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बच्चों के हाथ में श्रम नहीं शिक्षा दीजिए, ये राष्ट्रीय-सामाजिक दायित्व

विश्व बाल श्रम निषेध दिवस पर प्रवीण कक्कड़ का विशेष आलेख

बालश्रम यानी कानून द्वारा निर्धारित आयु से कम उम्र में बच्चों को मजदूरी या अन्य श्रमों में झोंक देना। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर इसे शोषण करने वाली प्रथा और कानूनन अपराध माना गया है। इसी अवधारणा को सोचकर विश्व बाल श्रम निषेध दिवस की शुरुआत साल 2002 में ‘इंटरनेशनल लेबर आर्गेनाईजेशन’ द्वारा की गई थी। इस दिवस को मनाने का मक़सद बच्चों के अधिकारों की सुरक्षा की ज़रूरत को उजागर करना और बाल श्रम व अलग-अलग रूपों में बच्चों के मौलिक अधिकारों के उल्लंघनों को ख़त्म करना है।

हर साल 12 जून को मनाए जाने वाले विश्व बाल श्रम निषेध दिवस के मौके पर संयुक्त राष्ट्र एक विषय तय करता है। इस वर्ष वर्ल्ड डे अगेंस्ट चाइल्ड लेबर 2022 की ‘बाल श्रम को समाप्त करने के लिए सार्वभौमिक सामाजिक संरक्षण’ रखी गई है। इस मौके पर अलग-अलग राष्ट्रों के प्रतिनिधि, अधिकारी और बाल मज़दूरी पर लग़ाम लगाने वाले कई अंतराष्ट्रीय संगठन हिस्सा लेते हैं, जहां दुनिया भर में मौजूद बाल मज़दूरी की समस्या पर चर्चा होती है। आज हम सभी को आगे आने की जरूरत है और जरूरत है उस सोच को साकार करने की कि इन नन्हें हाथों में श्रम नहीं शिक्षा दी जाए, क्योंकि शिक्षा ही वह अधिकार है, जो अपने हक की लड़ाई का सबसे मजबूत हथियार है।

बाल-श्रम का मतलब यह है कि जिसमें कार्य करने वाला व्यक्ति कानून द्वारा निर्धारित आयु सीमा से छोटा होता है। इस प्रथा को कई देशों और अंतर्राष्ट्रीय संगठनों ने शोषण करने वाली प्रथा माना है। अतीत में बाल श्रम का कई प्रकार से उपयोग किया जाता था, लेकिन सार्वभौमिक स्कूली शिक्षा के साथ औद्योगीकरण, काम करने की स्थिति में परिवर्तन तथा कामगारों के श्रम अधिकार और बच्चों अधिकार की अवधारणाओं के चलते इसमें परिवर्तन हुआ है। देश एवं राष्ट्र के स्वर्णिम भविष्य के निर्माता उस देश के बच्चे होते हैं। अत: राष्ट्र, देश एवं समाज का भी दायित्व होता है कि अपनी धरोहर की अमूल्य निधि को सहेज कर रखा जाये ।

प्रवीण कक्कड़

इसके लिये आवश्यक है कि बच्चों की शिक्षा, लालन-पालन, शारीरिक, मानसिक विकास, समुचित सुरक्षा का विशेष ध्यान रखा जाये और यह उत्तरदायित्व राष्ट्र का होता है, समाज का होता है, परन्तु यह एक बहुत बड़ी त्रासदी है कि भारत देश में ही अपितु समूचे विश्व में बालश्रम की समस्या विकट रूप में उभर कर आ रही है । देश में श्रमिक के रूप में कार्य कर रहे 5 वर्ष से 14 वर्ष तक के बालक बाल श्रमिक के अंतर्गत आते हैं।

