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दहशत में BJP, अंदरखाने में डर का माहौल

भाजपा के लिए यह कहना आपको अजीब लगेगा। मगर भाजपा की बॉडी लैंग्वेज विजेताओं की नही। वहाँ डर का माहौल है।

हां जी!
दहशत में है भाजपा .. बेहद डर का माहौल है। रोडरोलर बहुमत के साथ सत्ता में बैठकर मनमर्जी हांक रही भाजपा के लिए यह कहना आपको अजीब लगेगा। मगर भाजपा की बॉडी लैंग्वेज विजेताओं की नही। वहाँ डर का माहौल है। सत्तर साल में इंच इंच करके जो पूंजी जोड़ी गयी थी। सात साल में सारी खर्च कर दी। पहली बार,आरएसएस के कारिंदो को खुला हाथ मिला, और सब कुछ मटियामेट।

अर्थव्यवस्था, राष्ट्रीय सुरक्षा, सामाजिक सुधार.. हर मसले पर उपलब्धि शून्य है लेकिन हेकडी, दमन, एकतरफा फैसले, आत्मकेंद्रित नेतृत्व, पुलिसिया राज, और बेलगाम कैडर .. वैचारिक फासिज्म, अब सतह पर है। तो इससे नफरत, गुस्सा भी सतह पर है।

संघ को अहसास है कि धर्म, जाति, मेजारोटिरिज्म की फसल, अपना पीक क्रॉस कर चुकी। क्षितिज पर मोहभंग है। जोड़तोड़ कर सरकारें बन गई, लेकिन हर तरफ, जनमत टूट रहा है। कर्नाटक, एमपी, राजस्थान, छत्तीसगढ़, महाराष्ट्र, बंगाल, झारखंड, दिल्ली, पंजाब विधानसभाओं में जनमत उससे दूर रहा। हरियाणा गुजरात बिहार में जोड़तोड़ से बच तो गए, लेकिन उत्तराखंड और यूपी में भी हालत पतली है।

इन राज्यों से ही भाजपा की 80% सीटें आती हैं।अब ये मोहभंग केंद्र की सत्ता की ओर बढ़ता दिख रहा है। कोर समर्थक, अब तक मोदी की हठधर्मिता पर यकीन कर रहे थे। सात सालों से भूखे पेट, जले हाथों से भी मुट्ठियाँ भींच रहे थे। मगर कृषि बिल पर घुटने टेक देने से ये तिलिस्म टूट गया।

मोदी ब्रांड कुछ नही, असल मे हठधर्मिता, संवेदनहीनता और दादागिरी का दूसरा नाम था। राज्यों की हार के बावजूद, 2019 इस ब्रांड के बूते जीता था। कृषि कानूनों पर घुटने टेक कर, यह ब्रांड भी भोथरा हो गया है। उनकी बची खुची छवि भी धराशायी करने को किसान कटिबद्ध हैं। मजबूर मोदी सरकार अब उनकी हर मांग मानेगी। अब कोई विकल्प नहीं।

प्रशान्त किशोर ने हालिया बयान में कहा कि भाजपा अगले तीस साल “सत्ता के केंद्र” में रहेगी। संघी थिंक टैंक इससे आश्वस्त नहीं। याद रहे, प्रशांत किशोर ने भाजपा के “केंद्र की सत्ता” में रहने का बयान नहीं दिया। प्रशांत किशोर जो एक चीज मिस कर गए, जो आरएसएस थिंक टैंक समझ रहा है, ये कि इतिहास में कभी भी, कहीं भी, नग्न फासिस्ट रेजीम एक बार सत्ता से नीचे उतरा है, तो कभी दोबारा सिरे नहीं चढ़ा।

तो भाजपा इस बार सत्ता से उतरी, तो दोबारा चढ़ना कठिन है। आने वाली सरकारें संघ पर ऐसी नकेल डालेंगी, की इसका दोबारा पूर्ववत ताकत पाना कठिन होगा। मोदीराज की मूर्खताएं, अहंकार, और विनाश की नजीरें, अगले पचास सालों तक भाजपा को हॉन्ट करने वाली हैं।

तो अबकी बार, सत्ता से उतरना, संघ- भाजपा के खात्मे की ओर कदम होगा। इलाज बेअसर हो रहे हैं। एलाइज छूट रहे हैं। पार्टी के भीतर एक बड़ा तबका दम साधे, मोदी ब्रांड में क्रैक की प्रार्थनाएं कर रहा है। कांग्रेस मुक्त भारत का अभियान फेल हो चुका। पप्पू पिंकी का असर बढ़ रहा है!

याद रहे, नेहरू, इंदिरा, राजीव के उलट ये पीढ़ी ऐसी है, जिसने संघी सत्ता के सबसे ज्यादा घाव झेले हैं, सबसे ज्यादा नफरत झेली है। तमाम अर्थों में इनका रेजीम संघ पर गहरा वार करेगा। तो संघ अपने अस्तित्व पर संकट देख रहा है।

सत्तर साल में इंच इंच करके जो पूंजी जोड़ी गयी थी, सात साल में सारी खर्च कर दी है। 370, राम मंदिर, UCC, बंगलादेशी शरणार्थी, चीन, पाकिस्तान जैसे अस्त्र उपयोग हो चुके। अब मोहभंग से बचने की कोई राह नहीं। बचे हुए बरसों में एक नया सेंटीमेंट पैदा करना, कुछ उपलब्धियां दिखाना सम्भव नहीं। मोदी का फेस रहते न अर्थव्यवस्था सुधरेगी, न इन्वेस्टमेंट होगा, हालात बदलेंगे, और न नरेटिव। अगर कोशिश की भी, तो कई फैसले नीतियां, वापस लेने होंगे, और उसका हश्र किसान कानून की वापसी जैसा निकलेगा।

एक समस्या यह है कि इनके सामने कोई चैलेंजर नही। भाजपा का चैलेंज एमोर्फ़स है, फेसलेस है! वह रविश जैसे लोग हैं, वो राकेश टिकैत है, कन्हैया कुमार और सफूरा है। वो सोशल मीडिया पर बैठे लोग हैं, पान ठेलों पर गरियाते लोग हैं, और कार्यक्रमों में उनका बहिष्कार करती जनता है! खुद को विपक्ष विहीन बनाने की कोशिश में भाजपा ने गली गली में अपना विपक्ष खड़ा कर लिया है!

इस फेसलेस विपक्ष को गद्दार, मुल्लाप्रेमी बताकर आप कब तक लड़ लेंगे? आप इन्हें परेशान कर सकते हैं, जीत नहीं सकते! देश की जनता से संघ और भाजपा, एक हारी हुई लड़ाई लड़ रही है। ये हार महज चुनावी नहीं होगी! आपका और आपके वैचारिक अस्तित्व का धरातल खतरे में है!

इसलिए अंदरखाने में डर का माहौल है।

( ट्विटर अकाउंट https://twitter.com/BramhRakshas से लिया गया थ्रेड )

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