पत्रकार अश्विनी श्रीवास्तव ने बताया, नौकरशाही कितनी खरी-कितनी खोटी?
सुर्खियों में पत्रकार अश्विनी श्रीवास्तव की पुस्तक 'डिकोडिंग इंडियन बाबूडोम'।
नई दिल्ली/ भोपाल (जोशहोश डेस्क) भोपाल में जन्मे और दिल्ली में कार्यरत पत्रकार अश्विनी श्रीवास्तव की पुस्तक ‘डिकोडिंग इंडियन बाबूडोम’ इन दिनों सुर्खियों में है। एक पत्रकार के रूप में लंबे समय से देश की नौकरशाही को करीब से देखने वाले अश्विनी श्रीवास्वत ने इस पुस्तक में एक आम आदमी के दृष्टिकोण से देश की प्रशासनिक व्यवस्था और शासन के कामकाज का विश्लेषण किया है। यह पुस्तक जनता की आकांक्षाओं को पूरा करने अफ़सरशाही पर सर्जिकल स्ट्राइक की जरुरत पर भी जोर देती है वहीं प्रभावी शासन को प्राप्त करने के लिए15 सूत्र भी बताती है।
पुस्तक के लेखक अश्विनी श्रीवास्तव अपने 15 साल के पत्रकारीय अनुभव के आधार पर कहते हैं कि देश की अफ़सरशाही से जुड़े काफ़ी मिथक हैं क्योंकि भारत जैसे विशाल देश में शासन को विभिन्न कारणों से एक बाहरी व्यक्ति आसानी से नहीं समझ सकता है। ऐसे में यह पुस्तक नौकरशाही से जुड़ी सामान्य भ्रांतियों को उजागर करने की कोशिश करती है और सरकारी कामकाज में सुधार के तरीके सुझाती है, जिससे सुशासन की प्राप्ति की जा सके।
अश्विनी श्रीवास्तव ने इस पुस्तक में संपत्ति रजिस्ट्री कार्यालयों, आरटीओ, नागरिक प्राधिकरणों जैसे कार्यालयों में कथित संगठित भ्रष्टाचार, लालफीताशाही और बड़ी संख्या में ‘लोक सेवकों’ की लोगों के प्रति गैर-पेशेवर दृष्टिकोण को उजागर किया है साथ ही इसके संभावित कारणों की भी व्याख्या की है। उन्होंने नौकरशाहों में लोगों के विश्वास की कमी और उनके असहयोग और अक्षमता का जिक्र भी पुस्तक में किया है।
लालफीताशाही को अश्विनी श्रीवास्तव ने किसी न किसी रूप में सभी सरकारी विभागों में मौजूद बताते हुए इसे समाप्त करने के समाधान भी पुस्तक में बताए हैं। उन्होंने आम आदमी के नजरिये से देश में अच्छे और प्रभावी शासन को प्राप्त करने के लिए 15 सूत्र भी पुस्तक में सुझाए हैं, जो प्रशासन में व्यापारियों के विश्वास को बढ़ाकर निवेश लाने में उपयोगी हो सकते हैं।
सुशासन को किसी भी देश के नागरिकों का मूल अधिकार और एक सभ्य समाज की पहचान बताते हुए अश्विनी श्रीवास्तव ने लॉकडाउन के दौरान प्रवासियों के पलायन के प्रबंधन में अफ़सरशाही की कथित अक्षमता के बारे में प्रासंगिक सवाल पुस्तक में उठाए हैं। उन्होंने सुशासन सुनिश्चित करने के लिए निरंतर प्रयास और लोगों की जरूरतों का मूल्यांकन व पुनर्मूल्यांकन समय-समय पर किये जाने पर जोर दिया है। साथ ही एक ऐसी व्यवस्था देश में सुनिश्चित की जाने की पैरवी की है जो सेवाओं की त्वरित डिलीवरी और लोगों की आकांक्षाओं से मेल खाने वाली हो।
अश्विनी श्रीवास्तव की पुस्तक ‘डिकोडिंग इंडियन बाबूडोम’ को उन युवाओं के लिए भी उपयोगी माना जा रहा है जो सिविल सेवा में जाना चाहते हैं या देश की प्रशासनिक व्यवस्था में रुचि रखते हैं।
मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल में जन्मे अश्विनी श्रीवास्तव अभी न्यूज एजेंसी प्रेस ट्रस्ट ऑफ इंडिया में बतौर असिस्टेंट एडिटर कार्यरत हैं। वे देश के उन चुनिंदा पत्रकारों में हैं जो सूचना के अधिकार का अपनी पत्रकारिता में लगातार इस्तेमाल करते हुए कई ऐसी खबरें कर चुके हैं जिनकी चर्चा संसद के अंदर तक हो चुकी हैं। अश्विनी देश के कई अतिविशिष्ट जनों की विदेश यात्राओं में भी साथ रह चुके हैं।