1981 में हुई भारत की जनगणना ने यह अनुमान लगाया था कि करीब 1 करोड 30 लाख बच्चे (14 वर्ष से कम उम्र वाले) अधिकांशत: खेतिहर गतिविधियों में लगे हुए है । 1993 में नेशनल सैम्पल सर्वे ने अनुमान लगाया कि 5 से 15 वर्ष की आयु के 1 करोड 70 लाख बाल मजदूर कार्यरत हैं। 2005 में इस संख्या को 4 करोड 40 लाख बताया। मौजूदा दौर में देश में लगभग 6 करोड़ से भी अधिक बाल श्रमिक हैं जिनमें लगभग 2 करोड़ से अधिक लड़कियाँ हैं। यह बाल श्रमिक देश के सभी भागों में छिटपुट रूप से विद्‌यमान हैं। देश के कुछ भागों, जैसे उत्तर प्रदेश, बिहार, बंगाल, मध्य प्रदेश, उड़ीसा में इन श्रमिकों की संख्या तुलनात्मक रूप से अधिक है । बालश्रम की समस्या का मूल कारण गरीबी एवं जनसंख्या वृद्धि होती है। इस दृष्टि से भारत इन दोनों समस्याओं से ग्रसित है। सभी बच्चों को अपने परिवार का पेट भरने हेतु कमरतोड़ मेहनत वाले कार्यो मे झोंक दिया जाता है, जबकि उनका को शरीर और कच्ची उम्र उन कार्यो के अनुकूल नहीं होती।

यह सब चीजें बाल श्रम को एक वैश्विक चुनौती बना देते हैं। कई संस्थाएं इस काम पर नियंत्रण रखती हैं। इंटरनेशनल लेबर आर्गेनाईजेशन की स्थापना 1919 में हुई है। ये संयुक्त राष्ट्र की एक एजेंसी के रूप में काम करती है। इसका मुख्यालय जेनेवा में है। इसका मक़सद विश्व में श्रम मानकों को स्थापित करना और श्रमिकों की अवस्था और आवास में सुधार करना है। बाल अधिकारों पर “संयुक्त राष्ट्र समझौता”(UNCRC) 1989 में बना एक क़ानूनी रूप से बाध्यकारी अंतर्राष्ट्रीय समझौता है। इस समझौते में जाति, धर्म को दरकिनार करते हुए हर बच्चे के नागरिक, राजनीतिक, आर्थिक, सामाजिक और सांस्कृतिक अधिकारों की स्थापना की गई है। इस समझौते पर कुल 194 देशों ने हस्ताक्षर किए हैं। समझौते के मुताबिक़ (UNCRC) पर दस्तख़त करने वाले सभी देशों का ये कर्तव्य है कि वे बच्चों को निःशुल्क और ज़रूरी प्राथमिक शिक्षा प्रदान करे।

भारतीय संविधान के मुताबिक़ किसी उद्योग, कल-कारखाने या किसी कंपनी में मानसिक या शारीरिक श्रम करने वाले 5 – 14 वर्ष उम्र के बच्चों को बाल श्रमिक कहा जाता है। संयुक्त राष्ट्र संघ के मुताबिक़-18 वर्ष से कम उम्र के श्रम करने वाले लोग बाल श्रमिक हैं। अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन के मुताबिक़ – बाल श्रम की उम्र 15 साल तय की गई है। अमेरिका में -12 साल या उससे कम उम्र के लोगों को बाल श्रमिक माना जाता है।

समाज में आती जागरूकता एक दूसरी चीज है जो बाल श्रम को रोकने में ज्यादा महत्वपूर्ण काम कर सकती है। संविधान और कानून दंडात्मक कार्य कर सकते हैं लेकिन सामाजिक सक्रियता खुद ही लोगों को गलती के प्रति जागरूक कर सकती है। भारत में बहुत से सामाजिक संगठन और गैर सरकारी संस्थाएं इस बारे में अपना प्रयास कर रही हैं। संस्थाएं एक तरफ प्रशासन को बाल मजदूरी के मामले उजागर करने में सहयोग करते हैं तो दूसरी तरफ बाल मजदूरी से मुक्त कराए गए बच्चों के पुनर्वास और शिक्षा आदि का प्रबंध भी करते हैं।

आज बाल श्रम निषेध दिवस के दिन हम सब को संकल्प करना चाहिए कि जहां तक संभव हो हम शांतिपूर्ण तरीके से अपने देश में इस बुराई को समाप्त करें। और एक ऐसे राष्ट्र का निर्माण करें जहां सब बच्चों को पढ़ाई लिखाई का पूरा अधिकार हो और सुशिक्षित होने के बाद वे अपने कामकाज में लगे।

(लेखक पूर्व पुलिस अधिकारी हैं, वे मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री के ओएसडी भी रह चुके हैं)

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