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पंंकज सुबीर : छोटी जगह का बड़ा साहित्यकार

भारत में जब-जब युवा कथाकारों की बात होती है तो पंकज सुबीर वो नाम है जो सबसे पहले लोगों की जुबान पर होता है। मध्यप्रदेश के सीहोर जिले में रहने वाले पंकज सुबीर एक लेखक, शायर व् साहित्यकार हैं। सुबीर को अपने लेखन के चलते कई राष्ट्रीय व अंतराष्ट्रीय पुरुस्कार भी मिल चुके हैं। पंकज सुबीर का बचपन से लेखक बनने तक का सफर बहुत रोमांचक है। जिसे आपको भी जानना चाहिए क्योंकि पंकज सुबीर की लिखी कहानियों में एक ऐसी कल्पना शक्ति है, जिसे पढ़ कर साहित्य में दिलचस्पी न रखने वाले लोग साहित्यप्रेमी बन जाते हैं। तो आइये जानते हैं एक ऐसे व्यक्ति की कहानी जो कभी साइंटिस्ट बनना चाहता था लेकिन बन गया लेखक।

पंकज सुबीर वैसे तो मूलतः नरसिंहपुर जिले के करेली क़स्बे के हैं, लेकिन अब भोपाल से सटे सीहोर जिले में रहते हैं । यहां पंकज अपना बरसों पुराना एक कंप्यूटर सेंटर चलाते हैं, जहाँ कंप्यूटर को सीखने की चाह रखने वाले ग़रीब बच्चों को वे मुफ्त में ही कंप्यूटर कोर्सेज की ट्रेनिंग देते हैं। कंप्यूटर सेंटर के अलावा पंकज का एक शिवना प्रकाशन नाम का पब्लिशिंग हाउस भी है। पंकज बताते हैं कि उनके पिता स्वास्थ्य विभाग में अधिकारी थे। जिस वजह से एक जगह से दूसरी जगह उनके तबादले होते रहते, इन्हीं तबादलों की वजह से पंकज का परिवार कभी करेली कभी उज्जैन कभी मुरैना शिफ्ट होता। अंततः जब पंकज के पिता का आखरी तबादला सीहोर में हुआ तो परिवार हमेशा के लिए यहीं आ कर बस गया।

पिता डॉक्टर बनते देखना चाहते थे

पंकज की मानें तो उनके पिता उन्हें एक डॉक्टर बनता देखना चाहते थे, जिस वजह से पंकज ने 12वी पास करने के बाद दो बार पीएमटी का इम्तिहान भी दिया जिसमें सफलता न मिलने पर उन्होंने बीएससी और फिर बाद में भोपाल के बरकतुल्लाह विश्वविद्यालय से एमएससी रसायन शास्त्र में दाखिला लिया और यहीं से पंकज का सफर शुरु हुआ, सफर लेखक बनने का। पंकज बताते हैं कि एमएससी की पढाई के दौरान ही मैंने कहानियां और कविताएं लिखना शुरू किया उनमें से कुछ कहानियां जब उन्होंने अख़बार वालों को भेजीं तो उन्हें भी पंकज की लिखी कहानियां खूब पसंद आईं।

पत्रकार बनने का सफर

अब तक पंकज की पढ़ाई भी ख़त्म हो चुकी थी और लगभग हर हफ्ते उनकी एक कहानी अख़बार में छपने भी लगी थी। लिखने का शौक रखने वाले पंकज द्वारा लिखे लेख जब अख़बारों में छपने लगे तो उनके कुछ साथी जो उनदिनों अख़बारों में काम करते थे, उन्होंने पंकज को पत्रकारिता करने की सलाह दी। पंकज को भी सामाजिक मुद्दों पर लिखने का शौक था तो वे पत्रकार बन गए। पंकज कहते हैं कि पत्रकारिता में पहले सब ठीक था लेकिन फिर धीरे धीरे उसके हाल भी बुरे होने लग गए। जिसका नतीजा बहुत लम्बे समय तक पत्रकारिता पंकज को या कहें पंकज पत्रकारिता को रास नहीं आए। अब तक साल 2009 आ चुका था और पंकज कई उपन्यास और किताबें लिख चुके थे। पंकज का लेखक बनने का फैसला खूब रंग लाया जब उन्हें अपनी एक कहानी महुआ घटवारिन के लिए हिंदी के सबसे बड़े अंतररास्ट्रीय पुरुस्कार ‘इंदु शर्मा’ से लंदन के हाउस ऑफ़ कमेंस में सम्मानित किया गया। पंकज कहते हैं कि इस सम्मान के बाद मैंने पूरी तरह से पत्रकारिता को छोड़ दिया था और एक फुल टाइम राइटर बन गया था।

बॉलीवुड पंकज की किताब पर बनाना चाहती है फिल्म

अपने लेखन के कारण अब तक पंकज अपने नाम अंतर्राष्ट्रीय इन्दु शर्मा कथा सम्मान, भारतीय ज्ञानपीठ के युवा नवलेखन पुरस्कार, पाखी पत्रिका के जे.सी. जोशी शब्द साधक जनप्रिय सम्मान और मप्र हिंदी साहित्य सम्मेलन के वागीश्वरी पुरस्कार जैसे कई अन्य पुरूस्कार अपने नाम कर चुके हैं। सुबीर की एक कहानी ‘कुफ्र’ पर लघु फिल्म भी बन चुकी है। लेकिन पंकज इससे कुछ खुश नहीं हैं। पंकज का कहना है कि जो फिल्म उनकी कहानी पर बनाई गयी है, उसे दर्शकों के सामने तोड़-मरोड़ के पेश किया गया है। इसलिए अब पंकज कहते हैं कि मैंने बॉलीवुड से दूरी बना ली है, अब डायरेक्टर्स मेरे पास ऑफर्स लेकर आते भी हैं तो मैं उन्हें मना कर देता हूँ।

बहुत ही जल्द पंकज मध्यप्रदेश में हुए सत्ता परिवर्तन पर एक उपन्यास भी लिखने वाले हैं, इसके पीछे पंकज वजह बताते हैं कि राजनीति में अभी तक जितना लेखन हुआ है वो नॉन फिक्शनल है, साथ ही हाल ही में चल रहे किसान आंदोलन पर भी पंकज सुबीर के पाठकों के लिए 2022 तक कुछ खास आ सकता है।
भारत के साहित्य को एक नई पहचान देने और समय समय पर अपने उपन्यासों से सरकारों के सामने कड़े सवाल खड़े करने वाले लेखक साहित्यकार पंकज सुबीर को जोशहोश सलाम करता है।

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