नर्मदा में उतर आए पूरे साहूकार, स्थानीय हित के साथ संरक्षित हो नदी
'नर्मदा पर्यावरण-आस्था और अस्तित्व' कार्यक्रम में बोलीं पर्यावरण एक्टिविस्ट मेधा पाटकर।
भोपाल (जोशहोश डेस्क) नर्मदा नदी में पूरे साहूकार उतर आए हैं। राजनीतिक दलों ने जलग्रहण क्षेत्र को धनअर्जित करने का ज़रिया बना लिया है। जब तक नर्मदा घाटी के स्थानीय लोगों के हितों की रक्षा नहीं की जाएगी, तब तक नर्मदा का संरक्षण नहीं किया जा सकेगा। यह बात पर्यावरण एक्टिविस्ट मेधा पाटकर ने नर्मदा संरक्षण न्यास द्वारा आयोजित कार्यक्रम ने कही।
राजधानी भोपाल में आयोजित ‘नर्मदा पर्यावरण- आस्था और अस्तित्व’ कार्यक्रम में नर्मदा संरक्षण न्यास के अध्यक्ष दिग्विजय सिंह, कार्यकारी अध्यक्ष अमृता राय सहित तमाम पर्यावरणविदों ने नर्मदा के संरक्षण और घाटी के निवासियों के हितों की रक्षा पर मंथन किया। कार्यक्रम की मुख्य अतिथि पर्यावरण एक्टिविस्ट मेधा पाटकर ने दो टूक कहा कि सिर्फ नर्मदा के ज़रिए अपने खजाने भरने की आड़ में नदी के साथ नर्मदा घाटी में लोगों के साथ खिलवाड़ किया जा रहा है। उन्होंने चेताया कि अगर हर संसाधन को बचाकर ही नर्मदा को नहीं बचाया गया तो वो दिन दूर नहीं जब नर्मदा का पानी भी बोतल में मिलेगा।
मेधा पाटकर ने गुजरात और मध्य प्रदेश की सरकार की नीतियों पर भी सवाल उठाये। उन्होंने कहा कि दोनों सरकार की गलत नीतियों के कारण गांव के गांव डूब गए, लेकिन विस्थापितों के पुनर्वास के कोई कदम नहीं उठाये गए। उन्होंने शिवराज सरकार द्वारा नर्मदा किनारे पेड़ लगाने के दावों पर कहा कि सरकार के सभी दावे ढकोसले साबित हुए हैं। सरकार की ओर से न तो नर्मदा और न ही पर्यावरण की रक्षा के लिए कदम उठाए गए।
मेधा पाटकर ने बड़े बांधों को लेकर भी कार्यक्रम में विचार व्यक्त किये। उन्होंने कहा कि बड़े बांध की वजह से होने वाले नुकसान का अंदाज़ा लगाना बेहद ज़रुरी है। मेधा पाटकर ने कहा कि पर्यावरण पर असर तब पड़ता है जब आप नदी को जोड़ते और तोड़ते हैं। नर्मदा को अविरल बहने देना ही पर्यावरण का संरक्षण से जुड़ा है। हम जिस बात की लगातार चेतावनी दे रहे थे उसकी परिणीति ही केदारनाथ हादसे के रूप में सामने आ चुकी है।
नर्मदा संरक्षण न्यास के अध्यक्ष और कांग्रेस के राज्यसभा सांसद दिग्विजय सिंह ने कार्यक्रम में कहा कि नर्मदा को संरक्षित करने के लिये सही विचारधारा और आचरण की ज़रुरत है। उन्होंने कहा कि हम जितना प्रकृति से लेते हैं हमें उतना ही प्रकृति को लौटाना भी चाहिये। उन्होंने कहा कि नर्मदा जी को बचाने के लिये हम मंथन के सिलसिले को लगातार जारी रखेंगे साथ ही हम लोगों तक बड़े बड़े बांध के नुकसान और छोटे बांध की अहमियत भी सामने रखेंगे। इस मौके पर उन्होंने प्रकृति से खिलवाड़ न होने देने का संकल्प लेने की बात भी कही।
न्यास की कार्यकारी अध्यक्ष अमृता राय ने कार्यक्रम को संबोधित करते हुए कहा कि नर्मदा की खुशहाली हमारे आचरण से ही आयेगी। आस्था और अस्तित्व के साथ हमें अपने आचरण पर भी ध्यान केंद्रित करना होगा। प्रकृति को बचाने की ज़िम्मेदारी सामूहिक है। हवा पानी और आकाश हमारी सामाजिक और सामूहिक जिम्मेदारी है। मनुष्य का अस्तित्व पानी पर निर्भर है, जिसमें नदी की सबसे बड़ी भूमिका है।
परिचर्चा में पर्यावरणविद राजेंद्र चंद्रकांत राय, गुजरात के भरूच में सक्रिय सामाजिक कार्यकर्ता राजकुमार सिन्हा, गुजरात के मछुआरा समाज के कमलेश मणीवाला और साहित्यकार पंकज सुबीर ने भी अपने विचार रखे।