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बुंदेलखंड: अस्तित्व खोती जल धरोहर के मन की बात कौन सुनेगा?

बुंदेलखंड की जल संरचनाओं के संदर्भ में धीरज चतुर्वेदी का विशेष आलेख

सरकारी तंत्र और भू माफिया की मिली कारगजरियों के कारण बुंदेलखंड में जल निकायों को मिटाया जा रहा है। बेजा कब्जो के कारण तालाबों के रकबे सिमट गंदे पोखर में बदल गये है। कुआँ बाबड़ी तो चोरी हो चुके है। जलवायु परिवर्तन का सबसे अधिक असर मानसून पर है। इस कुचक्र में ऐतिहासिक धरोहरो की जल संरचनाओं का संरक्षण अहम हो गया है। अफ़सोस है कि इनके मन की बात सुनने वाला कोई नहीं है। जालसाजी-फरेब का शिकार तालाबों के मामले में तो अदालत के आदेश भी कब्ज़ा मुक्त होने के लिये सरकारी फाइलो में छटपटाते हुए कहरा रहे है।

कहते है बुंदेलखंड सूखा है। यह धारणा गलत है क्योंकि यहाँ की पहचान अपनी झीलों, तालाबों और अकाल में भी ना सूखने वाले कुआँ बाबड़ियों से होती है। यहाँ के हर नगर, कस्बे में कई तालाब और कमोबेश हर गांव में एक तालाब आज भी मौजूद है। दुखदायी है कि राजसी काल की धरोहर और विरासत इन जल संरक्षण की संरचनाएँ समय के साथ अपना अस्तित्व खो रही है।

क्या बुंदेलखंड ने सदियों पूर्व आकाल का सामना नहीं किया? तालाब, कुआँ बाबड़ी ही आकाल के समय यहाँ के लिये वह जल उपलब्ध कराते रहे है, जिसके नारे है कि जल है तो कल है। आज इन जल संरक्षण के मूल सिद्धांत पर तबाही है। विरासत को मिटा कर नई परिभाषा गठित की जा रही है। जिससे कुछ सफ़ेदपोश + ठेकेदार + सरकार के तंत्र को अनुचित लाभ मिल सके। स्वतंत्रता के बाद बुंदेलखंड को तरबतर करने के नाम पर अरबो रूपये पानी की तरह बहा दिया गया।

धीरज चतुर्वेदी, छतरपुर

इसी तरह बुंदेलखंड पैकेज की आड़ में भी करोड़ों का खर्च है। अब केन बेतवा लिंक परियोजना का लहलहाता बुंदेलखंड का दिव्य स्वप्न है। पूरा नेचुरल सिस्टम बिगाड़ने के बाद बुंदेलखंड को क्या मिलेगा, क्यों कि जल संरक्षण की आत्मा कहे जाने वाले तालाब, झील, कुआँ बाबड़ियों पर तो कब्ज़ा है। यह वह जल संरचनाये है जो भू जल को रिचार्ज करती है। जो बारिश के समय पानी को सोख पाताल की प्यास बुझाती है। जब यह तालाब, कुआँ बाबड़ी नहीं रहेंगे तो आखिर पाताल की प्यास कौन बुझाएगा?

बस आज यही यक्ष प्रश्न खड़ा है जो उन आदिमानव के कारण उठता है जिन्होंने खुद अपना वर्तमान नहीं देखा और भविष्य की तबाही लेख कर रहे है। इन आदिमानव की आधुनिक सोच रही कि तालाबों, झीलों, कुआँ बाबड़ियों पर कब्ज़ा करो और धन कुबेर बन जाओ। कलयुग में पूँजीपति बनने की सोच का कारण है कि बुंदेलखंड की पहचान तालाब अब माफिया, सरकारी गठजोड़ से मौत के घाट उतारे जा रहे है।

हाईकोर्ट का आदेश हुआ हवा हवाई

छतरपुर के तालाबों को अतिक्रमण मुक्त करने के लिये मप्र जबलपुर उच्च न्यायालय ने दायर जनहित याचिका क्रमांक 6373/2011 में सुनवाई बाद तब के मुख्य न्यायाधीश श्री ए एम खानवेलकर की डिवीजन बेंच ने छतरपुर जिले के सभी तालाबों से अतिक्रमण हटाने का 7 अक्टूबर 2014 को आदेश दिया था। इस आदेश में छतरपुर कलेक्टर, प्रिंसिपल सेकेट्री रेवेन्यू जन शिकायत निवारण को आदेशित किया था कि 7 जनवरी 2015 तक अदालत में रिपोर्ट पेश करें। अदालत के आदेशों की किस तरह मर्यादा भंग की जाती है कि 7 साल बीतने के बाद भी छतरपुर जिले के तालाबों से कब्ज़ा नहीं हटाये गये बल्कि अतिक्रमण का रोग बढ़ता गया।

