सिंधिया का भाजपा में एक साल पूरा, क्या कांग्रेस में होगी वापसी?
ज्योतिरादित्य सिंधिया को कांग्रेस से इस्तीफा दिए आज को पूरा एक साल हो गया। साल भर बाद ज्योतिरादित्य सिंधिया एक बार फिर सुर्खियों में हैं।
भोपाल (जोशहोश डेस्क) ज्योतिरादित्य सिंधिया (jyotiraditya scindia) को कांग्रेस से इस्तीफा दिए आज (9 मार्च) को एक साल हो गया। साल भर बाद ज्योतिरादित्य सिंधिया एक बार फिर सुर्खियों में हैं। कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी के बयान के बाद सूबे की सियासत में फिर यह चर्चा चल पड़ी है कि क्या ज्योतिरादित्य सिंधिया की कांग्रेस में वापिसी होगी? और अगर होगी तो कब?
दरअसल सोमवार को युवक कांग्रेस की राष्ट्रीय कार्यकारिणी में राहुल गांधी ने ज्योतिरादित्य सिंधिया को याद किया। उन्होंने कहा कि अगर सिंधिया कांग्रेस में होते तो मुख्यमंत्री बन सकते थे लेकिन भारतीय जनता पार्टी में वे बैकबैंचर बन गए हैं। राहुल गांधी ने यह भी कहा कि भाजपा उन्हें कभी मुख्यमंत्री नहीं बनाएगी।
राहुल गांधी ने कार्यकारिणी में कहा कि सिंधिया के पास कांग्रेस कार्यकर्ताओं के साथ मिलकर संगठन मजबूत करने का विकल्प था मैंने उन्हें कहा था कि आप एक दिन मुख्यमंत्री बनोगे लेकिन उन्होंने दूसरा रास्ता चुना। मैं यह लिख कर दे सकता हूं कि भाजपा उन्हें कभी मुख्यमंत्री नहीं बनाएगी। इसके लिए उन्हें कांग्रेस में वापस आना होगा।
यह पहली बार है कि राहुल गांधी ने ज्योतिरादित्य सिंधिया को लेकर इतने खुले शब्दों में राय रखी है। यह भी दिलचस्प है कि सिंधिया के कांग्रेस को छोड़े एक साल पूरा हो गया है लेकिन उन्होंने इस अवधि में गांधी परिवार के प्रति सम्मान रखा है।
उपचुनाव के दौरान सियासी मंचों पर भी सिंधिया की नाराजगी मध्यप्रदेश के नेताओं को लेकर ही सामने आई लेकिन उन्होंने कभी सोनिया गांधी या राहुल गांधी पर निशाना नहीं साधा। राहुल गांधी और ज्योतिरादित्य सिंधिया की दोस्ती भी जगजाहिर थी।
अब सवाल यह है कि क्या कोई ऐसी परिस्थिति है जिसमें सिंधिया एक बार फिर पाला बदलें? इसका जवाब यही है कि भाजपा के शीर्ष नेतृत्व से लेकर राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ तक ने सिंधिया को हाथों हाथ लिया है। ऐसे में फिलहाल तो यह सम्भावना नज़र नहीं आती कि सिंधिया अब पाला बदलें।
लाख विरोध के बाद भी सिंधिया न सिर्फ अपने साथ गए विधायकों को दोबारा टिकट दिलवाने में कामयाब रहे बल्कि उनके खास समर्थकों को मंत्रिमंडल में शामिल भी करा लिया। यहीं नहीं भाजपा उन्हें वादे के मुताबिक राज्यसभा भी भेज चुकी है। संभव है कि मोदी सरकार के अगले मंत्रिमंडल विस्तार में सिंधिया केंद्रीय मंत्री भी बना दिए जाएं। यानी जो प्राथमिक रूप से जो डील भाजपा और सिंधिया के बीच हुई वो पूरी हो चुकी है।
अब प्रदेश की राजनीति में सब सामान्य तो दिख रहा है लेकिन क्या सिंधिया सिर्फ राज्यसभा सांसद या केंद्रीय मंत्री बनने ही भाजपा में आए थे? या भाजपा में इसके बाद सिंधिया का भविष्य क्या होगा? यह सवाल अभी भी बना हुआ है?
जहां तक भाजपा की राज्य इकाई का सवाल है राहुल गांधी की इस बात में वजन नजर आता है कि सिंधिया भाजपा में रहते मध्यप्रदेश में शायद ही मुख्यमंत्री बनाएं जाएं। वैसे भी प्रदेश भाजपा अब बदलाव के दौर से गुजर रही है। ऐसे में सिंधिया के लिए भाजपा की मध्यप्रदेश की राजनीति में तो बहुत अवसर नहीं दिखते।
अगर सिंधिया के राजनीतिक सफर को देखें तो कांग्रेस में वे राष्टीय स्तर के नेता माने जाते थे। यूपीए के दोनों कार्यकाल में सिंधिया केंद्र में मंत्री भी रहे। सिंधिया के कांग्रेस छोड़ने का बड़ा कारण केंद्र नहीं बल्कि मध्यप्रदेश में उपेक्षा को ही माना जाता है।
ऐसे में सवाल यह है कि मध्यप्रदेश की राजनीति में भाजपा में रहते सिंधिया खुद को कहां देखना चाहते हैं? अगर सिंधिया केंद्र की राजनीति में खुश रहते हैं तो ठीक है लेकिन अगर मध्यप्रदेश की राजनीति में उन्हें बड़ा मुकाम पाना है तो भाजपा में उनके लिए राह आसान नहीं होगी।
वर्तमान में भी सिंधिया प्रदेश के बड़े भाजपा नेताओं के साथ तो दिखते हैं लेकिन जब उनके पीछे खड़े चेहरों पर नजर डालें तो उनमें भाजपाई कम बल्कि उनकी अपनी टीम के कांग्रेसी रहे चेहरे ही ज्यादा नजर आते हैं।
ऐसे में भविष्य की सियासत किस करवट बैठेगी यह कहना मुश्किल है। मगर राहुल गांधी की यह बात सच के करीब दिखती है कि सिंधिया अगर धैर्य रखते तो वे कांग्रेस में रहते मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री बन सकते थे। हालांकि राहुल गांधी की दूसरी बात कि मुख्यमंत्री बनने सिंधिया को कांग्रेस में दोबारा आना होगा। यह बात सच होगी या नहीं इसका जवाब सिर्फ सिंधिया के ही पास है।