वनमंत्री के जिले में ताक पर वन अधिकार कानून, 40 आदिवासी परिवार जबर्दस्ती बेदखल
खंडवा जिले के नेगांव (जामनिया) में करीब 40 आदिवासी परिवारों को वन विभाग द्वारा जबर्दस्ती बेदखल किया गया है।
खंडवा (जोशहोश डेस्क) प्रदेश के वनमंत्री विजय शाह के जिले में ही वन अधिकार कानून को ताक पर रख आदिवासियों को जमीन से बेदखल किया गया। जबकि कानून के मुताबिक दावे-आपत्तियों के निराकरण तक आदिवासियों को जमीन से बेदखल नहीं किया जा सकता। बड़ी बात यह है कि आदवासियों से यह अमानवीयता तब हुई जब वन मंत्री स्वयं आदिवासी वर्ग से हैं।
खंडवा जिले के नेगांव (जामनिया) में करीब 40 आदिवासी परिवारों को वन विभाग द्वारा जबर्दस्ती बेदखल किया गया है। बेदखल आदिवासियों का आरोप है कि के अमले के साथ मिलकर दूसरे गांव के लोगों ने उनके घर तोड़ दिए गए, अनाज बर्तन समेत अन्य सामान लूट लिया, यहां तक कि औरतों तक से बदसलूकी की गई।
बेदखल आदिवासियों का आरोप है कि वन विभाग की इस कार्रवाई का विरोध करने और आदिवासियों के हित में आवाज उठाने पर तीन सामाजिक कार्यकर्ताओं को भी वन विकास निगम के कार्यालय में बंधक बनाकर पीटा गया। इसके विरोध में जब पुलिस अधीक्षक कार्यालय पर आदिवासियों और अन्य ग्रामीणों ने धरना दिया तो तीनों सामाजिक कार्यकर्ताओं को छोड़ा गया।
जागृत आदिवासी दलित संगठन (JADS) ने आदिवासियों को क़ानून के विपरीत जाकर बेदखल लिए जाने का विरोध लिया है। संगठन ने इस मामले में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान, वन मंत्री विजय शाह, आदिवासी कल्याण मंत्री मीना सिंह मांडवे से हस्तक्षेप की मांग की है।
संगठन ने आदिवासी परिवारों की अवैध बेदखली, लूट और मार पीट, अपहरण कर बंधक बनाये जाने पर ‘अत्याचार अधिनियम’ और आईपीसी के अंतर्गत सख्त कार्रवाई की मांग की है। संगठन ने बेदखल परिवारों को मुआवजा और उनके लिए आवास और राशन व्यवस्था की मांग भी की है। संगठन ने ऐसा न होने पर व्यापक आंदोलन की चेतावनी भी दी है।
गौरतलब है कि वन अधिकार अधिनियम की धारा 4 (5) के मुताबिक दावों के निराकरण तक किसी की बेदखली नहीं की जा सकती है। मध्य प्रदेश हाईकोर्ट के 23 अप्रैल और 15 जून के आदेशों मुताबिक भी 15 जुलाई तक प्रदेश में किसी प्रकार की बेदखली प्रतिबंधित है। इसके बाद भी वन अधिकार कानून का वन मंत्री विजय शाह के जिले में ही पालन नहीं हो रहा है और आदिवासियों को उनकी जमीन से बेदखल किया जा रहा है।