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गुजरात की कंपनियां कोयले के कारोबार में कर रहीं करोड़ों का काला खेल

कोल इंडिया की नाक के नीचे हो रही लघु उद्योगों के लिये आवंटित रियायती दर के कोयले की काला बाज़ारी।

भोपाल (जोशहोश डेस्क) लघु उद्योगों के लिये आवंटित रियायती दर के कोयले को गुजरात की तीन एजेंसियों द्वारा ग़ैर क़ानूनी तरीक़े से खुले बाज़ार में बेच करोड़ों के वारे न्यारे करने का सनसनीखेज मामला उजागर हुआ है। बड़ी बात यह है कि पूरा घोटाला देश में कोयले का उत्पादन और वितरण करने वाली नियामक संस्था कोल इंडिया की नाक के नीचे हो रहा है। केंद्रीय कोयला एवं खान मंत्रालय भी इस काले खेल पर आंख बंद कर बैठा है।

वेब पोर्टल कर्मवीर में डॉ राकेश पाठक की रिपोर्ट ने इस मामले का खुलासा किया है। रिपोर्ट के मुताबिक गुजरात की तीन एजेंसियों काठियावाड़ कोल एंड कोक कंज्यूमर्स एसोसिएशन, द गुजरात कोल कोक ट्रेडर्स एंड कंज्यूमर्स एसोसिएशन और साउथ गुजरात फेडरेशन ऑफ इंडस्ट्रीज़ का कोल इंडिया की कंपनियों के साथ फ्यूल सप्लाई एग्रीमेंट है। गुजरात की ये एजेंसियां कोल इंडिया की कंपनियों से रियायती दर का कोयला खरीद कर गुजरात के लघु उद्योगों को न बेचकर मप्र, छत्तीसगढ़, महाराष्ट्र के ट्रेडर्स को दो से तीन गुना कीमत पर बेच रहीं हैं।

रिपोर्ट के मुताबिक देश भर में लघु उद्योगों को कोयला उपलब्ध करवाने की नीति के तहत ‘कोल इंडिया’ से राज्यों को कोयला आवंटित होता है और उसके बाद राज्य द्वारा नियुक्त एजेंसी इसका आगे वितरण करती है। मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, महाराष्ट्र आदि राज्यों ने अपने-अपने राज्य की किसी सरकारी एजेंसी को यह ज़िम्मेदारी दी है। मध्यप्रदेश में लघु उद्योग निगम यह दायित्व निभाता है।

मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, महाराष्ट्र सरकारों के उलट गुजरात सरकार ने सरकारी एजेंसी की बजाय तीन प्रायवेट एजेंसियों को कोयला वितरण का ठेका दे रखा है। गुजरात की इन तीन एजेंसियों के साथ कोल इंडिया की कंपनियों साउथ साउथ ईस्टर्न कोलफील्ड्स लिमिटेड और वेस्टर्न कोलफील्ड्स लिमिटेड ने फ्यूल सप्लाई एग्रीमेंट (FSA) है। सारा काला पीला इन एजेंसियों द्वारा ही किया जा रहा है।

गुजरात न जाकर मप्र, छग में बिक जाता है कोयला

गुजरात की एजेंसियां मप्र, छत्तीसगढ़ की शहडोल,सारिणी, रेहट, अमलाई, शारदा, जगन्नाथपुर ,दिपका,नागपुर आदि खदानों से कोयला उठाती हैं। क़ायदे से इन एजेंसियों को कोल कम्पनियों से कोयला उठा कर गुजरात के लघु उद्योगों को उपलब्ध करवाना है लेकिन ये एजेंसियां कोयला उठाने और गुजरात ले जाने के बजाय सीधे मप्र, छत्तीसगढ़, महाराष्ट्र के ट्रेडर्स को बेच रही हैं। हद ये है कि ये ट्रेडर्स भी गुजरात के न होकर मप्र,छत्तीसगढ़, महाराष्ट्र आदि के हैं जो कि अपने ही राज्य में इस कोयले को बेजा तरीके से बेच देते हैं।

कोयला कंपनियां से डिलीवर ऑर्डर ( DO) तो गुजरात की एजेंसीज के नाम से ही जारी होते हैं लेकिन ये कोयला गुजरात में लघु उद्योगों तक पहुंचता ही नहीं है। गुजरात सरकार ने अपने द्वारा नियुक्त एजंसियां के बारे में न तो स्थानीय उद्योगों को अवगत कराया न ही इस बारे में कोई नीति निर्धारित की। कोयला कंपनियों की खदानों से एजेंसी गुजरात के लिये बने गेट पास पर माल उठाती है लेकिन गेट से बाहर आने के बाद माल मप्र, छत्तीसगढ़, महाराष्ट्र आदि ट्रेडर के ठिकाने पर खप जाता है।

कीमत का खेल

कोल इंडिया द्वारा कोयले की सप्लाई के लिये कीमतों को नोटिफाई किया जाता है। सेना, राज्यों के बिजली घर और लघु उद्योगों के लिये एक निश्चित कीमत तय है। जो कि सभी टैक्स सहित लगभग 2800 से 3200 रु प्रति टन तक होती है। इसे रियायती दर कहा जाता है। अन्य किसी को ट्रेडर, फैक्ट्री या व्यापारी सिर्फ़ ई-ऑक्शन (ऑनलाइन नीलामी) के जरिये ही कोयला खरीद सकते हैं। आम तौर पर ई-ऑक्शन में कोयला लगभग 11 हज़ार रु प्रति टन क़ीमत पर मिलता है। जो ट्रेडर गुजरात की एजेंसी से 2800 या तीन हज़ार प्रति टन का कोयला नियम विरुद्ध तरीक़े से उठाते हैं वे इसे खुले बाज़ार में 9 या दस हज़ार रु प्रति टन के भाव में बेच देते हैं।

क्या कहते हैं कारोबारी..

मप्र के कोयला कारोबारी कमल नागपाल कहते हैं कि यह बहुत बड़ा घोटाला है। लघु उद्योगों के लिये आने वाला कोयला जिस राज्य के लिये आवंटित होता है उसके बाहर जा ही नहीं सकता लेकिन गुजरात की निजी एजेंसियों द्वारा ये कोयला वहां पहुंचता ही नहीं है। जिस तरह रियायती दर वाला कोयला काले बाज़ार में बेचा जा रहा है वह आवश्यक वस्तु अधिनियम के तहत गंभीर अपराध है। नागपाल कहते हैं कि गुजरात की एजंसियां जिन खदानों से कोयला उठातीं है वहाँ के गेट पास के साथ निकले ट्रकों की पड़ताल करके ही यह पता लग सकता है कि कोयला अंततः किस ठिकाने पर ले जाया गया। नागपाल दावा करते हैं कि गुजरात की एजेंसियां कोयला न गुजरात लेकर जातीं हैं और न वहां के लघु उद्योगों तक यह पहुंचता है। इस खेल में करोड़ों के वारे न्यारे हो रहे हैं। नागपाल इसकी शिकायत केंद्रीय कोयला व खान मंत्री, कोल इंडिया आदि को कर रहे हैं। (साभार:कर्मवीर)

(कर्मवीर पोर्टल पर मूल खबर को पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)

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