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क्या मोदी-शाह ने भी माना, MP में कमलनाथ को चुनौती नहीं दे पायेगा स्थानीय नेतृत्व?

भाजपा के सबसे बड़े रणनीतिकार अमित शाह 20 दिन में तीसरी बार मध्यप्रदेश में

भोपाल (जोशहोश डेस्क) महज़ 20 दिन में भारतीय जनता पार्टी के सबसे बड़े रणनीतिकार अमित शाह तीसरी बार मध्यप्रदेश पहुँच रहे हैं। अमित शाह रविवार को इंदौर पहुंचेगे और बूथ कार्यकर्ताओं को संबोधित करने के साथ ही अन्य कार्यक्रमों में भाग लेंगे। यह माना जा रहा कि भाजपा के स्थानीय संगठन के कमजोर प्रदर्शन और सरकार के खिलाफ एंटी इंकम्बेंसी के चलते भाजपा आलाकमान को चुनाव प्रबंधन अपने हाथ में लेने पर मज़बूर होना पड़ा हैं।

भारतीय जनता पार्टी के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष और वर्तमान केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह मध्यप्रदेश विधानसभा चुनाव को लेकर लगातार दौरे कर रहे हैं। उनकी सक्रियता से साफ संकेत मिल रहे हैं कि भाजपा अलाकमान मध्यप्रदेश को किसी भी कीमत पर गंवाना नही चाहता। अभी तक के जो तमाम ओपिनियन पोल और सर्वे सामने आये हैं उससे आलाकमान की नींद उड़ी हुई है।

यहाँ तक कि भाजपा ने मध्यप्रदेश को लेकर जो रणनीति बनाई है उसे लेकर कहा जा रहा है कि प्रदेश में भाजपा किसी लोकल नेता के चेहरे पर चुनाव नहीं लड़ेगी और चुनाव प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के चेहरे लड़ा जाएगा और पूरी कमान अमित शाह के हाथ में होगी। कहा जा रहा है कि प्रदेश के किसी भी नेता को चुनाव में बड़ी भूमिका में रखकर केंद्रीय नेतृत्व गुटबाज़ी को और गहराना नहीं चाहता।

यही कारण है कि अमित शाह ने मध्यप्रदेश को अपना स्थाई ठिकाना बना लिया है। बीते 20 दिन में मध्य प्रदेश में उनकी यह तीसरी आधिकारिक यात्रा है। अमित शाह ने चुनाव प्रभारी के रूप में दो केंद्रीय मंत्री भूपेंद्र यादव और अश्विनी वैष्णव को निगरानी पर रखा है। जिनके फीडबैक पर सभी निर्णय अमित शाह ही ले रहे हैं।

यह माना जा रहा है कि मध्यप्रदेश में जिस तरह कमलनाथ के नेतृत्व में कांग्रेस सुनियोजित तरीके से चुनाव के लिए आगे बढ़ रही है उससे पार पाना भाजपा के लिए बेहद मुश्किल साबित हो रहा है। कमलनाथ स्थानीय मुद्दों पर जहाँ फोकस किये हैं। वहीं उनकी व्यक्तिगत छवि के चलते ध्रुवीकरण के प्रयास भी सफल होते नहीं दिख रहे हैं। ध्रुवीकरण की राजनीति को भाजपा का तुरुप का इक्का माना जाता है जो अभी तक मध्यप्रदेश में सफल होता नहीं दिख रहा है।

सियासी गलियारों में यह कहा जा रहा है कि हिमाचल और कर्नाटक में मिली हार के बाद भारतीय जनता पार्टी अब कोई रिस्क लेना नहीं चाहती है। यही कारण है कि मध्यप्रदेश के नेगेटिव फीडबैक को भापते हुए मोदी-शाह ने यह तय किया कि मप्र में चुनावी दारोमदार स्थानीय नेतृत्व के बजाय अब केंद्रीय नेतृत्व ही संभाले। यही कारण है कि अमित शाह पूरी ताकत से मध्यप्रदेश के चुनावी मैदान में उतर गए हैं।

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