भोपाल. जोशहोश की स्पेशल सीरीज (18 मुख्यमंत्रियों के 18 किस्से) के जरिए हम मध्यप्रदेश के अब तक के मुख्यमंत्रियों से जुड़ी कुछ खास बातों से रूबरू करा रहे हैं। हम पहले सीएम रविशंकर शुक्ल, भगवंतराव मंडलोई, कैलाशनाथ काटजू, द्वारका प्रसाद मिश्र, गोविंद नारायण सिंह, सीएम नरेशचंद्र सिंह, श्यामाचरण शुक्ल, प्रकाशचंद्र सेठी, कैलाश जोशी, वीरेंद्र कुमार सखलेजा, सुन्दर लाल पटवा, अर्जुन सिंह, मोती लाल वोरा, दिग्विजय सिंह और उमा भारती की बात कर चुके हैं। आज हम आपको बताएंगे दिवंगत बाबूलाल गौर (Babulal Gaur) के बारे में जो 23 अगस्त 2004 से 29 नवंबर 2005 तक मध्यप्रदेश के सीएम रहे।
उमा भारती ने बाबूलाल गौर को मुख्यमंत्री क्यों बनाया…
उमा भारती के इस्तीफे के बाद शिवराज सिंह चौहान, विक्रम वर्मा, कैलाश जोशी, सुमित्रा महाजन एवं बाबूलाल गौर (Babulal Gaur) के नाम मुख्यमंत्री पद के लिए सामने आये। उमा भारती ने मुहर गौर के नाम पर लगाई। उनका मानना था कि 74 वर्षीय गौर सबसे कमजोर मुख्यमंत्री साबित होंगे और उन्हें कभी भी पद से हटाया जा सकता है। गौर का चयन उमा भारती ने पिछड़़े वर्ग से होने के कारण भी किया। एक साल पहले उमा भारती जिसे टिकट नहीं देना चाहती थीं उन्हीं बाबूलाल गौर को मुख्यमंत्री बनाने को तैयार हो गयीं। उमा भारती ने सार्वजनिक रूप से कहा कि ‘गौर सबसे वरिष्ठ विधायक हैं और उनके नाम पर किसी को असहमति नहीं होगी, इसलिए उनको मुख्यमंत्री बनाया जा रहा है।’ विधायक दल के चुनाव के लिए अरुण जेटली विशेष तौर पर भोपाल आये और गौर को राज्य के सत्रहवें मुख्यमंत्री के तौर पर राजभवन में शपथ दिलाकर गये। गौर ने सबसे पहला वाक्य शपथ लेने के बाद कहा कि ‘मैं उमा भारती के अधूरे कामों को पूरा करने के लिए आया हूं’। जब गौर मुख्यमंत्री बने तो वे प्रकाशचन्द्र सेठी के बाद बड़े शहर से आने वाले दूसरे मुख्यमंत्री थे। चौबीस अगस्त 2004 की शाम उमा भारती गोवा एक्सप्रेस से कर्नाटक रवाना हो गईं। उमा भारती के जाते ही सबसे ज्यादा प्रसन्न मध्यप्रदेश की ब्यूरोक्रेसी हुई क्योंकि अब उन्हें अपने मन से काम करने की छूट मिल गई थी। उमा भारती के रहते कोई भी अधिकारी अपनी मनमानी नहीं कर पाता। उमा भारती हर आईएएस को हमेशा संशय की स्थिति में रखतीं कि न जाने वे कब नाराज हो जायें। कर्नाटक की अदालत में उमा भारती के खिलाफ दस मामले पंजीबद्ध हुये थे जिनमें से नौ तत्कालीन कांग्रेस की एसएम कृष्णा सरकार ने वापस ले लिये थे। दसवां मामला इसलिए वापस नहीं लिया जा सका क्योंकि उसके लिए वह ‘कोर्ट’ सक्षम नहीं था। उमा भारती सेशन्स जज जॉन माईकल डिकुन्हा के सामने पेश हुई तो उन्होंने कानून के मुताबिक काम करते हुए पूर्व मुख्यमंत्री को जेल भेज दिया। मामले के पहले वारंट के जारी होने के 700 दिन बाद पूर्व मुख्यमंत्री की सुरक्षा एवं गरिमा के अनुरूप उमा भारती को हुबली के धारवाड़ विश्विद्यालय के गेस्ट हाउस को, जिसे अस्थायी जेल में परिवर्तित कर दिया गया था, में रखा गया जहां वे चौदह दिनों तक कैद रहीं।
