। पुलिस ने आनन-फानन में इस मामले में एनएसयूआई के जिला अध्यक्ष शिवराज यादव आकाश तोमर सहित पांच लोगों को गिरफ्तार किया गया है जबकि सचिन भदौरिया और उसका 1 साथी फरार है। इनके खिलाफ रासुका की कार्रवाई भी की जा रही है। आंदोलन का नेतृत्व कर रहे कांग्रेस के नेता सुनील शर्मा के क्रेशर को सील किया जा चुका है,हालांकि क्रेशर का इस मामले में कोई कुसूर नहीं है।

राकेश अचल

मध्यप्रदेश की पुलिस को ये नहीं पता कि देश की दंड संहिता में किसी का पुतला जलाना अपराध नहीं है। बावजूद इसके पुलिस इसे अपराध समझती है और मौके पर जाकर इस तरह के पुतला दहन को होने से रोकने के लिए अपनी जान की बाजी लगा देती है। जाहिर है कि पुलिस ऐसा सरकार के निर्देश पर करती है.लेकिन क्या ऐसे निर्देश कानूनी रूप से वैध हैं या फिर ये सब केवल नेताओं का अहं शांत करने के लिए दिए जाते हैं ?

इलाहबाद उच्च न्यायायलय एक मामले में साफ़ कर चुका है कि पुतला दहन कोई अपराध नहीं है लेकिन पुलिस को इसके बारे में शायद पता नहीं है या फिर पुलिस अदालत के फैसले को मानने के लिए राजी नहीं है। भारत में पुतला दहन का इतिहास पुराना है। यहां हजारों साल से रावण, कुम्भकर्ण और मेघनाद कि पुतले जलाये जाते हैं। कालांतर में असहमत जनता नेताओं कि पुतले जलाती है,लेकिन आजादी कि 75 सालों में पुतला दहन को न तो अपराध माना गया है और न ही इसे रोकने कि लिए कोई क़ानून ही बनाया गया है।

इसके बावजूद अब नेताओं को अपने पुतले जलाना अच्छा नहीं लगता और वे अपने पुतलों को जलने से बचने कि लिए पुलिस का इस्तेमाल करते हैं। पुलिस ठहरी हुक्म की गुलाम सो जान हथेली पर रखकर नेताओं कि पुतले छीनने में जुट जाती है।

प्रख्यात वकील और कांग्रेस के सांसद विवेक तन्खा ने मद्रास और अन्य हाईकोर्ट के निर्णयों का हवाला देते हुए कहा है कि पुतला जलाना अपराध नहीं है। पुलिस कर्मचारी अपने राजनीतिक आकाओ को वफ़ादारी दिखाने के चक्कर में सत्ता पक्ष के पुतले नहीं जले इसे प्रतिष्ठा का प्रश्न बना लेते हैं। भारत में ऐसा कोई राजनीतिक दल नहीं है जिसने विरोध प्रदर्शन के लिए कभी न कभी, किसी न किसी नेता का पुतला न जलाया हो। यानि सबके लिए पुतला दहन एक सहज विरोध का तरीका है लेकिन अब नेता असहिष्णु हो गए हैं। पिछले साल मेरठ में उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का पुतला जलाने के आरोप में सपा के 16 कार्यकर्ताओं को जेल भेज दिया था।

भारत में रावण के पुतले जलने का ज्ञात इतिहास है लेकिन नेताओं के पुतले जलने का कोई लिखित इतिहास नहीं है ,हालाँकि दुनिया में नेताओं के पुतले जलाने का इतिहास जरूर मिलता है। किसी राजनीतिक शत्रु का उपहास और अपमान करने के लिए उसका पुतला लटकाना या जलाना एक बहुत पुरानी और बहुत व्यापक प्रथा है। सन 1328 में, पोप जॉन XXII को बेदखल करने के लिए इटली में अपने अभियान पर, पवित्र रोमन सम्राट लुई IV के सैनिकों ने पोप का पुतला जलाया था । ब्रिटिश उपनिवेशों में, 1765 के स्टाम्प अधिनियम के विरोध में पुतले के प्रदर्शन को एक प्रभावी उपकरण के रूप में प्रमुखता मिली, जिससे अमेरिकी क्रांति हुई और संयुक्त राज्य अमेरिका की स्थापना हुई। बाद में, यह अमेरिकी राजनीति में राजनीतिक अभिव्यक्ति का एक स्थापित रूप बन गया, और लगभग हर अमेरिकी राष्ट्रपति को उनके करियर में कभी न कभी पुतले में जलाया गया।

भारत और पाकिस्तान में राजनीतिक विरोध में पुतले जलाने का चलन कुछ ज्यादा ही लोकप्रिय है। फिलीपींस में, राष्ट्रपति मार्कोस के शासन के खिलाफ सफल जन शक्ति क्रांति के दौरान यह प्रथा सामने आई। तब से लगातार राष्ट्रपतियों के खिलाफ पुतला विरोध विस्तृत चश्मे में विकसित हुआ। अमेरिकी राष्ट्रपति जॉर्ज डब्लू. बुश और राष्ट्रपति बराक ओबामा को इस क्षेत्र के देशों में और साथ ही अन्य जगहों पर अफगानिस्तान और इराक के सैन्य अभियानों और कब्जे के विरोध में कई बार पुतला जलाया गया है। 2011 के अरब वसंत के दौरान और उसके बाद, मिस्र, लीबिया, यमन और सीरिया में देशों के नेताओं के पुतलों को फाँसी दी गई।

पुतलों के दहन को लेकर लोकतान्त्रिक देश भारत में नजरिया बदलने की जरूरत है. पुलिस को पुतला जलाने से रोकना नहीं चाहिए और इसके लिए जान तो बिलकुल दांव पर नहीं लगना चाहिए ,क्योंकि भ्र्ष्ट नेताओं के पुतलों के लिए जान देने से लोक बिगड़ेगा और परलोक सुधरेगा नहीं, मैं पुतला बचने के फेर में जले सब इंस्पेक्टर की कुशलता के लिए ईश्वर से प्रार्थना करता हूँ।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)

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