क्या MP में नए नेतृत्व-नए पॉवर सेंटर की ओर बढ़ रही BJP
भाजपा संसदीय बोर्ड और केंद्रीय चुनाव समिति दोनों में ही CM शिवराज के न होने के निकाले जा रहे निहितार्थ
नई दिल्ली/भोपाल (जोशहोश डेस्क) भारतीय जनता पार्टी ने बुधवार को अपने नए संसदीय बोर्ड के साथ केंद्रीय चुनाव समिति का ऐलान कर दिया। बड़ी बात यह रही कि संसदीय बोर्ड और चुनाव समिति दोनों में ही मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को जगह नहीं दी गई। इसके बाद से ही भाजपा के इस निर्णय के निहितार्थ निकाले जा रहे हैं।
सियासी गलियारों में यह कहा जा रहा है कि भाजपा ने इस निर्णय के साथ ही मध्यप्रदेश के लिए सीधा संदेश दिया है। संदेश साफ है कि भाजपा अब मध्यप्रदेश में नए नेतृत्व की ओर बढ़ रही है। विधानसभा चुनाव से ठीक पहले संसदीय बोर्ड और केंद्रीय चुनाव समिति में शिवराज का न होना इस पटकथा की ही हिस्सा है।
वरिष्ठ पत्रकार आशुतोष ने भी एक न्यूज चैनल पर भाजपा के संसदीय बोर्ड और चुनाव समिति में शिवराज के न होने को लेकर कमोबेश यही राय दी। आशुतोष ने कहा कि मध्यप्रदेश में भाजपा अब नए नेतृत्व की ओर देख रही है और कहीं न कहीं शिवराज सिंह चौहान को भी पार्टी ने यह संदेश दे दिया है। यही कारण है कि शिवराज अब शासन व्यवस्था में योगी आदित्यनाथ की कॉपी तक कर रहे हैं। आशुतोष का मानना है कि भाजपा आगामी विधानसभा में अब उन पर दांव लगाने के मूड में नहीं है।
वहीं इस निर्णय को संघ में भी कमजोर पड़ते शिवराज के रूप में भी देखा जा रहा है। यह कहा जा रहा है कि भैयाजी जोशी के नंबर दो रहने तक शिवराज ताकतवर थे लेकिन जब से दत्रात्रय होसबेले नंबर दो बने हैं तब से शिवराज की संघ में पकड़ भी कमजोर हो गई है।
इस निर्णय को स्थानीय निकाय चुनावों के नतीजों के परिणामों से भी जोड़कर देखा जा रहा है। निकाय चुनावों में भाजपा को सात निकायों में हार का सामना करना पड़ा है। दो निकायों में वह बमुश्किल जीत हासिल कर पाई थी। भाजपा को उसके मजबूत गढ़ जैसे महाकौशल और विंन्ध्य में भी हार का सामना करना पड़ा है। चूंकि भाजपा का पूरा चुनाव शिवराज के चेहरे पर ही लड़ा गया था, ऐसे में सात निकायों में हार को भी शिवराज से जोड़ा जा रहा है।
बड़ी बात यह है कि संसदीय बोर्ड और केंद्रीय चुनाव समिति में मध्यप्रदेश से केवल पूर्व सांसद सत्यनारायण जटिया को शामिल किया गया है। इसे भाजपा का दलित कार्ड तो माना जा रहा है साथ ही इसे मालवा में कैलाश विजयवर्गीय जैसे नेताओं का कद कम करने की कवायद भी माना जा रहा है। अगर प्रदेश की बात की जाए तो जटिया अभी तक भाजपा की सियासत से पूरी तरह साइडलाइन थे। यहां तक कि स्थानीय चुनाव में भी उनकी भूमिका कहीं नहीं दिखी थी। ऐसे में यह माना जा रहा है कि जटिया का अचानक ताकतवर होने से प्रदेश भाजपा में एक नया पॉवर सेंटर भी स्थापित कर देगा।