बाबूलाल गौर का संघर्ष
बाबूलाल गौर (Babulal Gaur) जब डेढ़ वर्ष के थे, तब उनके पिताजी उन्हें उत्तर प्रदेश के प्रतापगढ़ जिले से भोपाल ले आए थे। गौर के पिताजी मानक शाह एण्ड कम्पनी में मुलाजिम थे, जिसकी तीन शराब की कलारियां बरखेड़ी, जिन्सी और सीहोर में थी। रशीदिया जहांगीरियां स्कूल और फिर अलेग्जेन्ड्रा स्कूल में पढ़ाई के दौरान ही बाबूलाल गौर आरएसएस से जुड़ गए। दसवीं की बोर्ड परीक्षा में उन्हें सप्लीमेंट्री आई, पर तभी 15 अगस्त 1947 को देश आजाद हो गया और इसी खुशी में सभी सप्लीमेंट्री वालों को पास कर दिया गया। कुछ महीनों बाद ही उन्होंने स्वास्थ्य विभाग में पांच रुपए महीने पर आवक-जावक लिपिक की नौकरी कर ली पर यह ज्यादा दिन नहीं चल सकी। इसलिए कपड़ा मिल में छह रुपए प्रतिमाह की नौकरी कर ली जो अन्य भत्ते मिलकार सात-आठ रुपए हो जाती। सन् 1958 में बाबूलाल गौर भोपाल नगर पालिका के चुनाव में बरखेड़ी वार्ड से जनसंघ के उम्मीदवार बने, लेकिन काँग्रेस प्रत्याशी लाडलीशरण सिन्हा के मुकाबले 38 वोटों से हार गए। सन् 1974 में जब विधानसभा का उपचुनाव अस्थाना के निधन के कारण हुआ, तो गौर उस समय गैर-कांग्रेसी दलों के मिले-जुले प्रत्याशी के रूप में खड़े हुए। यह जयप्रकाश नारायण के जनता पार्टी के प्रयोग का पहला कदम था। इस तरह गौर 77 में बनी जनता पार्टी के पहले प्रत्याशी थे। एक बार पार्टी ने गौर को अर्जुन सिंह के विरूद्ध चुरहट से चुनाव लड़ाने का तय किया। शुरू में तो गौर को कुछ समझ नहीं आया पर बाद में उन्होंने कुशाभाऊ ठाकरे की मद्द से निर्णय बदलवा दिया। कहते है कि गौर और ठाकरे की दोस्ती का कारण भोजन था। बाबूलाल गौर अक्सर ठाकरे को भोजन पर आमंत्रित करते थे।
बुलडोजर मंत्री
अक्सर पटवा की तरह बाबूलाल गौर पर अर्जुन सिंह से मिलीभगत होने का अरोप लगता था। पटवा सरकार में बाबूलाल गौर को बुलडोजर मंत्री की उपाधि दी गई। उन्होंने पूरे भोपाल का अतिक्रमण न केवल हटाया बल्कि उसके सौन्दर्यीकरण के लिए जो काम किए वे ऐतिहासिक थे। भोपाल के सौन्दर्यीकरण के दौरान नवाबी काल के ऐतिहासिक स्मारक भी अतिक्रमण से मुक्त किए गए। जयपुर के दूधिया संगमरमर पत्थर से बना नवाब सिद्दीक हसन खां का बेहतरीन मकबरा है। नवाब सिद्दीक हसन खां, शाहजहाँ बेगम के दूसरे शौहर थे। इस मकबरे को अतिक्रमणों के चंगुल से मुक्त कराने की भी मजेदार कहानी है। 12 जुलाई 1990 का किस्सा है मुख्यमंत्री सुन्दरलाल पटवा, स्थानीय शासन मंत्री बाबूलाल गौर, जिला प्रशासन तथा नगर निगम के अमले के साथ अतिक्रमण विरोधी मुहिम का जायजा लेने शहर में निकले थे। अनेक स्थानों का निरीक्षण करने के बाद मुख्यमंत्री भोपाल टॉकीज से गुजर रहे थे, तभी अचानक बड़े बाग कब्रिस्तान पर उनका काफिला रुक गया। मुख्यमंत्री पटवा कार से उतरे और बड़े बाग की ओर चल पड़े। उनके