भोपाल (जोशहोश डेस्क) विश्व आज कोरोना महामारी से जूझ रहा है। भारत में अभी तक किसी भी कोरोना की वैक्सीन (Vaccine) को अनुमति नहीं मिली है, लेकिन सरकार वैक्सीनेशन (Vaccination) की तैयारियों में जुटी हुई है। इतनी बड़ी आबादी को वैक्सीन लगाना एक मुश्किल काम है। वहीं वैक्सीन आने के पहले ही इसके बारे में कई तरह की भ्रांतियां लोगों के बीच फैल रही है। इस वजह से सरकार की जिम्मेदारी और बढ़ जाती है।
विश्व ने इससे पहले भी कई महामारी देखी हैं। एक समय था जब हैजा भारत की सबसे जानलेवा महामारी हुआ करती थी। इससे एक साथ ही लाखों लोगों की जान चली जाती थी। वैक्सीन के आने तक यह सिलसिला आम था।
जब हैजा की वैक्सीन भारत आई थी तब भी भारत में वैक्सीनेशन को लेकर चुनौतियों का सामना करना पड़ा था, क्योंकि तब लोग वैक्सीन नाम की कोई चीज होती है, यह भी नहीं जानते थे। उस वक्त वैक्सीनेशन की प्रक्रिया में कई लोगों ने जागरूकता लाने के लिए अहम योगदान दिए थे। ऐसे ही वैक्सीनेशन के दौरान मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री रहे नरेशचंद्र सिंह का योगदान प्रमुख था, उन्होंने अपनी जान खतरे में डाल कर लोगों को वैक्सीन के लिए जागरूक किया था।
जब हैजा भारत में फैला था तब नरेशचंद्र सिंह सारगढ़ राज्य के राजकुमार थे। देश में स्थिति भयावह थी। उन दिनों अनेक गांवों में गलियां लाशों से पटने की खबरें आम हो गई थीं। सारगढ़ राज्य भी इस महामारी की चपेट में था।
सारगढ़ स्टेट के अपने डॉक्टर और स्वास्थ्य कर्मी थे जो वैक्सीनेशन में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे थे। लेकिन सबसे बड़ी चुनौती थी लोगों को यह वैक्सीन लगाना। सारगढ़ के शहरी और ग्रामीण दोनों ही क्षेत्र के लोग इन्जेक्शन नाम की किसी चीज से परिचित नहीं थे। लोगों को वैक्सीन लगाने का जिम्मा स्टेट के युवराज नरेशचंद्र सिंह को दिया गया था। उनके नेतृत्व में स्टेट के डॉक्टर और बाकी लोग नगर की गलियों में पैदल और गांवों में साइकिलों से जाया करते थे।
तब वैक्सीन लगाने के लिए लोगों को इकट्ठा करके पहले उन्हें वैक्सीन के लाभ के बारे में बताया जाता था। इसके बाद युवराज नरेशचंद्र सिंह इन्जेक्शन लगवाने के लिए बांह ऊपर करते और डॉक्टर उन्हें इन्जेक्शन की सुई चुभोता। यह सब इसलिए किया जाता था ताकि लोगों को यकीन हो कि इस इन्जेक्शन से नुकसान नहीं है। हालांकि युवराज को लगाए जाने वाले इन्जेक्शन में वैक्सीन नहीं होता था और यह बात उनके अलावा सिर्फ डॉक्टर जानते थे। लेकिन यह सब देख कर लोग आगे आ जाते थे और इन्जेक्शन लगवा लेते थे।
इससे राज्य में मृत्यु दर पर तेजी से अंकुश लगाने में बहुत सफलता मिली। ऐसे हर दिन अंत तक तीस से चालीस बार इन्जेक्शन की सुई चुभवाने के कुछ दिनों बाद युवराज नरेशचंद्र की बांह सूज गई। तब इस बात को गोपनीय रखा गया था ताकि लोग इसे वैक्सीन का दुष्प्रभाव न समझ बैठें।
1946 में पिता की मृत्यु के बाद नरेशचंद्र सिंह सारंगढ़ के राजा बने। 1 जनवरी 1948 को राज्य का भारतीय गणराज्य में विलीनीकरण करने के बाद वे औपचारिक रूप से कांग्रेस पार्टी में शामिल हो गए। 1949 से वे मध्यप्रदेश में कैबिनेट मंत्री रहे तथा बाद में मध्यप्रदेश के पहले और अब तक के एकमात्र आदिवासी मुख्यमंत्री बने।