नई दिल्ली (जोशहोश डेस्क) पूर्व गृहमंत्री और 8 बार के लोकसभा सांसद बूटा सिंह का शनिवार को लंबी बीमारी के बाद निधन हो गया। बूटा सिंह कांग्रेस के वरिष्ठ दलित नेता थे। वह नेहरू-गांधी परिवार के भरोसेमंद माने जाते रहे हैं। उन्होंने गृह, कृषि, रेल, खेल मंत्री और अन्य कार्यभार संभाले हैं। वह बिहार के राज्यपाल और राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग के अध्यक्ष भी रहे हैं।
कांग्रेस को सत्ता में दिलाने में निभाई थी अहम भूमिका
1977 में इंदिरा के विरोध और जनता पार्टी की लहर के चलते कांग्रेस को बुरी तरह से हार का सामना करना पड़ा था। तब पार्टी विभाजित हो गई थी। उस वक्त बूटा सिंह ही थे जिन्होंने इंदिरा गांधी की अगुआई वाली कांग्रेस के इकलौते राष्ट्रीय महासचिव के रूप में कड़ी मेहनत करके 1980 में कांग्रेस को फिर से सत्ता में लाने में बड़ी भूमिका निभाई थी। बूटा सिंह पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी और राजीव गांधी के करीबी माने जाते थे। जब कांग्रेस का विभाजन हुआ तो इंदिरा गांधी ने उन्हें नया पार्टी चिन्ह चुनने के लिए चुना था। उनका नाम इंदिरा युग में ज्ञानी जैल सिंह के साथ भारत के राष्ट्रपति पद के लिए भी सामने आया था।
राजीव गांधी ने बनाया गृहमंत्री
बूटा सिंह को राजीव गांधी ने अपनी सरकार में गृहमंत्री बनाया था। 1967 से लगातार पंजाब के रोपड़ से वो चुनाव लड़ते आ रहे थे लेकिन 1984 में इंदिरा गांधी की हत्या और फिर सिख विरोधी दंगों के बाद कांग्रेस के खिलाफ माहौल को देखते हुए राजीव गांधी ने उन्हें पंजाब से राजस्थान भेज दिया था। राजस्थान की जालौर सीट से बूटा सिंह ने आसानी से जीत दर्ज कर ली थी।
बिहार के राज्यपाल रहते विवादों में आए
बिहार के राज्यपाल बूटा सिंह अपने फैसले के बाद विवादों में आ गए थे। उन्होंने 2005 में बिहार विधानसभा चुनावों के बाद किसी भी दल को बहुमत न मिलने पर विधानसभा भंग करने की सिफारिश की थी, लेकिन उनके इस फैसले की सुप्रीम कोर्ट ने आलोचना की थी।
सुप्रीम कोर्ट ने बूटा सिंह की आलोचना करते हुए कहा था कि उन्होंने एक विशेष पार्टी को सत्ता में लाने के लिए संघीय कैबिनेट को राज्य के हालात के बारे में सही सूचना नहीं दी। इसके बाद बूटा सिंह ने अपने बचाव में कहा भी था कि वह किसी भी खास पार्टी के समर्थन में नहीं हैं।
21 मार्च, 1934 को पंजाब के जालंधर के मुस्तफापुर गांव में जन्मे बूटा सिंह राजनीति में आने से पहले पत्रकार थे। उन्होंने अपनी राजनीति की शुरुआत अकाली दल से की थी और 1960 के दशक में वह कांग्रेस में शामिल हो गए थे।