पीछे-पीछे स्थानीय शासन मंत्री गौर और अधिकारियों का दल भी चल पड़ा। उस समय यह मकबरा मकानों दुकानों के अंदर छिपा हुआ था। पटवा बड़े बाग की गलियों से गुजर रहे थे, तो उनके पैर में कांच चुभ गया। जब वे कांच निकाल रहे थे, तभी अचानक उनकी निगाह मकान की चारदीवारी के पीछे छिपे इस मकबरे पर पड़ी। वे कांटे की बागड़ को फांदते हुए मकबरे पर जा पहुंचे। जब उन्होंने इसके बारे में पूछताछ की, तो बताया गया कि यह फिंरगियों की हुकूमत से लोहा लेने वाले साहसी और क्रांतिकारी नवाब सिद्दीक हसन खां का मकबरा है। पूरी इमारत का मुआयना करने के बाद मुख्यमंत्री ने निगम प्रशासक को निर्देश दिए कि किसी भी तरह इस खूबसूरत मकबरे को अतिक्रमणों से तत्काल मुक्त किया जाए। पांच राजभोगी शहरों के सौंदयीकरण के समय ग्वालियर में गौर का बुलडोज़र नहीं चला क्योंकि तब शीतला सहाय और ध्यानेन्द्र सिंह ने अतिक्रमण हटाने के अभियान का विरोध किया। दोनों का मानना था कि इससे भाजपा को चुनावों में नुकसान होगा। बाकी शहरों में बुलडोज़र चला और भाजपा जीती किन्तु ग्वालियर में बिना अतिक्रमण मुहिम के भी चुनाव हार गई।
बाबू लाल गौर का शासन…
कई बार मज़़ाक में कही गई बातें सच हो जाती हैं। मुख्यमंत्री के तौर पर उमा भारती के इस्तीफे के ठीक एक वर्श पहले जब वे केवल भाजपा की नेता थीं, तब राजभवन में बाबूलाल गौर को मुख्यमंत्री के तौर पर प्रस्तुत कर बैठीं। हुआ यह कि 5 सितम्बर 2003 को राजभवन में मध्यप्रदेश के नये मुख्य न्यायाधीश कुमार राजारत्नम की शपथ होना थी। प्रोटोकाल के तहत मुख्यमंत्री और नेता प्रतिपक्ष मौजूद रहते हैं। संयोग से उस रोज़ मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह किसी कारण से भोपाल के बाहर थे, किन्तु उमा भारती उस कार्यक्रम में मौजूद थीं। उन दिनों वे भोपाल लोकसभा से सांसद थीं। शपथ के बाद जब किसी ने पूछा कि मुख्यमंत्री कहां हैं, तो उमा भारती ने मजाकिया लहजे में बाबूलाल गौर की तरफ इषारा कर दिया। गौर साहब ने सुनते ही कहा, ‘नहीं-नहीं मैं मुख्यमंत्री नहीं।’ इतना सुनते ही उमा भारती ने कहा ‘तो चलिए मैं आपको मुख्यमंत्री प्रपोज करती हूं।’ उस समय राजधानी के पत्रकार रामभुवन सिंह कुशवाह सामने खड़े थे। सभी खूब हंसे। लेकिन इसके ठीक एक साल बाद कर्नाटक से तिरंगा मामले में गिरफ्तारी वारंट आने के कारण उमा भारती को मुख्यमंत्री पद छोड़ना पड़ा और उन्हीं बाबूलाल गौर को मुख्यमंत्री प्रस्तावित करना पड़ा जिनको एक साल पहले वे मजाक में ऐसा कर चुकी थीं।
गौर को 1998 में पार्टी टिकट नहीं देना चाहती थीं