एनजीटी को अपने आदेश के क्रियान्वयन का इंतजार

राष्ट्रीय हरित अधिकरण ( एनजीटी ) ने याचिका क्रमांक ए 316/2014 मे सुनवाई बाद 17 सितम्बर 2014 को एक आदेश जारी किया था कि तालाब के मूल रकवे 8.2 एकड़ के अलावा केचमेंट एरिया से कब्जे हटाये जाये। महत्वपूर्ण तथ्य है कि तालाब से केचमेंट एरिया से 10 मीटर तक ग्रीन जोन यानि पौधरोपण करने के बाद बाकायदा फेंसिग की जाये। इस आदेश के बाद छतरपुर जिला प्रशासन ने 2015 मे कार्यवाही भी शुरू कर दी थी। कलेक्टर कार्यालय के पत्र क्रमांक 30/नजूल /2015 दिनांक 20 फरवरी 2015 जारी कर तहसीलदार, नगर निवेश कार्यालय और नगरपालिका सीएमओ को कार्यवाही के लिये आदेशित किया था। जिसमे लेख किया गया था कि अधिवक्ता बीएल मिश्रा द्वारा एनजीटी कि याचिका क्रमांक 22/2013 के आदेश 11 फरवरी 2015 का पालन कराया जाये। सीमांकन हुए और फिर कुछ फाइलो के पुलंदे बन गये। जो केवल धूल खाने के लिये छोड़ दी गई। सरकारी भर्रे और ढर्रे का सबूत है कि किशोर सागर तालाब, उसके केचमेंट एरिया और अदालती आदेश अनुसार केचमेंट से 10 मीटर दूरी पर मकान बनते रहे पर सभी आँख खोलकर भी अंधे बने रहे। तालाब कि भूमि पर कब्ज़ा और बिना नगर निवेश कार्यालय कि अनुमति के भवन तैयार होते गये।

रीवा जिले के तालाबों पर कब्जे के मामले में हाईकोर्ट ने कलेक्टरो को दोषी माना

रीवा जिले के तालाबों पर कब्जे की याचिका में हाईकोर्ट ने वर्ष 2014 से रीवा में पदस्थ सभी कलेक्टर को दोषी माना है। वर्ष 2012 में श्यामानन्दन मिश्रा ने हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी। याचिका की सुनवाई दौरान सामने आया कि रीवा जिले के 231 तालाबों पर कब्जे है। माननीय न्यायालय ने अतिक्रमण हटाने के निर्देश दिये थे पर आदेश का पालन नहीं हुआ। हाल ही में न्यायालय ने 2014 से पदस्थ सभी कलेक्टर्स को नोटिस जारी कर जवाब तलब किया है। हाईकोर्ट का यह आदेश छतरपुर में पदस्थ कलेक्टरो को भी कटघरे में खड़ा करता है क्यों कि छतरपुर के तालाबों को कबजामुक्त करने के लिये हाईकोर्ट 7 अक्टूबर 2014 को आदेश दिया था। साथ ही एनजीटी ने किशोर सागर तालाब से कब्ज़ा हटाने का आदेश दिया है। अदालत के आदेशों के बाद भी 2014 से अभी तक पांच कलेक्टर छतरपुर जिले में पदस्थ हो चुके लेकिन अदालत के आदेश पर कोई अमल नहीं हुआ। यहाँ तक कि वर्तमान कलेक्टर को तो अदालत व्यक्तिगत नाम से चार नोटिस जारी कर चुकी है लेकिन कलेक्टर ने जवाब तक देना उचित नहीं समझा है। साफ तौर पर अदालत के आदेश अपमानित हो रहे है और शिव राज के अधिकारियो को अदालत तक की चिंता नहीं है।

प्रधानमंत्री मंत्री मोदी जी ने रविवार को अपनी 100 वी मन की बात की। बुंदेलखंड के तालाबों के संरक्षण की बात कौन करेगा। वह भी मौत के घाट उतारे जा रहे है पर प्रधानमंत्री जी अपनी मन की बात कहते है लेकिन ऐतिहासिक धरोहर जल संरचनाओं की मन की बात कोई सरकार सुनने को तैयार नहीं। जब कि यह जिन्दा है तो जल जिन्दा है और उससे जुड़ा कल ज़िंदा है।

(लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं)

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