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कांग्रेस के इतिहास में चिंतन, त्याग, बलिदान, संघर्ष और निर्माण की गाथा

कांग्रेस के स्थापना दिवस पर पूर्व केंद्रीय मंत्री सुरेश पचौरी का विशेष आलेख

कांग्रेस का सेवा, संघर्ष, त्याग और बलिदान का गौरवशाली इतिहास रहा है। यह इतिहास देश को आजादी दिलाने का और देश के नवनिर्माण का है। 28 दिसम्बर 1885 को एओ. हयूम की पहल पर बम्बई (अब मुंबई ) के गोकुलदास संस्कृत कॉलेज मैदान में देश के विभिन्न प्रांतो के राजनैतिक एवं सामाजिक विचारधारा के लोग एक मंच पर एकत्रित हुए। राजनैतिक यह एकता, एक संगठन में तब्दील हुई, जिसका नाम ‘कांग्रेस’ रखा गया।

डब्ल्यू. सी. बैनजी कांग्रेस के पहले अध्यक्ष बने। उन्होंने अपने अध्यक्षीय भाषण में देश में सामाजिक सद्भाव का नया वातावरण तैयार करने पर जोर दिया। श्रीमती ऐनी बेसेंट, लाला लाजपत राय, गोपालकृष्ण गोखले, लोकमान्य तिलक, सुभाष चन्द्र बोस, सरदार वल्लभ भाई पटेल और पंडित जवाहरलाल नेहरू जैसे महान नेताओं ने समय-समय पर कांग्रेस का नेतृत्व किया। कांग्रेस को युगपुरुष महात्मा गांधी का नेतृत्व मिला।

महात्मा गांधी ने सत्याग्रह और जनआंदोलन के माध्यम से स्वाधीनता आंदोलन को जनमन का रूप दिया। महात्मा गांधी ने अहिंसा, सर्वधर्म समभाव और रचनात्मक कार्यक्रमों के द्वारा सामाजिक क्रांति की शुरुआत की। उनके नेतृत्व में न सिर्फ आजादी का आंदोलन अपने निर्णायक दौर में पहुंचा बल्कि कांग्रेस को व्यापक जनाधार प्राप्त हुआ । ‘स्वतंत्रता हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है और हम इसे लेकर रहेंगे’ के जयघोष ने सोते हुए राष्ट्र को झकझोर दिया।

सुरेश पचौरी

 ‘तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हे आजादी दूंगा’ के नारे ने भारत नौजवान पीढ़ी को आंदोलित किया और ‘करो या मरो’ तथा ‘अंग्रेजो भारत छोड़ो’ के आवाहन पर भारत की जनता ने अपना तन-मन और जीवन न्यौछावर कर दिया। किसी भी संस्था का इतिहास उसके सदस्यों एवं उसके नेतृत्व की गौरवगाथा होता है। कांग्रेस के नेताओं ने देश की एकता और अखण्डता के लिए अपनी शहादत दी है।

भारत के बंटवारे के समय देश में फैले सांप्रदायिक हिंसा के जुनून के समय महात्मा गांधी ने अपनी शहादत दी। पंडित जवाहरलाल नेहरू ने भारत की आजादी की लड़ाई को साम्राज्यवाद के खिलाफ विश्वव्यापी संघर्ष से जोड़ा। पंडित नेहरू ने सामाजिक समरसता को अमलीजामा पहनाया। प्रधानमंत्री के रूप में पंडित जवाहरलाल नेहरू ने आधुनिक एवं मजबूत भारत की नीवरखी। नेहरूजी के बाद लालबहादुर शास्त्री ने सत्ता की बागडोर संभाली।

शास्त्रीजी ने ‘जय जवान जय ‘किसान’ के नारे से पूरे देश में नया जोश भर दिया। शास्त्रीजी के बाद इंदिराजी ने एक दूरदर्शी कुशल शिल्पी की भांति समाज में व्याप्त असमानताओं को दूर करने का संकल्प व्यक्त कर उसे 20 सूत्रीय सामाजिक आर्थिक कार्यक्रम के द्वारा मूर्तरूप दिया। सन 1969 में कांग्रेस का विघटन इंदिरा गांधी के नेतृत्व में कांग्रेस के शुद्धिकरण का महत्वपूर्ण अध्याय है। यह ऐसा दौर था जब देश में पुरातन और प्रतिगामी शक्तियों का आधुनिकता और प्रगतिशील शक्तियों से टकराव चल रहा था।

इस अभियान में प्रगतिपक्ष का नेतृत्व इंदिरा गांधी ने किया और अंततः प्रगतिपक्ष की जीत हुई। इंदिराजी ने गरीबी, बेरोजगारी और  असमानता के खिलाफ लड़ाई लड़ने के लिए कांग्रेस की कार्यप्रणाली में कई बदलाव किए। भाजपा शासनकाल में देश और समाज आज उन मुद्दों और विषयों के जाल में जकड़ गया है जो वास्तव में जनता के सवाल नहीं हैं।

आजादी की 75वीं सालगिरह पर देश के मौजूदा हालात के बारे में चिंतन करने के लिए काँग्रेस ने उदयपुर में नवसंकल्प शिविर आयोजित किया। इस शिविर में काँग्रेस पार्टी ने यह तय किया कि देश को विभाजित करने वाले आर्थिक, सामाजिक और राजनैतिक मुद्दों के खिलाफ जनजागरण अभियान शुरू किया जाए। निष्कर्ष के रूप में राहुल गांधी की अगुवाई में कश्मीर से कन्याकुमारी तक 3500 किलोमीटर की भारत जोड़ो यात्रा की शुरूआत हुई।

राहुल गांधी भारत जोड़ो यात्रा के जरिये महात्मा गांधी के बताये रास्ते पर चल पड़े हैं। राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा गांधीजी के दांडी मार्च की याद दिलाती है। संत विनोवा भावे की भूदान यात्रा की याद दिलाती है। इंदिरा गांधी की बेलछी यात्रा की याद दिलाती है। राजीव गांधी की सद्भावना यात्रा की याद दिलाती है। राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा याद दिलाती है कि कांग्रेस का रास्ता जोड़ने का है, सबको साथ लेकर चलने का है। सबके सुख-दुख में सहभागी होने का है।

अपने स्थापना दिवस के अवसर पर कांग्रेस को अपने गौरवपूर्ण अतीत के सिंहावलोकन, वर्तमान में आत्मावलोचन और उज्वल भविष्य के चिंतन की जरूरत है। वक्त का तकाजा है कि बदली हुई परिस्थितियों में कांग्रेस संगठन के अनुभवी नेताओं व ऊर्जावान युवा नेताओं में सामन्जस्य बना रहे। आवश्यकता है कि कांग्रेस अपने ऊर्जावान, संकल्पवान नेता राहुल गांधी की मंशानुसार जनता से जीवंत संपर्क बनाए रखे व जनसमस्याओं के समाधान हेतु संघर्षरत रहे। 28 दिसम्बर 1985 से लेकर आज तक कांग्रेस ने लंबी यात्रा तय की है। कांग्रेस के इतिहास में चिंतन, त्याग, बलिदान, संघर्ष और निर्माण की गाथा है।

(लेखक कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री हैं)

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