मध्यप्रदेश की चुनावी राजनीति के अपराजेय योद्धा बाबूलाल गौर के घर चार जनवरी 1975 को जयप्रकाश नारायण आये थे। तब बाबूलाल गौर को उन्होंने आजीवन चुनाव जीतने का आशीर्वाद दिया था। तभी से गौर लगातार चुनाव जीत रहे हैं। आज तक वे चुनाव नहीं हारे। साल 1998 में जब नरेन्द्र मोदी मध्यप्रदेश में भाजपा के प्रभारी महामंत्री थे तब भी उन्होंने बाबूलाल गौर से चुनाव नहीं लड़ने को कहा था। एक रोज़ बाबूलाल गौर के घर नरेन्द्र मोदी, कुशाभाऊ ठाकरे, सुन्दरलाल पटवा और कैलाश जोशी भोजन पर गये। भोजन परोसते समय, मोदी ने गौर के स्थान पर उनकी बहू कृष्णा गौर को चुनाव लड़ाने का प्रस्ताव दिया। लेकिन कृष्णा गौर ने विनम्रता से मना कर दिया। उमा भारती ने 2003 में बाबूलाल गौर को टिकट नहीं देना चाहा। उस समय प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के घर पर मध्यप्रदेश में टिकट वितरण को लेकर भाजपा संसदीय बोर्ड की बैठक हो रही थी। इस बैठक में उमा भारती ने गौर को शामिल होने से मना कर दिया। लेकिन जब सह-संगठन मंत्री भगवतशरण माथुर ने उमा भारती को पार्टी का विधान बताते हुए कहा कि नेता प्रतिपक्ष का शामिल होना जरूरी है, तब वे मान गई। उमा भारती, बाबूलाल गौर की सीट से अपने समर्थक भगवानदास सबनानी को टिकट दिलाना चाहती थीं। जब बाबूलाल गौर की गोविंदपुरा सीट पर चर्चा का नम्बर आया तब बाबूलाल गौर मीटिंग से बाहर आ गये। उमा भारती ने सबनानी का नाम आगे बढ़ाते हुए कहा कि इस बार गौर चुनाव हार सकते हैं। उमा भारती के इस तर्क पर प्रमोद महाजन ने कहा भले ही वे हार जायें पर अपने ही नेता प्रतिपक्ष को टिकट न देने से गलत संकेत जायेंगे। यह परंपरा ठीक नहीं रहेगी। जब यह चर्चा भीतर हो रही थी तब गौर बाहर एक स्टूल पर बैठे रहे। बाद में जब वे अंदर गये तब अटल बिहारी वाजपेयी ने उन्हें आषीर्वाद देते हुए कहा कि ‘‘विजयी भव’’। बाबूलाल गौर वह चुनाव 65 हजार से भी ज्यादा वोटों से जीते। जीतने के बाद जैसी आशा थी, वे मंत्री भी बने। चुनाव की वोटिंग एक दिसम्बर को जब हो रही थी तब बाबूलाल गौर एक पोलिंग बूथ से बाहर निकल रहे थे। पैदल आते समय उन्हें एक स्कूटर ने टक्कर मार दी। उनके हाथ में फैक्चर हो गया और शरीर पर गंभीर चोटें आईं। जब छह दिसम्बर को मंत्री पद की शपथ हुई तब गौर पट्टी बांधे सीधे अस्पताल से लालपरेड मैदान पहुंचे।
गौर से गंगाजल उठवाकर शपथ दिलवाई उमा भारती ने
उमा भारती ने जब बाबूलाल गौर को अपनी जगह पर मुख्यमंत्री बनाया तब उनसे सीएम हाउस के मंदिर में 21 देवी-देवताओं के सामने गंगाजल उठाकर शपथ करवाई। शपथ इस बात की थी कि जब उमा भारती कहेंगी, तब गौर इस्तीफा दे देंगे। गौर मुख्यमंत्री बने तब 1950 के बाद पहली बार ऐसा हुआ था कि राजधानी भोपाल का ही कोई विधायक मुख्यमंत्री बना हो। इसके पहले जब भोपाल राज्य था तब शंकरदयाल शर्मा मुख्यमंत्री हुए थे। इसके बाद कोई भी भोपाली मुख्यमंत्री नहीं बना। 