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01 जून 1949: जब आज़ादी के 659 दिन बाद भोपाल में लहराया तिरंगा

देश 15 अगस्त 1947 को आज़ाद हुआ लेकिन भोपाल में आज़ादी की खुशी अधूरी थी। भोपाल रियासत का भारत में औपचारिक विलय 01 जून 1949 में हो सका था।

भोपाल (जोशहोश डेस्क) यूं तो हमारा देश 15 अगस्त 1947 को आज़ाद हुआ लेकिन भोपाल में आज़ादी की यह खुशी अधूरी थी। भोपाल नवाब हमीदुल्लाह खान की मोहम्मद अली जिन्ना के साथ नज़दीकियों के चलते भोपाल रियासत का भारत में औपचारिक विलय 01 जून 1949 में हो सका था। वह भी विलीनीकरण आंदोलन के बाद। इस तरह भोपाल में आज़ादी के 659 दिनों बाद तिरंगा लहराया जा सका।

आज़ादी के समय भोपाल की रियासत के नवाब हमीदुल्लाह खान थे। लार्ड माउंटबेटन ने आज़ादी की शर्तों में उस समय की तमाम रियासतों को ये विकल्प दे दिया था कि वे भारत या पाकिस्तान में से एक देश को स्वयं चुनकर अपनी रियासत का विलय करें। भोपाल रियासत के नवाब हमीदुल्लाह खान का झुकाव मोहम्मद अली जिन्ना और पाकिस्तान के साथ था।

नवाब हमीदुल्लाह खान

हमीदुल्लाह खान मुस्लिम लीग के सक्रिय सदस्य थे। जब 1947 में किसी एक भारत या पकिस्तान किसी एक देश को चुनने की बात आई तब हमीदुल्लाह ने और मोहम्मद अली जिन्ना के साथ नज़दीकी के बाद भी कश्मीर, हैदराबाद, सिक्किम जैसी रियासतों की तरह दोनों विकल्पों को नकारते हुए अपनी एक स्वायत्त रियासत की दलील दी।

नवाब हमीदुल्लाह खान की इस दलील को लार्ड माउंटबेटन ने ही खारिज कर दिया था। माउंटबेटन का मानना था कि दो देशों के बीच में एक छोटी सी रियासत स्वतंत्र स्टेट बनकर कैसे रह सकती है? ऐसे में किसी एक विकल्प के साथ जाना नवाब की मजबूरी बन चुकी थी। आखिरकार हमीदुल्लाह ने 1947 में उन्होंने भारत के साथ विलय होने की सहमति तो दे दी दी लेकिन इसके बाद भी भोपाल को स्वतंत्र रियासत बनाये रखने की उनकी कोशिशें जारी रहीं।

इन कोशिशों के तहत ही हमीदुल्लाह ने भारत सरकार के सामने भोपाल को अलग स्वतंत्र राज्य घोषित करने पैरवी की थी। असल में, भोपाल कहने को एक मुस्लिम नवाबी स्टेट था लेकिन आबादी हिंदू बहुल थी। नवाब की इच्छा सामने आने के बाद विरोध में दिसंबर 1948 में भोपाल में एक जनआंदोलन शुरू हो गया। शंकरदयाल शर्मा, भाई रतन कुमार गुप्ता जैसे नेताओं ने इस ‘विलीनीकरण आंदोलन’ का नेतृत्व किया।

आंदोलन ने देखते ही देखते ज़ोर पकड़ लिया। भोपाल नवाब ने आंदोलन को कुचलने की कोशिश भी की। बड़े नेताओं समेत अन्य आंदोलनकारियों को हिरासत में भी लिया गया वहीं कुछ आंदोलनकारी शहीद भी हुए। हालात बिगड़ते देख सरदार पटेल ने वीपी मेनन को भोपाल भेजा। मेनन ने भोपाल नवाब पर दबाव बनाया और आखिरकार 1 जून 1949 तक भोपाल बाकायदा भारत में शामिल हुआ। इसके बाद पहली बार भोपाल में रियासत के झंडे की बजाय औपचारिक रूप से तिरंगा लहराया गया।

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