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केन-बेतवा लिंक: मध्यप्रदेश का गुजरात के बाद UP के आगे जल समर्पण

केन-बेतवा लिंक परियोजना का सच यह भी है कि मध्यप्रदेश ने एक बार फिर अपने हिस्से के पानी की लड़ाई में समर्पण कर दिया।

भोपाल (जोशहोश डेस्क) सालों से विवाद में उलझी केन-बेतवा लिंक परियोजना पर सोमवार को मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने हस्ताक्षर कर दिए। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की मौजूदगी में इस परियोजना पर हुए हस्ताक्षर को भले ही ऐतिहासिक कदम बताया जा रहा हो लेकिन सच यह भी है कि मध्यप्रदेश ने एक बार फिर अपने हिस्से के पानी की लड़ाई में समर्पण कर दिया।

केन बेतवा लिंक परियोजना में अब उत्तर प्रदेश को पहले से ज्यादा पानी मिलेगा। वर्ष 2005 में उत्तर प्रदेश को रबी फसल के लिए 547 एमसीएम (मिलियम क्यूबिक मीटर) और खरीफ फसल के लिए 1153 एमसीएम पानी देना तय हुआ था। वर्ष 2018 में उत्तर प्रदेश की मांग पर रबी फसल के लिए 700 एमसीएम पानी देने पर सहमति बन गई थी लेकिन यूपी सरकार ने जुलाई 2019 में 930 एमसीएम पानी मांग लिया था, जिसे मध्यप्रदेश ने इनकार कर दिया था।

अब परियोजना का जो एमओयू साइन हुआ है उसके मुताबिक उत्तर प्रदेश को 750 एमसीएम पानी दिया जाएगा। यानी वर्ष 2018 में तय मात्रा से 50 एमसीएम ज्यादा। यानी एक बार फिर दिल्ली के दबाव में मध्यप्रदेश ने अपनी हिस्से के पानी की लड़ाई में समर्पण कर दिया।

प्रदेश के हितों से समझौता- कमल नाथ

पूर्व मुख्यमंत्री कमल नाथ का कहना है कि इस परियोजना के MOU पर हस्ताक्षर करके मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने ऐतिहासिक गलती की है। इस परियोजना की कीमत मध्य प्रदेश की जनता चुकाएगी जबकि फायदा उत्तर प्रदेश को होगा। शिवराज सरकार को इस परियोजना को लेकर प्रारंभ में तय अनुबंधों की शर्तों , विवाद के प्रमुख बिंदुओ , इस परियोजना में मध्यप्रदेश के हितो की अनदेखी , नुक़सान पर ली गयी आपत्तियों व वर्तमान एमओयू में तय शर्तों की जानकारी सार्वजनिक कर प्रदेश की जनता को वास्तविकता बताना चाहिये।

पानी को लेकर मध्यप्रदेश इससे पहले गुजरात के सामने भी समर्पण कर चुका है। नर्मदा जल को लेकर गुजरात के आगे मध्यप्रदेश लगभग समर्पण की मुद्रा में ही है। सरदार सरोवर बाँध ने गुजरात की जहां तस्वीर बदल दी वहीं मध्यप्रदेश के कई गांव बिना पुर्नवास के ही डूब गए।

नर्मदा जल के बंटवारे को लेकर 1969 में नर्मदा वॉटर डिसप्यूट ट्रिब्यूनल (एनडब्ल्यूडीटी) बना था। 10 साल के अध्ययन और राज्यों के दावों की सुनवाई के बाद ट्रिब्यूनल ने 1979 में अपना निर्णय दिया था। इसे नर्मदा अवाॅर्ड के नाम से जाना जाता है। नर्मदा जल बंटवारे के अनुसार मध्यप्रदेश को 18.25 एमएएफ (लाख एकड़ फीट) जल व गुजरात को 14 एमएएफ और राजस्थान व महाराष्ट्र 0.50 और 0.25 एमएएफ जल देने पर सहमति हुई थी।

तीन साल पहले आई एक रिपोर्ट के मुताबिक नर्मदा जल बंटवारे के 38 साल बाद भी मध्यप्रदेश अपने हिस्से का पूरा पानी नहीं ले पा रहा है। रिपोर्ट में कहा गया था कि मध्य प्रदेश ने जहा अपने हिस्से के पानी का 60 प्रतिशत ही उपयोग किया था वही गुजरात में सीमित संसाधनों के बावजूद 88% पानी का उपयोग हो रहा है।

दो साल पहले भी सरदार सरोवर बांध को लेकर मध्यप्रदेश और गुजरात आमने सामने आ गए थे। गुजरात बिजली उत्पादन रोककर बांध को पूरा भरना चाहता था जबकि मध्यप्रदेश को बांध भरने से हजारों लोगों के विस्थापन की चिंतित था। गुजरात ने 138 मीटर की क्षमता तक बांध को भरने के लिए पानी मांगा था। तब मध्यप्रदेश सरकार का कहना था कि गुजरात को उसके हिस्से का पानी मिल चुका है और अधिक पानी दिया तो मध्यप्रदेश के 24 गांव इसी महीने डूब जाएंगे।

वहीं सरदार सरोवर बांध की ऊंचाई बढ़ाया जाना भी मध्य प्रदेश की तुलना में गुजरात के किये ही हितकारी माना गया था। नर्मदा के दायरे में आने वाले गुजरात का 75 फीसदी इलाका संभावित सूखा प्रभावित क्षेत्र था। बांध की ऊंचाई बढ़ने से इन इलाकों का संभावित सूखा प्रभावित की श्रेणी से बाहर निकलना तय है। सिंचाई के मामले में भी सबसे ज्यादा फायदा गुजरात को ही होना है। नर्मदा बांध के जरिए गुजरात की 18.45 लाख हैक्टेयर भूमि को सिंचाई के लिए पानी उपलब्ध होने का अनुमान है।

सरदार सरोवर बांध का पानी सौराष्ट्र के 115 छोटे बांधों और जलाशयों में पहुंचेगा। औसत से भी कम वर्षा वाले सौराष्ट्र में साल भर बनी रहने वाली पानी की समस्या खत्म हो जाएगी। बांध से पैदा होने वाली 1,450 मेगावॉट बिजली में से 16 फीसदी बिजली भी गुजरात को मिलेगी। इसके ठीक उलट मध्यप्रदेश को सिवाय 877 मेगावॉट बिजली के कुछ न मिलने की बात कही गई थी ।

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