23 अगस्त 2004 को मुख्यमंत्री पद की शपथ लेने के चार दिन बाद जब बाबूलाल गौर ने मंत्रिमंडल का विस्तार किया तो उमा भारती के चार मंत्रियों को हटा दिया और तीन नये बनाये। नये बनाये जाने वाले मंत्रियों में अंतर सिंह आर्य, उमाषंकर गुप्ता एवं रामपाल सिंह थे। उमाशंकर गुप्ता मुख्यमंत्री के प्रिय मंत्रियों में से एक थे और बाबूलाल गौर उन पर बहुत भरोसा करते थे। रामपाल सिंह, शिवराज सिंह की सिफारिश पर आये। इस शपथ ग्रहण समारोह में उमाशंकर गुप्ता की अपने समर्थकों को अंदर ले जाने को लेकर राजभवन के प्रवेश द्वार पर लगभग हाथापाई हुई। प्रोटोकाल अधिकारी राजेश मिश्रा और भोपाल डीआईजी इस धक्का-मुक्की में उमाशंकर गुप्ता के साथ उलझते देखे गये। हुआ यह था कि गुप्ता बिना आमंत्रण अपने ढाई सौ समर्थकों को ले आये थे। जिन चार लोगों को हटाया गया उनमें अंचल सोनकर, धूलजी चैधरी, अलका जैन एवं गंगाराम पटेल शामिल थे। जब गुप्ता को कैबिनेट मंत्री बनाया गया तब वे पहली बार के विधायक थे। उमा भारती के जाने के दो महीने बाद बाबूलाल गौर ने 20 अक्टूबर को मुख्यमंत्री निवास में प्रवेश किया, हालांकि उन्होंने अपना चौहत्तर बंगले वाला घर नहीं छोड़ा।
पुत्र की मृत्यु पर नहीं रोये गौर
मुख्यमंत्री बने हुये मुश्किल से तीन महीने ही हुये थे कि 27 नवंबर 2004 को बाबूलाल गौर के जीवन की बड़ी त्रासदी हो गई। उनके एकमात्र 47 वर्षीय पुत्र पुरूशोत्तम गौर का अचानक हृदयगति रुक जाने के कारण निधन हो गया। पूरी पार्टी और सरकार में शोक छा गया। लेकिन मुख्यमंत्री की आंख में आंसू नहीं आये। स्थितप्रज्ञ भाव से गौर सब देखते रहे। इसके दो दिन पहले भाजपा ने नगरीय निकाय चुनावों में जो विशालकाय जीत प्राप्त की थी उसकी खुषी काफूर हो गई। पहली बार हुआ था कि भाजपा ने बारह प्रमुख नगर निगमों में से दस पर विजय दर्ज़़ की थी। भोपाल और देवास को छोड़कर, जबलपुर, इंदौर, ग्वालियर, सागर, खंडवा, बुरहानपुर, कटनी, रीवा, सिंगरौली एवं सतना में भाजपा ने अपने महापौर बनाये। बाबूलाल गौर के सामने जब पार्टी की शानदार जीत के उपलक्ष्य में पांच दिसंबर को होने वाले विजय दिवस के कार्यक्रम को स्थगित करने का प्रस्ताव आया तो उन्होंने पार्टी या सरकार के किसी भी कार्यक्रम को पुत्र की मृत्यु के कारण परिवर्तित करने से मना कर दिया। एक कर्मयोगी की तरह गौर अपने चेहरे पर बिना किसी भाव के सतत रूप से सक्रिय रहे। दूसरे दिन जब पुत्र की चिता को उनके नाती आकाश और अमन ने मुखाग्नि दी तब पहली बार बाबूलाल गौर की आंखों में अश्रु देखे गये। उसके पहले सभी लोग चिंतित थे कि कहीं 74 वर्षीय गौर सदमे में तो नहीं चले गये हैं, जिसके कारण वे रो नहीं रहे हैं। पुत्र की अंत्येष्टि के तत्काल बाद मुख्यमंत्री घर नहीं लौटे, बल्कि एक रेल दुर्घटना में मारे गये लोगों के परिवार में शोक व्यक्त करने चले गये। इस रेल दुर्घटना में बारह लोग तब मारे गये जब सूखीसेवनियां रेलवे स्टेशन पर बीना-भोपाल पेसेन्जर ट्रेन के यात्री ट्रेक पर खड़़े होकर विवाद कर रहे थे और अचानक चैन्नई-लखनऊ एक्सप्रेस ने आकर लोगों को रौंद दिया। बाबूलाल गौर ने उन दिनों एक सच्चे स्टेट्समेन होने का परिचय दिया और गीता में लिखे गए उपदेशों के अनुसार बिना राग-द्वेश और लाभ-हानि के सरकार चलाई।
[साभार- राजनीतिनामा मध्यप्रदेश ]